आवारा कुत्तों का लोकतंत्र-व्यंग्य रचना Vivek Ranjan Shreevastav August 16, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “शहर की गलियों में लोकतंत्र आवारा कुत्ते के रूप में बैठा है। अदालत आदेश देती है, नगर निगम ठेका निकालता है, मोहल्ला समिति बहस करती… Spread the love
माखन लीला-हास्य व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 16, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments कृष्ण की माखन लीला आज लोकतंत्र में रूप बदल चुकी है। जहाँ कान्हा चोरी से माखन खाते थे, वहीं आज सत्ता और समाज में सब… Spread the love
साठा सो पाठा-व्यंग्य रचना Vivek Ranjan Shreevastav August 14, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments साठ के बाद ‘रिटायर’ नहीं, ‘री-फायर’ होना चाहिए—ये दुनिया के पुतिन, मोदी, ट्रंप, नेतन्याहू और खोमनेई साबित कर चुके हैं। अनुभव, जिद और आदतों का… Spread the love
एआई का झोला-छाप क्लिनिक डॉ मुकेश 'असीमित' August 14, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments तकनीक के झोला-छाप अवतार में ChatGPT ने मरीज की देसी बोली का ऐसा शब्दशः अर्थ निकाला कि इलाज से ज़्यादा हंसी आ गई। नमक बदलने… Spread the love
आदमी और कुत्ते की आवारगी-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 13, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments ह व्यंग्य इंसान और कुत्ते की आवारगी के बीच की महीन रेखा को तोड़ता है। अदालत के आदेश से कुत्तों को शेल्टर में डालने का… Spread the love
ट्रेडमिल : घर आया मेहमान-हास्य व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 11, 2025 हास्य रचनाएं 4 Comments ट्रेडमिल बड़े जोश से घर आया, पर महीने भर में कपड़े सुखाने का स्टैंड बन गया। जैकेट, साड़ियाँ, खिलौने सब उस पर लटकने लगे। वज़न… Spread the love
वो घर… जहाँ मोहब्बत बिखर गई Wasim Alam August 10, 2025 कहानी 1 Comment गाँव का आधा-अधूरा घर, जहाँ कभी ढोलक की थाप और हँसी गूँजती थी, अब दो चूल्हों की दूरी में बँट चुका है। नशे, गरीबी और… Spread the love
लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 9, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments रक्षा बंधन पर्व का नया संस्करण—भ्रष्टाचार और रिश्वत का भाई-बहन का पवित्र रिश्ता। सत्ता और विपक्ष दोनों पंडाल में, ₹2000 की नोटों की साड़ी पहने… Spread the love
बजट और बसंत : एक राग, कई रंग डॉ मुकेश 'असीमित' August 6, 2025 व्यंग रचनाएं 1 Comment बजट और बसंत का यह राग अब प्रकृति से नहीं, सत्ता की चौंखट से संचालित होता है। सत्ता पक्ष ढोल-ताशे के साथ लोकतंत्र के मंडप… Spread the love
रियाज़ की निरंतरता और सृजन का आत्म-संघर्ष डॉ मुकेश 'असीमित' August 5, 2025 हिंदी लेख 3 Comments “लेखन जब रियाज़ बन जाए, तो समाज उसे शौक समझने लगता है और गुटबाज़ी उसे अयोग्यता का तमगा पहनाने लगती है। एक डॉक्टर होकर सतत… Spread the love