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जीवन धारा – रक्त कोशिकाएं जीवंत कोशिकाओं का विलक्षण संसार

जीवन धारा - रक्त कोशिकाएं जीवंत कोशिकाओं का विलक्षण संसार

आपके प्राण प्राणवायु वाहक लाल रक्त कण

क्या आप जानते हैं

       – कि शरीर की प्रत्येक कोशिका (सेल) अपने आप में एक जीव होती है, उसका एक व्यवस्थित न्यूक्लियस नामक सेक्रेटेरियट होता है जहां हजारों जीनअधिकारी जैविक संचालन करते हैं। माईट्रोकोंड्रिया नामक पावर हाउस होते हैं जहां आक्सिजन से उर्जा उत्पन्न होती है। गोल्गी बाडीज, एण्डोप्लाजमिक रेटिक्यूलम, लाईसोसोम नामक 11 आर्गनेल्स होते हैं जो भोजन, भंडारन, अपशिष्ट विसर्जन, यातायात आदि की व्यवस्था करते हैं। संतुलित कार्य विभाजन होता है।

          – कि हर कोशिका का अपना जीवन दर्शन होता है, मस्तिष्क, हृदय, लिवर, जननांग, हर अंग की कोशिका का अपना जीवन दर्शन। 

          – कि रक्त में प्रवाहित कोशिकाओं का प्राण दायक समर्पित जीवन होता है।

कि रक्त का 55 प्र.. भाग तरल प्लाज्मा और 45 प्र.. भाग कोशकीय (सेल्स) होता है। कोशकीय भाग में 99 प्र.. लाल रक्त कण और मात्र 1 प्र.. सफेद रक्त कण और प्लेटलेट्स होते हैं।

कि लाल रक्त कण और सफेद रक्त कण जीवित संपूर्ण कोशिकाएं होती है जब कि प्लेटलेट्स कोशिका के टुकड़े।

कि आपके रक्त में एक क्यूबिक मिली मीटर (बून्द का छोटा हिस्सा) में लगभग 5 लाख लाल रक्त कण होते हैं। एक व्यक्ति के शरीर में विश्व के सारे कामगारों की संख्या से अधिक।

कि आपके प्राणवायु (आक्सीजन) वाहक लाल रक्त कण का जीवन मात्र 100-120 दिन का होता है।

कि हर लाल रक्त कण कोशिका में एक जैविक स्टॉप वाच होती है जो निश्चित समयोपरांत बंद हो जाती है।

कि आपके शरीर में प्रति सेकेन्ड 24 लाख नये लाल रक्त कण बनते है, इतने ही प्रति सेकेन्ड नष्ट होते हैं। आपको जीवित रखने के लिए प्रति क्षण लाखों लाल कोशिकाएं अपना जीवन उत्सर्ग करती हैं।

कि लाल रक्त कण मरने से पहले अपना अंगदान करते हैं। उनके हीमोग्लोबिन से पित्त बनता है और उनका आइरन नया हीमोग्लोबिन बनाने के काम आता है।

कि लाल रक्त कणों की उत्पत्ति लाल अस्थिमज्जा (रेड बोनमैरो) में होती है।

कि लाल रक्त कणों के बनने की प्रक्रिया का नियत्रंण केन्द्र किडनी में होता है। वहां आवश्यकता अनुरूप बनने वाला एरिथ्रोपोइटिन रक्त कणों के बनने की प्रक्रिया को प्रेरित, पोषित नियंत्रित करता है। किडनी खराब होने पर अल्प रक्तता एनिमिया इसी कारण होता है।

कि लाल रक्त कणों में केन्द्रक (न्यूक्लियस) नहीं होता है। लाल रक्त कणों के उत्पत्ति की प्रारंभिक अवस्था में उनमें केन्द्रक होता है जिसे बाहर निकाल दिया जाता है ताकि प्राणवायु वाहक हीमोग्लोबिन के लिए स्थान हो।

कि एक लाल रक्त कण में आक्सीजन के लिए 28 करोड़ हीमोग्लोबीन मॉल्यूकूल्स होते है।

कि लाल रक्त कण ऑक्सीजन से भरी कोशिकाएं होती हैं पर अपनी ऊर्जा की आवश्यकता के लिए वे आक्सीजन का उपयोेग नहीं करती। लाल रक्त कण ही शरीर की वे कोशिकाएं हैं जिनमें केन्द्रक ही नहीं माइटोकोंड्रिया भी नहीं होते। माइटोकोंड्रिया आक्सीजन का उपयोेग कर कोशिकाओं को ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं, लाल रक्त कण बिना उनके, बिना आक्सीजन, के ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। (प्रजा से संचय किया गया धन केवल प्रजा के लिएसच्चा कम्युनिज्म।)

कि केन्द्रक नहीं होने के कारण उनमें वायरस नहीं घुसते। वायरस कोशिका के अंदर ही जीवित रह सकते हैं। वायरस को जीवित रहने के लिए अपनी डी एन के समकक्ष केन्द्रक की डी एन की आवश्यकता होती है।

कि मलेरिया के परजीवी (पेरासाइट) का मानवहेमोग्लोबिन प्रिय भोजन होता है, मलेरिया लाल रक्त कणों का रोग होता है।

कि थेलेसीमिया के रोगियों को मलेरिया नहीं होता।

कि थेलेसीमिक बच्चों में हीमोग्लोबिन में जो जेनेटिक बदलाव आया है वह मलेरिया के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए ही हुआ है।

कि लाल रक्त कणों की सतह परऔरबीविशिष्ट एन्टीजन प्रोटीन होती है जिनसे व्यक्ति का ब्लड ग्रुप (,बी,एबी,) चिन्हित होता है। जिन परएन्टीजन वह ग्रुप, जिस परबीएन्टीजन वह बी ग्रुप और जिस परऔरबीदोनों एन्टीजन वह एबी ग्रुप और जिस पर दोनों नहीं वह शून्यग्रुप।

कि ग्रुप के रक्त कणों पर कोई एन्टीजन नहीं होती अतः ग्रुप का रक्त सभी को दिया जा सकता है। ग्रुप का व्यक्ति यूनिवर्सल डोनर होता है।

कि महिलाओं में हर महिने ऋतुस्राव में 30 मि.लि. रक्त बह जाता है। और उतना ही वापस बन जाता है।

कि स्वेच्छिक रक्त दान 450 मि.लि. हर तीन महिने में किया जा सकता है। जब कि दान किया हुआ रक्त तो एक महिने में ही वापस बन जाता है।

डॉ. श्रीगोपाल काबरा

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