Wasim Alam
Jun 25, 2025
कहानी
2
इस चित्र में झलकती है एक ऐसी औरत की कहानी, जो दिन भर अस्पताल की सफ़ाई करती है लेकिन असल में अपने जीवन की जद्दोजहद भी झाड़ती है। उसकी थकी आँखों में तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी, माँ की ममता और पति की मजबूरी का बोझ साफ़ झलकता है। वह औरत कोई शिकायत नहीं करती, न ही अपने हालात पर रोती है — बस मुस्कराकर कहती है “सब ठीक है।” यह दृश्य सिर्फ़ एक कामवाली की नहीं, बल्कि उन लाखों स्त्रियों की प्रतिछाया है, जो अपनी पीड़ा को चुपचाप पी जाती हैं, लेकिन पूरे परिवार की रीढ़ बनी रहती हैं — बिना दिखावे के, बिना थमे।
Dr Shailesh Shukla
Jun 24, 2025
Blogs
0
जब हम छोटे थे तो समझते थे कि सबसे ताकतवर लोग पुलिसवाले होते हैं, फिर बड़े हुए तो लगा कि मंत्री सबसे ताकतवर होते हैं। लेकिन जैसे ही किसी सरकारी या कॉरपोरेट दफ्तर में कदम रखा, सच्चाई की बिजली गिरी— सबसे ताकतवर तो सामग्री विभाग का प्रमुख (Head of Material Department) होता है! यह कोई […]
Dr. Mulla Adam Ali
Jun 23, 2025
Blogs
0
धरती हमारे जीवन की आधारशिला है — नीला अम्बर, हरी ज़मीन, और प्रकृति के अनमोल रंगों से सजी यह दुनिया हमें जीवन, शांति और सुख देती है। लेकिन बदलते समय के साथ मानव गतिविधियों ने इस संतुलन को खतरे में डाल दिया है। प्रस्तुत बाल कविता “धरती मां की पुकार” नन्हे मनों की जुबानी एक […]
Dr. Mulla Adam Ali
Jun 23, 2025
Blogs
0
जंगल केवल पेड़ों और जानवरों का घर नहीं, बल्कि हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यह हरियाली, शांति, और जैव विविधता का प्रतीक हैं, जो धरती को संतुलन और सांसें प्रदान करते हैं। लेकिन आज मानवीय लालच और विकास की अंधी दौड़ ने इन प्राकृतिक धरोहरों को संकट में डाल दिया है। प्रस्तुत कविता “जंगल […]
Dr. Mulla Adam Ali
Jun 23, 2025
Blogs
0
न कर छेड़खानी तू धरती से प्यारे, ये पेड़ हैं जीवन के सच्चे सहारे। नदियों की धारा, पवन की रवानी, सब कहते हैं — “मत कर बेइमानी।” हरियाली ओढ़े ये धरती सुहानी, तेरे ही कल की है ये राजधानी। फूलों की हँसी, पंछियों की ज़बानी, चुपचाप कहती है — “न कर मनमानी।” जब […]
Dr Amit Goyal
Jun 22, 2025
हिंदी कहानी
4
मैंने अपने क्लीनिक में प्रवेश किया। कई मरीज़ विश्राम कक्ष में बैठे हुए थे। कुछ के चेहरे पर संतोष था—शायद मेरे इलाज से उन्हें लाभ हुआ हो। कुछ आशंकित मुद्रा में बैठे थे—शायद पहली बार आए थे या फिर पूर्ववर्ती इलाज से संतुष्ट नहीं थे। एक वृद्ध सज्जन इधर-उधर टहल रहे थे। सफ़ेद दाढ़ी थोड़ी […]
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 22, 2025
Blogs
0
तुम भगवान हो, तो गलती नहीं कर सकते — क्योंकि इंसान की तो गलती माफ़ होती है। अब जब भगवान बना दिया है, तो ये भी जान लो... इंसानों के हक़ मांगोगे, तो चोला उतार फेंका जाएगा। क्या कहा? छुट्टी चाहिए? भगवानों को छुट्टी नहीं मिलती... बस पूजा मिलती है या पत्थर!
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 8, 2025
Blogs
1
"डॉक्टर साहब, आपकी पढ़ाई अपनी जगह… हम तो इसे 'नस जाना' ही मानेंगे!"
ग्रामीण चिकित्सा संवादों में हर लक्षण का एक लोकनाम है — 'चक चली गई', 'हवा बैठ गई', 'गोड़ा बोल गया', 'ऊपर की हवा का असर है'। ये केवल शब्द नहीं, एक पूरी चिकित्सा-व्याख्या है, जिसमें विज्ञान, विश्वास और व्यंग्य की त्रिवेणी बहती है। गाँव के मरीज डॉक्टर से नहीं, खुद अपनी बीमारी का निदान लेकर आते हैं। इस लेख में इन्हीं रंग-बिरंगे अनुभवों, प्रतीकों और मुहावरों के ज़रिए एक लोक-चिकित्सा संस्कृति का हास्य-चित्रण किया गया है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 22, 2025
Blogs
0
“गालियों का बाज़ार” नामक उस लोकतांत्रिक तमाशे का प्रतीक है जहाँ भाषाई स्वतंत्रता के नाम पर अपशब्दों की होड़ है। हर कोई वक्ता है, हर गाली एक ब्रांड। संविधान की आड़ में तर्क नहीं, तापमान बढ़ाया जा रहा है। यह व्यंग्य मौजूदा सोशल-मीडिया और राजनीति की भाषा पर करारा प्रहार है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 13, 2025
Blogs
0
पुरस्कारों की चमक साहित्यकारों को अक्सर पितृसत्ता की टोपी पहना देती है। ये ‘गुप्त रोग’ बनकर छिपाया भी जाता है और पाया भी जाता है, झाड़-पोंछकर अलमारी में रखा जाता है। साहित्यिक संसार में आज पुरस्कार एक ‘औषधि’ है – बिना मांगे मिल जाए तो शक होता है, न मिले तो रोग गहराता है।