डॉ मुकेश 'असीमित'
May 16, 2024
Blogs
0
'कोई हमारे नाम के आगे भी तखल्लुस सुझाए -व्यंग रचना' में लेखक ने अपने लेखनी के सफर को जिस खूबसूरती से बयां किया है, वह न सिर्फ आपको मुस्कुराने पर मजबूर कर देगा, बल्कि कई बार आपको गहराई से सोचने पर भी विवश कर देगा। अगर आप भी चाहते हैं कि लेखन की इस कला में आपके नाम के आगे एक खास पहचान जुड़े, तो इस लेख को अवश्य पढ़ें। आइए, हमारे साथ जानिए कि एक डॉक्टर कैसे अपने लेखन के जरिए अपने आस-पास के माहौल का न केवल चित्रण करता है, बल्कि उसमें व्यंग्य का तड़का भी लगाता है। इस विचारोत्तेजक यात्रा में हमारे साथ शामिल हों और इस लेख को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 15, 2024
व्यंग रचनाएं
0
“जब गायन का भूत सिर पर सवार हुआ, तो लगा कि शायद मैं भी किसी रॉकस्टार की तरह मंच पर छा जाऊंगा “ यूँ तो जिंदगी में शौक पालना जैसे मेरा शगल बन गया है, हर नए शौक को अपनाया है तो एक जूनून के साथ और जब छोड़ा है तो ऐसे छोड़ा है जैसे […]
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 14, 2024
व्यंग रचनाएं
0
सेवानिवृत्ति का सुख" कथा में नायक सेवानिवृत्ति की दोहरी प्रकृति पर चिंतन करता है। जहां कई लोग इसे आराम और स्वतंत्रता के चरण के रूप में देखते हैं, वहीं उसके लिए यह सामाजिक स्थिति की हानि और जीवन भर की दिनचर्या के समाप्त होने का प्रतीक है। इस खाते में उनकी पूर्व सहकर्मियों के साथ दैनिक संवादों और सेवानिवृत्ति के जीवन की अपेक्षाओं और वास्तविकता के बीच के तीखे विरोधाभास को जीवंत रूप से चित्रित किया गया है। यह उम्र बढ़ने की विडंबना और हास्य पर स्पर्श करता है, जहां कभी सम्मानित पेशेवर अब सामान्य कार्यों और घटती प्रासंगिकता के अनुकूलन में खुद को पाते हैं, जिससे सेवानिवृत्ति के जीवन की जटिलताएं और अप्रत्याशित मोड़ सामने आते हैं।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 13, 2024
Blogs
0
इस लेख में, एक निजी चिकित्सक का व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है जो अपने पेशेवर जीवन में उतने सफल नहीं हैं जितना समाज से उम्मीद की जाती है। वह अपने डेस्कटॉप पर बैठकर सोशल मीडिया चलाने, लेखन करने और डिजिटल कला में अपनी रचनात्मकता को प्रदर्शित करने जैसे कार्यों में व्यस्त रहते हैं, जबकि उनकी पत्नी उन्हें हॉस्पिटल पर अधिक ध्यान देने के लिए ताने मारती हैं। उनकी जीवनशैली और कार्यशैली से उनके स्टाफ को भी अपने शौक पूरे करने का समय मिल जाता है, जिससे हॉस्पिटल में उनकी ड्यूटी एक पार्ट टाइम जॉब की तरह बन जाती है। डॉक्टर साहब अपने कार्यकाल के दौरान खाली समय में लोगों के तंजों का सामना करते हैं और समाज उन्हें एक निष्क्रिय व्यक्ति के रूप में देखता है | यह आलेख समाज में डॉक्टरों के प्रति रूढ़िवादी उम्मीदों और वास्तविकता के बीच के अंतर को दर्शाता है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 11, 2024
Blogs
0
चुनावी माहौल अब अपने पूरे शबाब पर है। चारों ओर बस एक ही चर्चा की गूंज है - चुनाव! जहां देखो, वहां गरमा-गरम बहसें और चुनावी चर्चाएँ जारी हैं। गर्मी के तीखे तेवर भी इस उत्साह को कम नहीं कर पा रहे हैं। हर जगह, चाहे चाय के ठेले हों या मीटिंग रूम, हर किसी के होंठों पर चुनावी चर्चाओं के चटखारे हैं। आज मेरा शहर भी इसी उत्साह के सागर में डूबा हुआ है। मेरा शहर उन कुछ भाग्यशाली शहरों में से एक है जिसे भले ही शहरी मानदंडों पर खरा न उतरा हो, फिर भी उसे शहर कहा जाता है। नाम बड़े और दर्शन छोटे की यह कहावत यहाँ नहीं चलती, क्योंकि नाम के साथ अब काम भी बड़ा होना निश्चित है।
आज शहर के लोग दुल्हन की तरह सजे इस शहर में खासे उत्साहित हैं। हर कोने पर बड़े बड़े बैनर, जिनमें राजनेताओं के आदमकद कटआउट और उनकी कंटीली मुस्कानें देखी जा सकती हैं। बड़े मंत्री जी, जो कि सत्तारूढ़ पार्टी से हैं, आज अपने चुनाव प्रचार के लिए यहाँ आने वाले हैं। हमारे सांसद तो पांच साल बाद ही दर्शन देते हैं, लगता है आज उनकी दर्शन की रस्म भी होगी।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 9, 2024
Blogs
0
ओपीडी में एक सनकी मुठभेड़ में, एक अघोषित आगंतुक, निश्चित रूप से एक परिचित चेहरा, दिनचर्या को बाधित करता है। बिना किसी अपॉइंटमेंट या पंजीकरण के, उनका आगमन ही अप्रत्याशित परिचितता के बारे में बहुत कुछ कहता है। उनका नाटकीय प्रवेश और अनोखा अभिवादन, "पहचानें कौन?" सुप्त स्मृतियों को तुरंत जागृत करें। अत्यधिक बोझ से दबे क्लिनिक के दरवाजों और बेचैनी से इंतजार कर रहे मरीजों की अव्यवस्था के बीच, आगंतुक का अतिरंजित भावनात्मक प्रदर्शन, पुरानी यादों और अनकही चिंताओं से भरा हुआ, सामने आता है। यह एक विनोदी लेकिन मार्मिक अनुस्मारक है कि कैसे व्यक्तिगत संबंध अप्रत्याशित रूप से व्यावसायिक स्थानों में घुसपैठ कर सकते हैं, अपने साथ मानवीय रिश्तों और अनकहे सामाजिक दायित्वों की जटिलताओं को ला सकते हैं।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 8, 2024
व्यंग रचनाएं
0
"वास्तव में, आलस्य और मेरे मध्य ऐसा अटूट बंधन है, जैसे कि आत्मा और शरीर का होता है, जो केवल महाप्रलय में ही छूट पाएगा, ऐसा मेरी आशा है।"
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 8, 2024
Blogs
0
प्रस्तुर है एक व्यंगात्मक रचना , शायद मेरी तरह आप में से कई भी इस लाईलाज बीमारे से ग्रसित हों, में मेरी दिनचर्या में, जो अपनी मधुमेह की बीमारी के चलते पारिवारिक और सामाजिक नज़रों के बीच एक विचित्र स्थिति में फंसा हुआ हूँ । प्रातःकाल की सैर से लौटते हुए मुझे अपनी पत्नी द्वारा मेथी के फांक थमाई जाती , एक गहन चिंता की लकीरें मेरे मुख मंडल पर । इस रचना में मैंने छुआ है उन अनगिनत घरेलू नुस्खों का मर्म, जो अक्सर देसी दवाइयों के चक्कर में विज्ञान से अधिक कल्पनाशील होते हैं।
इसी भावभूमि पर खड़े होकर, हम आपको आमंत्रित करते हैं कि जुड़ें हमारे साथ 'बात अपने देश की' ब्लॉग पर, जहाँ हम ऐसी ही अन्य रचनाओं के माध्यम से देश-दुनिया की विडंबनाओं पर चर्चा करते हैं। यहाँ हर व्यंग्य न सिर्फ आपको गुदगुदाएगा, बल्कि आपको थोड़ा सोचने पर भी मजबूर करेगा। तो आइए, करें कुछ बातें अपने देश की, अपने तरीके से।