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दिल तो पागल है, दिल दीवाना है

Dil to pagal hai dil deevana hai

दिल तो पागल है, दिल दीवाना है

डॉ.श्रीगोपाल काबरा

क्या आप जानते हैं –

– कि दिल के चारों खानें रक्त से भरे होते हैं लेकिन खुद दिल को अपनी आक्सीजन और ऊर्जा की आवश्यकता के लिए रक्त यहां से नहीं मिलता। जल बिच मीन पियासी।

– कि जैसे शरीर के बाकी अंगों को रक्त धमनियों द्वारा मिलता है वैसे ही हृदय भी कोरोनरी धमनियों पर रक्त आपूर्ती के लिए निर्भर करता है।

– कि ‘कारोना’ मुकट को कहते हैं और कोरोनरी धमनियां हृदय पर एक मुकट की तरह होती है इसी लिए इन्हें कोरोनरी आर्टरीज (धमनियां) कहते हैं। विकृत होने पर कांटों का ताज।

– कि दिल जब रक्त पम्प करता है तो पहले सारी शरीर की धमनियों में भेजता है, कोरोनरी धमनियों में तो अंत में ही बचा हुआ 5 प्र.श. आता है। कुशल भारतीय अन्नपूर्णा ग्रहणी की तरह सभी परिवार को खिलाने के बाद ही स्वयं की आपूर्ती।

– कि कोरोनरी धमनियां इस मायने में स्वार्थी होती हैं कि अपना रक्त अन्य कोरोनरी धमनियों से साझा नहीं करती। शरीर की अन्य सभी धमनियां अपनी शाखाओ द्वारा एक दूसरे से जुड़ी होती हैं (एनास्टोमोसिस), रुकावट होने पर इन शाखाओं से  रक्त की आपूार्ति हो जाती है। स्वार्थी कोरोनरी में ऐसा नहीं हो पाता।

–  कि जब भी कोई कोरोनरी धमनी अवरुद्ध हो जाती है तो उस द्वारा संचित हृदय का भाग आक्सीजन के अभाव में मर जाता है – हृदय धात – मायोकार्डियल इन्फाकर्शन होता है।

– कि कोरोनरी धमनी में रुकावट होने पर जब भी हृदय को आवश्यकता अनुरूप रक्त से आक्सीजन नहीं मिलती, हृदय की मांसपेशी दर्द से कराहती है – यही होता है एन्जायना – हृदयशूल – मुकट धमनियां कांटों का ताज। मृत हो जाने के बाद  मांसपेशी में दर्द नहीं होता।

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-ए-नीमकश को, ये खलिश कहां से होती जो जिगर के पार होता।

– कि हृदय का नियत्रण केन्द्र मस्तिष्क के निचले भाग, ब्रेन स्टेम में होता है। स्वांस केन्द्र भी यहीं होता है। ब्रेन डेथ या ब्रेन स्टेम डेथ में जब ये दोनो केन्द्र खत्म हो जाते हैं तो स्वांस रुक जाता है लेकिन हृदय बिना केन्द्रक की सहायता के स्वतः भी धड़कता रह सकता है। लेकिन ऐर्सी स्थति में न रक्त फेफड़ों में जा पाएगा और न ऑक्सिकृत हो कर वापस आयेगा। और शीघ्र ही हृदय भी धड़कना बंद कर देगा।

– कि ऐसी अवस्था में अगर रोगी को वेन्टीलेटर – क्रत्रिम स्वांस यंत्र – लगा दें तो दिल धड़कता रहेगा, फेफड़ों में आक्सीकृत होगा और पूरे शरीर को रक्त प्रवाह चालू रहेगा, आक्सीजन मिलेगी और सब अंग जीवित रहेंगे।

– कि कृत्रिम स्वांस यंत्र के सहारे धड़कते दिल वाले व्यक्ति को कानूनन मृत माना जाता है। कानून में मस्तिष्क मृत होना ही मृत्यु की परिभाषा और प्रमाण होता है, हृदय की धड़कन बंद होना नहीं।

– कि कृत्रिम यंत्रों के सहारे ऐसा मस्तिष्क-मृत व्यक्ति मृत होता है लेकिन उसके सारे अंग जीवित होते हैं।

– कि प्रत्यारोपण के लिए केवल ऐसे जीवित अंग ही काम में लिए जा सकते हैं। जब इन्हे निकाला जाता है, अंगों में रक्त प्रवाह चालू होता है, वे जीवित होते हैं।

– कि मृत शरीर से केवल कॉर्निया (आंख की पुतली के सामने की पारदर्शी परत) को ही प्रत्यारोपण के लिए लिया जा सकता है, कारण इसमें रक्त संचार होता ही नहीं, इसे जीवित रहने के लिए रक्त की आवश्कता ही नहीं होती। मृत्यु के बाद भी कोर्निया कुछ घंटों तक जिन्दा रहते हैं जब कि बाकी सब अंग मिनटों में ही मृत हो जाते हैं।

– कि हृदय एक मिनट में 70 बार धड़कता है, औसत 70 वर्ष के जीवन में 70ग60ग24ग365ग70 (2,575,440,000) बार और इतने समय में इतना रक्त पम्प करता है कि पानी के तीन टेंकर भर जायें। इतनी ऊर्जा खत्म करता है कि एक यान चांद पर जाकर वापस आजाए। दिल नाजुक नहीं होता।

– कि हृदय की लय और गति सामान्यतः मस्तिष्क निंयंत्रित होती है। अनियंत्रित दिल पागल दीवाने सा धड़कता है। तुनक मिजाज नहीं होता पर सहनशक्ति की भी हद होती है।

– कि चिकित्सा शास्त्र में केवल एक ही स्थिति ऐसी होती है जब रोगी दिल फटने से मरता है और वह है कार्डियक अन्युरिज्म का रप्चर होना। यह करोड़ो में से एक में होता है। कवियों और आशिकों कि दिल की बात और है।

डॉ. श्रीगोपाल काबरा

15, विजय नगर, डी,-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर-302017   मोबाइलः 8003516198    

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  1. Pingback:अविश्वसनीय पर सच मस्तिष्क के विलक्षण क्रियाकलाप-लेख-डा एस जी काबरा - Baat Apne Desh Ki

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