“आज़ादी के दिन का अधूरा सपना”-लघु कथा

Wasim Alam Aug 16, 2025 लघु कथा 4

"15 अगस्त के उत्सव में झंडे लहरा रहे थे, गीत बज रहे थे, लेकिन गांधी मैदान के किनारे नंगे पाँव बच्चे लकड़ी समेट रहे थे। उनके चेहरों पर डर और भूख लिखी थी। असली आज़ादी तब होगी जब बच्चे छत के लिए लकड़ी नहीं, सपनों के लिए कलम तलाशेंगे।"

आवारा कुत्तों का लोकतंत्र-व्यंग्य रचना

Vivek Ranjan Shreevastav Aug 16, 2025 व्यंग रचनाएं 0

"शहर की गलियों में लोकतंत्र आवारा कुत्ते के रूप में बैठा है। अदालत आदेश देती है, नगर निगम ठेका निकालता है, मोहल्ला समिति बहस करती है और सोशल मीडिया पर नारे गूँजते हैं। असल समस्या कचरे, नसबंदी और जिम्मेदारी की है—पर हम शॉर्टकट और कॉन्ट्रैक्ट में उलझे रहते हैं।"

माखन लीला-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Aug 16, 2025 Important days 0

कृष्ण की माखन लीला आज लोकतंत्र में रूप बदल चुकी है। जहाँ कान्हा चोरी से माखन खाते थे, वहीं आज सत्ता और समाज में सब खुलेआम माखन खा-खिला रहे हैं। माखन खाने वाले मलाईदार दिखते हैं, खिलाने वाले जनता है। कोई माखन लगाकर प्रमोशन पा रहा है, तो कोई मिलावटी माखन से चमक रहा है। लोकतंत्र के चारों स्तंभ भी इसी माखन पर टिके हैं।

एक चिट्ठी भारत माँ के नाम

Neha Jain Aug 14, 2025 Blogs 2

भारत माँ को लिखी बेटी की भावनात्मक चिट्ठी, जिसमें अतीत के गौरवशाली भारत और वर्तमान की विडंबनाओं का तुलनात्मक चित्रण है। वीरता, सांस्कृतिक सौहार्द और नैतिक मूल्यों से लेकर आज के स्वार्थ, भ्रष्टाचार और नैतिक पतन तक की यात्रा का मार्मिक बयान।

साठा सो पाठा-व्यंग्य रचना

Vivek Ranjan Shreevastav Aug 14, 2025 व्यंग रचनाएं 2

साठ के बाद ‘रिटायर’ नहीं, ‘री-फायर’ होना चाहिए—ये दुनिया के पुतिन, मोदी, ट्रंप, नेतन्याहू और खोमनेई साबित कर चुके हैं। अनुभव, जिद और आदतों का टिफिन बॉक्स लेकर बुजुर्ग दुनिया की सबसे कठिन परिस्थितियों में भी अपना नमक-मिर्च मिला सकते हैं। उम्र बस कैलेंडर का पन्ना है।

एआई का झोला-छाप क्लिनिक

डॉ मुकेश 'असीमित' Aug 14, 2025 व्यंग रचनाएं 2

तकनीक के झोला-छाप अवतार में ChatGPT ने मरीज की देसी बोली का ऐसा शब्दशः अर्थ निकाला कि इलाज से ज़्यादा हंसी आ गई। नमक बदलने से लेकर पेट में “जलेबी” घूमने तक, एआई की नीम-हकीमी साबित करती है—दवा से ज़्यादा मज़ाक भी बिकता है।

आदमी और कुत्ते की आवारगी-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Aug 13, 2025 व्यंग रचनाएं 2

ह व्यंग्य इंसान और कुत्ते की आवारगी के बीच की महीन रेखा को तोड़ता है। अदालत के आदेश से कुत्तों को शेल्टर में डालने का फरमान आता है, मगर असली आवारगी तो इंसान में है—जो पूँछ हालात के हिसाब से सीधी या टेढ़ी कर लेता है। राजनीति, वोट बैंक और सोशल मीडिया के भौंकने तक, यह रचना समाज के कुत्तापन को आईना दिखाती है।

ट्रेडमिल : घर आया मेहमान-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Aug 11, 2025 व्यंग रचनाएं 4

ट्रेडमिल बड़े जोश से घर आया, पर महीने भर में कपड़े सुखाने का स्टैंड बन गया। जैकेट, साड़ियाँ, खिलौने सब उस पर लटकने लगे। वज़न घटाने का सपना ‘वज़न ढोने’ में बदल गया। अब वो स्टोर रूम में उम्र-क़ैद काट रहा है, और तोंद, सरकार की रिश्वत की तरह, फलती-फूलती जा रही है।

वो घर… जहाँ मोहब्बत बिखर गई

Wasim Alam Aug 10, 2025 कहानी 1

गाँव का आधा-अधूरा घर, जहाँ कभी ढोलक की थाप और हँसी गूँजती थी, अब दो चूल्हों की दूरी में बँट चुका है। नशे, गरीबी और कटुता ने आँगन की मिट्टी से खुशबू खींच ली है। यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, सैकड़ों बिखरे घरों की गवाही है।

लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Aug 9, 2025 व्यंग रचनाएं 0

रक्षा बंधन पर्व का नया संस्करण—भ्रष्टाचार और रिश्वत का भाई-बहन का पवित्र रिश्ता। सत्ता और विपक्ष दोनों पंडाल में, ₹2000 की नोटों की साड़ी पहने रिश्वत के हाथों राखी बंधवाते। नकदी से भरे लिफ़ाफ़े, मुस्कुराते नेता, और बाहर झाँकती जनता। लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर भाई-भतीजावाद, दलाली और लूट का यह महापर्व हर साल मनाने का संकल्प!