चौराहे पर बैठा राजा
—
प्रदीप औदिच्य
आज तक किसी शेर ने नहीं कहा कि वह जंगल का राजा है lहमने उसके हावभाव देख कर उसे ये ताज
पहनाया है । मैने तो तो उसकी ठसक ,धमक ,इज्जत, दबदबे को नहीं देखा पर ऐसा होता होगा ये महसूस
किया है मेरे शहर में चौराहे पर एक “राजा” को देखकर । मैं अब कई दिनों से शहर के चौराहे से सतर्कता
के साथ निकल रहा हूं।चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस की चेकिंग में बिना डरे सामने से निकल लेता हूं ऐसा
इसलिए नहीं कि किसी विधायक का रिश्तेदार हूं ।ऐसा इसलिए कि आम आदमी के भाग्य में नियम का
पालन करना लिखा है । मैं इस देश का आम आदमी हूं।
चौराहे पर घूमते एक भयानक क्रोधित आंख और माथे पर नुकीले हथियार लिए राजा जब अपनी शान
से विराजित होता है सब को डरना पड़ता है।
पैदल आ रहे लोग जब चौराहे से निकलते है। तब उनके बॉडी लैंग्वेज वही होती है जैसे किसी राजा के
सामने से किसी सेवक की।वह बड़े आराम से धीरे धीरे सधे हुए कदमताल करते हुए आसपास से दूरी
बनाते हुए निकलते है।
उस चौराहे पर पूर्व में ऐसे किसी की गुंडागर्दी नहीं थी ।उस समय नगर निगम के पास काम ही नहीं होते थे
तो इधर उधर के ऐसे गुंडों के राजा बनने से पहले ही उस से निपट लेते थे उसे पकड़ कर कांजी हाउस में
भेज देते थे। क्यों कि तब समाज में हो या सड़क किसी भी आवारा के नाक में नकेल डाली जा सकती थी
।फिर नगर निगम का अमला बड़ा तो उसके पास काम बढ़ गए।नगर निगम के लोगों को नेता और
अफसरों के घर पानी टंकी की चिन्ता होने लगी।मंत्री जी के आने पर उनके स्वागत द्वार लगने, झंडे लगने
के काम उनके पास आ गए। उसी समय सड़के साफ हो जाए ऐसे काम आ गए ।बताइए साफ सफाई
जैसे फालतू काम भी नगर निगम के हिस्से में दे दिए।चौराहे पर शहर सौंदर्यकरण की योजना में शामिल
गुमटीनुमा दुकानों को कब्जे कराने का काम भी नगर निगम को करना पड़ता है।
इससे होता ये है कि आम आदमी को उन दुकानों के सुविधा मिल जाती है।नगर निगम को जनता के पैसे
मूत्रालय बनाने जैसे अनुपयोगी काम में खर्च नहीं करना पड़ता।फिर जो वायु प्रदूषण से डरते नहीं है ।वह
भी यहां से गुजरते हुए मास्क लगाते है इस से मास्क लगाने की अच्छी आदत बन जाती है।
उस चौराहे पर एक दिन ये ऊंची पीठ निकाले मजबूत कद काठी के साथ मस्त चाल चलते हुए प्रकट हुए
।पहले तो निकट के दुकानदारों ने इसे अस्थाई घुसपैठ माना ।बाद में बिना नोटिस के रिफ्यूजी जैसे
चौराहे पर जम गए।खाने पीने की नहीं कमी थी ।लोगों ने श्रद्धा से उनके खानपान का ध्यान रखा और
वह पूर्णिमा के चांद की तरह पूर्ण आकार ले चुके थे।
इसके बाद तो आधार कार्ड के साथ उनका स्थाई पता वही चौराहे हो गया ।उन्हें ये पता था कि जब
घुसपैठियों को घर मिल जाते है तो ये सड़क गारंटी के साथ मेरी हो सकती है।
कद काठी से भरपूर होने के बाद उनके एक दम श्याम वर्ण पर एक चमक आ गई थी उनके सींग उतने ही
नुकीले बनकर उभर रहे थे जैसे कोई ठेकेदार माफिया धीरे धीरे विकासशील नेता में परिवर्तित होता
है।इन्होंने ये चौराहे ही क्यों चुना इसके पीछे क्या उनकी भविष्य की योजना रही होगी क्या ये एजेंट बनके
इधर आए वह किसी बात का जवाब नहीं देते क्यों कि उनकी गुर्राती रंभाती धीर गंभीर आवाज में कुछ
समझ नहीं आता।
एक आदमी खुद को लापरवाही ढ़ंग से मस्त अंदाज में चला जा रहा था,उसने राजा को नजर अंदाज
किया।राजा को उसके आगे एक प्रजा का ये अंदाज पसंद नहीं आया ।राजा ने अपने सींगों के अधिकार
का उपयोग करते हुए उसको आसमान दिखाते हुए तीन सेकंड में जमीन दिखा दी। ये राज्य अवज्ञा का
दंड इतनी जल्दी हुआ कि कोई बचाने आया ही नहीं।यही थी अधिकृत घोषणा कि वही है इस चौराहे का
अमरेंद्र बाहुबली ।
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