Login    |    Register
Menu Close

Category: व्यंग रचनाएं

हार के बाद हताश नेता, कुर्सी पर ढहे हुए, चेहरे पर स्थायी उदासी, पोस्टर में झूठी जीत की घोषणा, बासी बर्फी पर मंडराती मक्खियाँ, और पीछे भैंस के तबेले में टिकट वापसी की प्रतीकात्मक राजनीतिक व्यथा।

हारे हुए प्रत्याशी की हाल-ए-सूरत-व्यंग्य रचना

चुनाव हारने के बाद नेताजी के चेहरे की मुस्कान स्थायी उदासी में बदल गई। कार्यकर्ता सांत्वनाकार बन चुके हैं, बासी बर्फी पर मक्खियाँ भिनभिना रही…

Spread the love
एक करेक्चर चित्र जिसमें एक वृद्धा जैसी "रेवड़ी देवी" घूंघट में लिपटी हैं, आंखों में आंसू, हाथ में घोषणाओं के पोस्टर — "फ्री बिजली", "फ्री पानी", "फ्री वाई-फाई" — चारों ओर नेता उन्हें मंचों से उछालते दिख रहे हैं, भीड़ ताली बजा रही है, और एक कोना अंधकारमय है जहां मेहनतकश किसान और मजदूर थके हुए बैठे हैं।

रेवड़ी की सिसकियां-व्यंग्य रचना

“रेवड़ी की सिसकियां” एक व्यंग्यात्मक संवाद है उस ‘जनकल्याणकारी नीति’ की आत्मा से, जिसे अब राजनैतिक मुफ्तखोरी की देवी बना दिया गया है। लेख में…

Spread the love
एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी—सीधी पीठ वाली, बिना पहियों के—जिस पर प्रेमचंद जैसे लेखक बैठकर विचारों की मशाल जलाते थे, और आज के लेखकों की रिवॉल्विंग, आरामदेह कुर्सियों के विपरीत खड़ी है।

मुंशी प्रेमचंद जी की कुर्सी-व्यंग्य रचना

मुंशी प्रेमचंद की ऐतिहासिक कुर्सी अब एक प्रतीक है—सच्चे लेखन, मूल्यों और विचारों की अडिगता का। पर आज का लेखक इस कुर्सी की स्थिरता नहीं,…

Spread the love
संस्था के स्वयंवर में योग्यता नहीं, जुगाड़ के सहारे दूल्हों की भीड़, हर कोई पहुंच और सिफारिश से वरमाला हासिल करने को आतुर।

संस्था का स्वयंवर: ‘योग्यता’ नहीं, ‘जुगाड़’ की वरमाला!

संस्था अब कोई विचारशील मंच नहीं, एक शर्मीली दुल्हन बन चुकी है, जिसका स्वयंवर हर दो साल बाद होता है। यहां वरमाला योग्यताओं पर नहीं,…

Spread the love
एक व्यंग्यात्मक चित्र जिसमें एक नाग दूध के कटोरे के सामने बैठा है, आस-पास सूट-बूट पहने नेतागण नाग की पूजा कर रहे हैं और जनता टैक्स रूपी दूध से कटोरा भर रही है। पीछे पोस्टर पर लिखा है — "लोकतंत्र में नागों की जय!"

वोट से विष तक : नागों का लोकतांत्रिक सफर

यह रचना नाग पंचमी के बहाने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य है। इसमें नाग रूपी नेताओं की तुलना असली साँपों से करते हुए बताया गया…

Spread the love
एक पुराने, जर्जर सरकारी स्कूल के मिट्टी के मैदान में खेलते बच्चे, पाटोर जैसी छत से टपकती बारिश, और सामुदायिक भवन में चलती कक्षा की झलक।

हम, हमारा बचपन और सरकारी स्कूल

सरकारी स्कूल की ये कहानी सिर्फ दीवारों के गिरने की नहीं, एक पूरी पीढ़ी के सपनों की टूट-फूट की दास्तान है। मिट्टी भरे मैदानों, पाटोरनुमा…

Spread the love
सरकारी स्कूल की गिरी छत पर SYSTEM नामक प्रतीक चिन्ह, पास में लीपापोती ब्रांड सीमेंट का डिब्बा, और टीवी स्क्रीन से बहते आँसू

सिस्टम, सिस्टमैटिकली बच निकला है —व्यंग्य रचना

एक और सरकारी छत गिरी, मासूम मरे, सिस्टम फिर बच निकला — जैसे संविधान में इसके लिए छूट हो। सरकार की संवेदना ट्विटर और प्रेस…

Spread the love
राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य दर्शाता हुआ एक रेखाचित्र जिसमें अलग-अलग लोगों के जूते ज़मीन पर गहरे निशान छोड़ते दिखाई दे रहे हैं, कुछ जूते टूटे-फूटे हैं, कुछ चमकदार हैं, और कुछ दिशाहीन घूम रहे हैं।

कामयाबी के पदचिन्ह-व्यंग्य रचना

हर कोई अपने पदचिन्ह छोड़ जाना चाहता है, लेकिन अब ये निशान कदमों से नहीं, जूतों से पहचाने जाते हैं। महापुरुषों के घिसे जूतों में…

Spread the love
बारिश से लबालब भरे एक गड्ढे में पसरे कुत्ते और पीछे खुदाई में जुटी JCB मशीन, चारों ओर कीचड़ और टूटी सड़कें।

खुदा ही खुदा है-हास्य व्यंग्य रचना

गड्डापुर शहर में विकास की परिभाषा गड्ढों से तय होती है। यहाँ खुदाई केवल निर्माण कार्य नहीं, आस्था, राजनीति और प्रशासन की साझा विरासत है।…

Spread the love