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Category: Poems

“एक भारतीय शादी के पंडाल में तंदूर के सामने लंबी, ठुंसी हुई कतार लगी है। हाथ में खाली प्लेट लिए लोग तंदूरी रोटी के इंतज़ार में धक्कामुक्की करते दिख रहे हैं। सबसे आगे एक दृढ़ निश्चयी ‘वीर’ युवक तंदूर से почти चिपककर खड़ा है, पीछे से लोग उसे धकेल रहे हैं, पर वह प्लेट आगे बढ़ाए अडिग खड़ा है, मानो रोटी नहीं, विजय पताका लेने आया हो।”

तंदूरी रोटी युद्ध: वीर तुम डटे रहो

“शादी के पंडाल में तंदूरी रोटी अब सिर्फ़ खानपान नहीं रही, पूर्ण युद्ध बन चुकी है। दूल्हे से ज़्यादा चर्चा उस वीर की होती है,…

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यह कविता भारत-जन के महा स्वरों की गूंज “वंदेमातरम्” से शुरू होकर राष्ट्रहित, देशभक्ति, असल–नकली देशप्रेम, मीडिया की गिरावट, आतंकी तत्वों की धूर्तता और नागरिक कर्तव्यनिष्ठा जैसे मुद्दों पर तेज़ और सीधी चोट करती है। व्यंग्य और राष्ट्रभाव का मेल इसे और प्रभावी बनाता है। यह रचना केवल भावुक नहीं—एक चेतावनी, एक संदेश और एक सख्त सामाजिक निरीक्षण भी है।

जय भारत वंदेमातरम्!वंदेमातरम्!!

यह कविता भारत-जन के महा स्वरों की गूंज “वंदेमातरम्” से शुरू होकर राष्ट्रहित, देशभक्ति, असल–नकली देशप्रेम, मीडिया की गिरावट, आतंकी तत्वों की धूर्तता और नागरिक…

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“एक आधुनिक संत लग्ज़री कार के पास खड़ा है, भगवा वस्त्रों में, गले में रुद्राक्ष और हाथ में मोबाइल, पीछे भक्तों की भीड़ और मंदिर। व्यंग्यात्मक कला में चित्रित संत संस्कृति की विडंबना।”

आधुनिक संत-व्यंग्य कविता

बैरागी बन म्है फिरा, धरिया झूठा वेश जगत करै म्होरी चाकरी, क्है म्हानें दरवेश क्है म्हानें दरवेश, बड़ा ठिकाणा ठाया गाड़ी घोड़ा बांध, जीव रा…

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सूर्यास्त के समय घाट पर छठ मैया की आराधना करते श्रद्धालु, जल में खड़े हुए लोग अर्घ्य दे रहे हैं, पृष्ठभूमि में तिरंगा लहराता है और सूर्य की किरणें भारत के मानचित्र को आलोकित कर रही हैं।

जय छठ मैया! राष्ट्रभक्ति और प्रकृति उपासना का दिव्य पर्व

छठ पर्व केवल आस्था का उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति, राष्ट्र और संस्कृति के प्रति समर्पण का सामूहिक संकल्प है। यह लेख छठ मैया की भक्ति…

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एक रंगीन चित्र जिसमें भक्त लाल चुनरी ओढ़े दीपक जलाते हुए मां दुर्गा को पुकार रहा है, मां अपने नौ रूपों में आकाश से प्रकट हो रही हैं, वातावरण में भक्ति और प्रकाश का समन्वय है।

तेरा लाल मां तुझे पुकारे

कविता “तेरा लाल मां तुझे पुकारे” मां और पुत्र के भावनात्मक रिश्ते का सुंदर चित्र है। इसमें भक्त पुत्र अपने लाल वस्त्रों, फूलों, चुनरिया और…

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एक रंगीन व्यंग्यात्मक कैरिकेचर जिसमें एक नेता मंच पर आंख मिचमिचा रहा है, पीछे सूरत शहर की झलक है, और जनता ताली बजाने की बजाय सीटें घुमा रही है।

आउल जी को भेंट-हास्य व्यंग्य कविता

सूरत की राजनीति में खानदानी गुरुर ने ऐसा पेंच फँसाया कि ‘बाई’ की जगह ‘राड’ निकल गया। जनसभाओं में गुणगान करते-करते सीट हाथ से निकल…

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