बहुत कुछ सिखा के जाएगा ये कोरोना वायरस
में कोई अध्यात्मिक व्यक्ति तो नहीं हु पर जब थोडा सा मनन करता हु आखिर इस संकट की घडी से जब पूरा विश्व झूल रहा है…कुछ ऐसा है क्या जो यह कोरोना रुपी राक्षस सिखा हमे सिखा के जाएगा | जैसा की हम सभी जानते है जिन्दगी में होने बाली कोई भी छोटी या बड़ी घटना हमे कुछ न कुछ सिखाती है ..आवश्यकता है तो बस उस पर मनन करने की..

जब कोरोना रुपी महामारी ने पूरे विश्व को स्थिर कर दिया लोगो को एकांतवास झेलने को मजबूर कर दिया तो स्वत ही कुछ बाते जहन में आई है | शयद ये प्रकृति के कुछ नियम है जो हमने तोड़े है…और प्रकृति एक दंडस्वरूप हमारी वास्त्बिक प्रकृति और हमारा उद्देश्य कि क्यों हम इस धरती पर आये है वो सिखाना चाह रही है

१. यह हमे सिखा रही है की हम चाहे किसी भी धर्म मजहब के हो इश्वर को मानते हो या ना मानते हो संसार के किसी भी अमीर या गरीब देश से हो हम चाहे अमीर हो या गरीब हो ,हम चाहे प्रसिद्द हो या अप्रसिध्ह , हमारा व्पबसाय कुछ भी हो प्रकृति सभी को एक बराबर का दर्जा देकर व्यबहार करती है ..प्रकर्ति हम से कोई भेदभाव नहीं करती प्रकृति प्रदत्त उपहार और दंड बराबर मिलता है सभी को . जिस प्रकार से संसार के जाने माने फिल्मकार नेता अमीर इस बीमारी के शिकार हुए बह बहुत कुछ बता देता है
२. प्रकृति की विपदाओं के लिए कोई बॉर्डर नहीं होता कोई सीमाए नहीं होती ,हम सभी एक दुसरे से कनेक्टेड है और किसी एक भी व्यक्ति द्वारा किया खिल्वाड़ प्रकृति से…उसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है. फिर ये सीमाए ,बॉर्डर क्यों. क्यों हम अपनी सीमओं को सुरक्छित कर के हम से कमजोर मुल्को पर अपना दबदबा और निरंकुशता बरकरार रखते है.
प्रकृति का एक सुछ्मा सा कण जिसको कोई पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं विशब के सभी देशो को एक ऐसा पाठ पढ़ा जायेगा ,शयद इस पर पुनर्विचार हो ,शयद विशब की नीतिया बदल जाए
३. हमे ये भी सिखाएगा की कितना महत्वपूर्ण है अपना स्वस्थ्य. शायद अब लोग ज्यादा अपने स्वस्थ्य पर ख्नापान पर ध्यान दे. जिस प्रकार से हम खानपान में भी प्रकृति प्रदत पोष्टिक आहार छोड़कर कृत्रिम केमिकल्स और प्रिजर्वेतिब बाला फ़ूड खा रहे है वो भी प्रकृति के उपहारों का एक प्रकार से मजाक उडाना है. कोरोना बीमारी का प्रसार इस प्रकार के दोषपूर्ण खाने से ही हुआ ये हमे नहीं भूलना चाहिए
४.यह हमे जरूर सिखा के जायेगा की जिंदगी कितनी अनिश्चित और छोटी है. इस ब्रम्हांड के जीवन काल की तुलना में अत्यंत सूछ्म .यह हमे ब्रम्हांड में हमारे अस्तित्व के बारे में भी सिखा जाएगा की वास्तब में ब्रम्हांड में हमारी भोतिक आकार एक डस्ट पार्टिकल के बी हजारवे हिस्से के बराबर नहीं है.ब्रह्म्हांड की साइज़ के हिसाब से अगर देखे तो हमारी साइज़ और वायरस की साइज़ में कोई ज्यादा अंतर नहीं और येही रीज़न है की ये वायरस इतना इम्पैक्ट एक मानव शरीर में कर पाया
तो क्यों न इस छोटे से जीवन काल को व्यर्थ ही वितीत करने के बजाय दूसरो की हेल्प करने में,असहयो के सहारा बनने में ब्यतीत करे. जीवन को सार्थक करे
५.यह हमे ये भी सिखाएगा इस किस तरह हम इस भौतिकता की दौड़ में हम इतने भागे जा रहे है अब कहा गयी इच्छा ब्रांडेड सूट पहने की,रेस्मेंटोरेंट खाना खाकर बढ़िया सी टिप देने की,लक्ज़री ७ स्टार होटल में वीकेंड स्पेंड करने की ,स्पा जिम रेव पार्टी |विपती के समय हमारी जरूरते बहुत सीमित हो जाती है सिर्फ रोटी कपडा और मकान के सिवाय हमे कुछ जरूरत नहीं होती.
६ हमे सिखाएगा की परिवार कितना जरूरी है..वो ही परिवार जिसे हम आधुनिकता और भोतिक्वाद की अंधाधुन्द दौड़ में हमशा नकारते आये है आज संकट की घडी में हमे उस परिवार के साथ ही अपना समय व्यतीत करने को मजबूर कर दिया. एक तरह से ये घर वापसी नहीं है तो क्या है
७. हमे जरूर अहसास होगा की हमारा असली काम वो है जिसे हमे करने से खुशी मिलती है…आज जब हम घर बैठे है तो जो हमारा दिल खुश होता है हम बो काम कर रहे है…क्रिएटिविटी अपनी चरम सीमा पर है.
८ वायरस ने हमारे अहंकार हमारी मह्त्वाकान्छाओ को चूर चूर कर दिया कितने भ्रम हम जिंदगी में पाल लेते है सेल्फ imposed या हमारे करीबियों के द्वारा बनाए हुए,,में ऐसा हु, दुसरे से अलग हु मेरी ये क्वालिटी है जो मुझे दूसरो से अलग बनाती है…एक वायरस ने सभी को एक धरातल पर लाकर छोड़ दिया…दीवारे टूट गयी…अहंकार चकनाचूर हो गए बस सभी सोच रहे है तो सिर्फ ये की कैसे अपने अस्तित्व को बचाए रखे

९. इस विपदा की घड़ी में भी हमे चॉइस मिली है…हम चाहे तो सेल्फिश होकर सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाए रखने का सोचे ,अपने लिए संग्रह ,करे लाइफ को सस्टेन करने के लिए,,,या हम चाहे तो औरो की भी मदद कर सकते है ..वो मदद कुछ सहानुभूति भरे उत्सह भरे धर्य दिलाने बाले शब्द भी हो सकते है जो इस समय किसी रामबाण ओषधि का काम कर सकते है किसी निराश जीवन के लिए वो दूसरो की सहायता कर के अपनी जमा पूँजी में से एक भाग गरीबो निश्रहायो पर खर्च करके..ये मौका है
१० यह हमे ये भी सिखाएगा की कैसे विपदा की घडी हम से आशा करती है की हम विवेकपूर्ण संयम धर्य से परिस्थितियों पर गहन विचार बिमर्ष करे और बजाय पेनिक होने के ये देखे की ऐसे विश्ब्व्यापी संकट पूरी मानवता पर पहले भी कई बार आ चुके है और हर बार मानवता अपनी सुझबुझ और विवेक से उबारती आई है शायद इस बार भी हम जीत पाए ,लेकिन अगर हम पैनिक होकर इसे डील करेंगे तो निश्चित ही खुद को और परिवार समाज को संकट में ड़ाल देंगे
११. इस विपदा की घडी में बहुत कुछ सोचने समझने का समय है अपनी गलतियों को समझने का समय है गलती यो से सीखने का समय है अपने आपको सुधारने का समय है यहाँ हमारी एक नई शुरुआत हो सकती है
१२. तनिक विचार करो आपने इस प्रथ्वी का प्रकृति का जो खिलवाड़ हमने किये है ,कही प्रकृति का ये दंड तो नहीं..कितने जंगलो को काट कर हमने प्रथ्वी की परतो को नंगा कर दिया,हमने हवाओं को जहरीला कर दिया,पानी को प्रदूषित किया क्या ये समय नहीं है की हम भौतिकता की अंधाधुन्द दौड़ में अपने घर को और अपने वताब्रण दोनों को बजाये सजने संवारने के बल्कि रहने लायक ही नहीं छोड़ रहे है

अंत में में येही कहना चाहूँगा की हर शुरुआत का एक अंत होता है और हर अंत की एक नयी शुरुआत. पैनिक न हो बल्कि धरी और विशवास से इंतज़ार करे नए सूरज का जो लेकर आएगा नयी उमंग नया उत्साह नयी आशा की किरण
यहाँ भी हमारे पास दो चॉइस है..हम इस संकट से कुछ सीखे या नहीं सीखे.इसे संकट माने या एक दिशा निर्देशक ये हमारे ऊपर निर्भर है
सभी की सुरक्षा और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
(लेखक, व्यंग्यकार, चिकित्सक)
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