पत्थर हूं मैं ,एक मामूली सा पत्थर हूं मैं ,
छोटा हूं या बड़ा हूं मैं ,एक मामूली सा पत्थर हूं मैं ।
रास्ते का पत्थर हूं मैं,2
कोई मुझे बिछाता है ,
कोई मुझे ठुकराता है ।
मंदिरों का पत्थर हूं मैं ,2
कोई मुझे पूजता है ,
कोई मुझसे कूटता है ।
नदियों का पत्थर हूं मैं ,2
कोई मुझे संभालता है,
कोई मुझे संवारता है ।
पहाड़ों का पत्थर हूं मैं ,2
कोई मुझे तराशता है ,
कोई मुझे बिखेरता है ।

विद्या पोखरियाल स्वरचित रचना
बैकुंठपुर छत्तीसगढ़
bahut shandaar kavita