आश्वासन की खेती-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0

लोकतंत्र आश्वासनों पर टिका है, जहाँ हर पार्टी का घोषणा-पत्र वादों का कठपुतली शो होता है। जनता वोट रूपी टिकट से यह खेल देखती है, अपनी गरीबी और भुखमरी के बावजूद। नेतागण पांच साल में एक बार उन्हें खास महसूस कराते हैं, जिससे सरकारें बनती हैं। आश्वासन बाहर से मिलें या अंदर से, यही सरकार के गठन का आधार है। जनता भी आश्वासन की घुट्टी चाहती है, चाहे नेताओं से मिले या बाबाओं से, क्योंकि "अच्छे दिन" का यही आश्वासन है।

The Bachelor Son, the Miserable Father

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 17, 2025 English-Write Ups 0

In this satirical slice of clinic life, a doctor recounts the visit of an old acquaintance who barges in unannounced—not for treatment, but for tea, gossip, and emotional unloading. When asked casually about his son's marriage, the conversation spirals into irony. The man, a staunch traditionalist who once led community match-making and frowned upon ‘compromised’ unions, now pleads for any bride for his 35-year-old son—divorcee or widow included. The doctor reflects silently on the cruel poetry of life, as the man, without mentioning any ailment, exits the clinic leaving behind nothing but tea stains and truth bombs.

किराएदार की व्यथा: एक हास्य-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 16, 2025 Blogs 0

इस रचना में किराएदार की ज़िंदगी की उन अनकही व्यथाओं को हास्य और व्यंग्य के लहज़े में उजागर किया गया है, जिन्हें हम सभी कभी न कभी भुगत चुके हैं। मकान मालिक की एक्स-रे दृष्टि, दूध की बाध्यता, रद्दी की एफडी और ‘बेटे समान’ किराएदार बनने की त्रासदी — सबकुछ इतने रोचक ढंग से बुना गया है कि हँसी के साथ एक टीस भी उभरती है।

क्रौंच पक्षी और वाल्मीकि: संवेदना से जन्मा साहित्य

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 16, 2025 हिंदी लेख 2

महर्षि वाल्मीकि और क्रौंच पक्षी का ऐतिहासिक प्रसंग संस्कृत साहित्य में भावनात्मक संवेदना का महत्व कालिदास की काव्य कृतियों का मूल्य और समकालीन साहित्य साहित्य का उद्देश्य और संवेदनशीलता

बाढ़ में डूबकर भी कैसे तरें-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 15, 2025 व्यंग रचनाएं 6

बाढ़ आई नहीं कि सरकारी महकमें ‘आपदा प्रबंधन’ में ऐसे सक्रिय हो गए जैसे ‘मनौती’ पूरी हो गई हो। नदी उफनी नहीं कि पोस्टर लग गए, हेलिकॉप्टर उड़ गए, और राहत की थैलियाँ गिरने लगीं। मगरमच्छ तक घरों में घुस आए और मंत्रीजी बोले—“हर घर नल-जल योजना अब पूरी हो चुकी है।” प्रेस कांफ्रेंस में ठंडा पिलाकर सवाल बंद करवाना ही शायद सरकार का असली राहत प्रबंधन है।

जीवन पर प्रकाश डालिए-हास्य व्यंग्य रचना

Pradeep Audichya Jul 14, 2025 व्यंग रचनाएं 4

सेठजी को अब ‘सेठ’ होने से संतोष नहीं, उन्हें ‘समाजसेवी’ भी बनना है—वो भी बिना समाज की सेवा किए! अखबार, होर्डिंग, माला और माइक की व्यवस्था है, गाय तक बुलवाई गई है फोटो के लिए। जीवन पर प्रकाश डालते मास्टर साहब बिजली चोरी, मंदिर पर कब्ज़ा और गरीबों की "सुरक्षा" के किस्से खोल देते हैं। मुनीम तुरंत टोका — “अब ज्यादा प्रकाश ठीक नहीं है।”

कालीधर लापता — एक आधी-अधूरी भावुकता की खोज-फ़िल्म समीक्षा

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 14, 2025 Cinema Review 2

कालीधर लापता में कुंभ मेला बनारस के घाटों तक सिमट गया, अल्ज़ाइमर से पीड़ित किरदार अंग्रेज़ी बोलने लगा, और एक मासूम बच्चा शराब का इंतज़ाम करता दिखा! इन विसंगतियों ने कहानी की संवेदनशीलता को झकझोर दिया। फिल्म भावनात्मक हो सकती थी, पर बेमेल दृश्यों और स्क्रिप्ट की भूलों ने इसके असर को कमज़ोर कर दिया।

मेरी बे-टिकट रेल यात्रा-यात्रा संस्मरण

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 14, 2025 संस्मरण 2

हॉस्टल की 'थ्रिल भरी' दुनिया से निकली एक रोमांचक रेल यात्रा की कहानी, जहाँ एक मेडिकल छात्र पुरानी आदतों के नशे में बिना टिकट कोटा पहुँचने की जुगत भिड़ाता है। कभी पचास के खुले न मिलने की मजबूरी, कभी टीटी से आँख-मिचौली, तो कभी जनरल डिब्बे में ‘इंच भर की सीट’ पर संतुलन साधना — हर दृश्य हास्य से लबरेज़ है। डर की कई 'किश्तों' के बीच चलती ट्रेन में 'किक' का अहसास, और आखिर में स्टेशन पर छलांग मारकर जीत का रोमांच। एक बेधड़क, बेपरवाह, लेकिन दिलचस्प रेल यात्रा — सिर्फ़ व्यंग्य की भाषा में!

व्यंग्य चिंतन में मुंगेरीलाल

Prahalad Shrimali Jul 13, 2025 व्यंग रचनाएं 1

मुंगेरीलाल केवल एक चरित्र नहीं, हर आम आदमी की अंतरात्मा है जो कठिन यथार्थ के बीच भी सुनहरे सपने देखता है। वह न पाखंडी है, न अवसरवादी—बल्कि एक ऐसा मासूम है जो बिना किसी प्रचार के देश की खुशहाली का सपना पालता है। उसकी दुनिया रंगीन जरूर है, लेकिन अहिंसक, नेकनीयत और हानिरहित है। ऐसे मुंगेरीलाल देश पर बोझ नहीं, बल्कि भावना के सच्चे वाहक हैं।

Numbers Speak, You See!

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 12, 2025 English-Write Ups 0

Numbers don’t lie—unless they’re told to! Donated blood once—now in a report, I donated four times! Chitragupta did it for dharma, NGOs do it for drama. Graphs are sexy; the truth is not. Elections are won more by numbers than by people.