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घातक आयनीकारक विकिरण (आयोनाइज़िंग रेडिएशन)-डॉ. श्रीगोपाल काबरा

ionisation radiation danger

घातक आयनीकारक विकिरण (आयोनाइज़िंग रेडिएशन)
डॉ. श्रीगोपाल काबरा

मेरी क्यूरी ने 1902 में रेडियम का आविष्कार किया। इससे गामा किरणें निकलती हैं। शरीर के आर-पार जाती इन किरणों से हड्डियाँ देखी जा सकती हैं। कोशिकाओं के पार जाती इन आयनीकारक किरणों से कोशिका की जीन (डी.एन.ए.) संरचना बिगड़ सकती है जिसके कारण समयोपरान्त कैन्सर होता है। विभाजित होती कोशिकाएँ अधिक संवेदनशील होती हैं, जो बच्चों और महिलाओं में अपेक्षाकृत अधिक होती हैं। मेरी क्यूरी को, जो रेडियम की ट्यूब्स जेब में रखा करती थीं, इसी कारण रक्त कैन्सर हुआ। इसी रेडियम को एक पेण्ट में मिला कर घड़ी की सुइयाँ और अक्षर पेण्ट किए जाते थे, जिससे वे रात में भी चमकते और दिखते रहें और अंधेरे में भी समय देखा जा सके। ब्रुश से पेण्ट करने वाली ए महिलाएँ ब्र्रुश को मुँह में लेकर उसकी नोक तीखी करती थीं। इन महिलाओं के जबड़े की हड्डी गल गई, जीभ, होंठ जल कर सिकुड़ गए और समयोपरान्त उनको रक्त व अन्य कैन्सर हुए। परीक्षण प्रयोगों से अब यह सिद्ध हो गया है कि आयनीकारक विकिरण (आयोनाइज़िंग रेडिएशन) निश्चित कैन्सर कारक हैं, एक्स-किरणों की मात्रा के अनुपात में। वातावरण में ए किरणें परमाणु न्यूक्लियर केन्द्र और यूरेनियम खनन से आती हैं। मानव निर्मित एक्स-रे मशीनें, कैट स्कैन मशीनें आज इन किरणों का सबसे बड़ा स्रोत है जिनका अनियमित, असंयत और अन्धाधुन्ध घातक प्रयोग हो रहा है। एक्स-किरणों से होने वाले प्रमुख कैन्सर हैं – रक्त कैन्सर, थायरॉयड कैन्सर और स्तन कैन्सर। इससे सन्तति में अक्यूट ल्यूकीमिया (बच्चों में रक्त कैन्सर) होने के प्रमाण हैं।
एक्स-रे से सावधान
चिकित्सा में निदान हेतु एक्स-रे (‘क्ष‘-किरणों) का प्रयोग आज एक आम बात हो गई है। देश के अनपढ़ ग्रामीण को भी इसकी जानकारी है और वह ‘‘डाक साब, फोटू उतरवा कर देख लो‘‘ जैसा अनुरोध लेकर आता है। इसके उŸारोŸार बढ़ते व्यापक प्रयोग से यह एक आम धारणा हो चली है कि ‘एक्स‘-किरणों से निदान की विधा सर्वथा नुकसान रहित है। इस भ्रामक धारणा को अगर ठीक नहीं किया गया तो गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।
निरोधक सम्भाग की रिपोर्ट का प्रतिवेदन
भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र का एक विभाग है ‘डिविज़न आफ़ रेडियोलोजिकल प्रोटेक्शन‘ यानी एक्स-रे दुष्परिणाम निरोधक संभाग। इस विभाग का कार्य है कि ऐसे अस्पतालों और सभी चिकित्सा एवं निदान केन्द्रों का, जहाँ ‘एक्स-रे‘ उपयोग हो रहा हो, सर्वेक्षण एवं निरीक्षण करे और उचित सुझाव एवं नियमों के माध्यम से एक्स-रेज के कुप्रभाव को सीमित रखने में सक्रिय सहयोग दे। इस विभाग द्वारा पारित 1976 की के एक प्रतिवेदन के अनुसार देश के 7400 केन्द्रों में तब अनुमानतः 10400 एक्स-रे मशीनें काम आ रही थीं, 400 बड़े चिकित्सालयों में और शेष सभी अन्य छोटे चिकित्सा एवं निदान केन्द्रों में। दुर्भाग्य से साधनों के अभाव में ‘क्ष‘ कुप्रभाव निरोधक विभाग 1976 तक 15 प्रतिशत से भी कम, केवल 1010 एक्स-रे प्रयोग करने वाले केन्द्रों का निरीक्षण कर पाया था। इनमें भी अधिकांश में स्थिति चिन्ताजनक थी। केन्द्र के द्वारा उपलब्ध सूचना के अनुसार आज देश में 70,000 एक्स-रे मशीनें हैं जिनमें से 4000 तो कैट स्कैन मशीनें हैं। प्रति वर्ष 1200 से 1500 मशीनें नई लग रही हैं। जयपुर जैसे छोटे शहर में लगभग 700 एक्स-रे मशीनें हैं जिनमें 30 कैट स्कैन हैं। ए मशीनें देश में घातक आयोनाइज़िंग रेडिएशन का प्रमुख स्रोत है। इसकी घातकता और मात्रा, मोबाइल टावर्स, माइक्रोवेव उपकरणों, टेलीविज़न व कम्प्यूटर स्क्रीन से होने वाले नॉन-आयोनाइज़िंग रेडिएशन से हज़ारों गुना अधिक है।
एक्स-रे कुप्रभाव निरोधक विभाग द्वारा समय-समय पर प्रकाशित एवं वितरित विज्ञप्तियों के अनुसार एक बात बड़ी साफ़ तौर से जान लेनी चाहिए कि एक्स-रे का निदान हेतु उपयोग भी बिना कुप्रभाव के नहीं है। हर एक्स-रे का प्रयोग शरीर पर अपना कुप्रभाव छोड़ता है और सारी उम्र होने वाली एक्स-रे का असर योगात्मक होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दो एक्स-रे के बीच समय का कितना अन्तराल था। साथ ही यह भी विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि एक्स-रेज के कुप्रभाव के दुष्परिणाम की गम्भीरता अथवा भयंकरता उसकी मात्रा पर निर्भर नहीं करती है। वरन् सम्भावित दुष्परिणामों की व्यापकता अवश्य एक्स-रेज के योगात्मक प्रभाव से बढ़ती जाती है। मिसाल के लिए केवल एक एक्स-रे से भी अगर हुआ तो कैन्सर होगा। लेकिन शरीर के विभिन्न अंगों में कैन्सर होने का अनुपात भी उसी मात्रा में बढ़ता जाएगा जितना अधिक एक्स-रे होगा।
एक्स-रेज के कुप्रभाव के दुष्परिणाम का सूक्ष्म अध्ययन किया गया। जिन लोगों के एक्स-रे हुए उनका वर्षों तक अध्ययन कर सावधानी से आँकड़े इकट्ठे किए गए कि उनमें कितनों को कैन्सर हुआ और किस अंग का कैन्सर हुआ। उन आँकड़ों का बड़ी सावधानी से वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया। इन आँकड़ों की तुलना उन लोंगों में होने वाले कैन्सर के आँकड़ों से की गई जिनका कभी भी एक्स-रे नहीं हुआ। साथ ही इसका भी तुलनात्मक अध्ययन किया गया कि क्या अधिक एक्स-रे होने वालों में कैन्सर अनुपात में अधिक होता है?
अजन्मे शिशु पर भी हमला
अध्ययन एवं अन्य प्रयोगों से यह निर्विवाद सिद्ध हो गया है कि एक्स-रेज के प्रभाव का दुष्परिणाम दो तरह का होता है। उसमें कैन्सर होने की सम्भावना बढ़ जाती है और दूसरे उसके सन्तान में जन्मजात विकृतियाँ होने की और उनमें कैन्सर होने की सम्भावना बढ़ जाती है। जहाँ तक स्वयम् का प्रश्न है, एक्स-रे से होने वाले लाभ से उसके शरीर और जीवन की रक्षा हो सकती है लेकिन अजन्मे शिशु पर होने वाले दुष्परिणाम की तुलना में उसे कोई लाभ नहीं होता।
एक्स-रे के दुष्परिणाम गम्भीर अवश्य हैं लेकिन उनकी व्यापकता काफ़ी सीमित है। आँकड़ों के अनुसार जहाँ 30 वर्ष आयु की दस लाख महिलाओं में साधारण रूप से दस हज़ार में कैन्सर होता है, अगर सभी दस लाख महिलाओं के पेट का केवल एक एक्स-रे उतारा जाए तो 6 अधिक महिलाओं को रक्त कैन्सर, एक अधिक महिला को स्तन कैन्सर और उनकी 48 अधिक सन्तानों में जन्मजात विकृतियाँ होंगी। यह मात्र एक एक्स-रे के फलस्वरूप हुआ। जितने अधिक एक्स-रे होंगे, दुष्परिणाम की मात्रा उसी अनुपात से बढ़ते जाएँगे। साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मशीन की ख़राबी, उनका ग़लत ढंग से प्रयोग और ‘क्ष‘-किरण के कुप्रभावों को कम करने के साधन अगर सुचारु रूप से न बरते जाए तो दुष्परिणाम की मात्रा और भी बढ़ जाएगी। लेकिन दुष्परिणाम तत्कालिक न होकर 5 से 30 वर्ष बाद अथवा सन्तति में होता है अतः इसे गम्भीरता से नहीं लिया जाता। फलस्वरूप एक्स-रे निरोधक नियम एवं साधनों की अवहेलना हमारे चिकित्सा केन्द्र में आम बात हो गई है।
दुष्प्रभावों को सीमित करें।
मिसाल के तौर पर सामूहिक रूप से ‘स्क्रीनिंग‘ करना वर्जित है। कारण, एक्स-रे का उपयोग मात्र किसी रोग विशेष के निदान के लिए ही किया जाना चाहिए। अगर सौ में से दो की बीमार होने की आशंका हो तो उन्हें ढूँढने के लिए बाक़ी 98 को ‘एक्सा‘-किरण के कुप्रभाव से व्यर्थ प्रभावित करना ग़लत है। ‘स्क्रीनिंग‘ वर्जित करने का एक कारण यह भी है कि इसका प्रभाव फ़ोटो (प्लेट) उतारने से कई गुणा अधिक होता है। लेकिन हमारे देश में और तो और, डाक्टरी में भर्ती होने वाले छात्र-छात्राओं की भी सामूहिक ‘स्क्रीनिंग‘ होती है।
नियम है कि जब किसी व्यक्ति का एक्स-रे हो रहा हो, तो वहाँ उसके अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को नहीं होना चाहिए। कारण एक्स-रेज स्टील की मेज़ और फ़र्श से टकरा कर चारों ओर छिटकती हैं और हर ऐसे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती हैं जो उस कमरे में खड़ा है। एक्स-रेज कक्ष में काम करने वाले सभी व्यक्तियों को जस्ते के कोट पहनने चाहिए। लेकिन एक्स-रे के कमरे में भीड़ और बिना जस्ते के कोट पहन काम करने वाले लोगों का होना आज आम बात है।
नियम है कि किसी भी महिला के पेट का एक्स-रे साधारणतया मासिक शुरू होने से दसवें दिन के दौरान में ही होना चाहिए, उसके बाद नहीं। अगर मरीज़ की हालत ही ऐसी हो कि तुरन्त एक्स-रे करना ज़रूरी हो तो बात अलग है। एक्स-रे लिखने वाले डाक्टर से यह अपेक्षा की जाती है कि वह मरीज़ से जानकारी लेकर पर्ची पर लिखे और एक्स-रे करने वाला तकनीशियन इसको देखने के बाद ही एक्स-रे उतारे। कारण अगर उस समय गर्भ ठहर गया है तो कुछ कोशिकाओं के अति संवेदनशील भ्रूण के लिए एक्स-रे की मात्रा घातक सिद्ध हो सकती है। बच्चे में जन्मजात विकृतियाँ और जन्मोपरान्त कैन्सर होने की सम्भावना प्रबल होती है। गर्भवती महिलाओं को तो एक्स-रे मशीन के आस-पास भी नहीं जाना चाहिए। लेकिन यह सभी जानते है कि हमारे अस्पतालों में ऐसा नहीं होता।
नियम है कि जब एक्स-रे हो रहा हो तो कमरे का दरवाज़ा बन्द होना चाहिए, बाहर लाल बत्ती जलनी चाहिए। एक्स-रेज लकड़ी के दरवाज़े के पार जा सकती हैं अतः नियम है कि ऐसे हर दरवाज़े पर लेड शीट लगी होनी चाहिए। वरना बाहर खड़े सभी को किरणें प्रभावित करेंगी। दुर्भाग्य से देश में इन सुरक्षात्मक नियमों-क़ानूनों का प्रावधान होने बावजूद इनकी अनुपालना कराने की कोई व्यवस्था नहीं, हालाँकि इसका भी क़ानून में प्रावधान है। फलस्वरूप जैसे धूम्रपान के धुएँ से, सिगरेट न पीने वाले सामान्यजन प्रभावित होते हैं (पैसिव स्मोकिंग) और उन्हे कैन्सर होता है, उसी प्रकार देश में एक्स-रे के कुप्रभावों को, रोगी नहीं, सामान्य जन अधिक भुगत रहे हैं। बच्चों में होने वाले रक्त कैन्सर की बढ़ती आघटन दर का एक कारण यह भी है। कितने और कैन्सर, कितनी जन्मजात विकृतियाँ इस कारण से हो रही हैं इसका तो आकलन ही नहीं होता। तम्बाकू सेवन से होने वाले कैन्सर व अन्य रोगों का आकलन होता है। बचने और बचाने के लिए प्रोग्राम चल रहे हैं। सार्थक भी हुए हैं।
बार-बार एक्स-रे, शरीर के विभिन्न भागों के अनेक एक्स-रे, अन्य अस्पतालों में जाने पर दुबारा एक्स-रे आदि भी नहीं होने चाहिए। एक्स-रेज कुप्रभाव निरोधक समिति के सुझाव के अनुसार हर प्रान्त में विशेषज्ञों की समिति होनी चाहिए जो समय-समय पर एक्स-रे केन्द्रों का निरीक्षण एवं जाँच कर इस बात का ध्यान रखे कि मशीनों के ठीक रख-रखाव, उपयोग एवं निरोधक नियमों का पालन सुचारु रूप से हो रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि प्रान्त के एक चिकित्सा सचिव जब दुर्घटनाग्रस्त होकर भर्ती हुए तो कुछ ही सप्ताह में उनके सारे शरीर के दर्जनों एक्स-रे उतारे गए।
एक्स-रे हानिरहित नहीं है, केवल ज़रूरी होने पर ही करवाना चाहिए। यह सत्य है कि एक्स-रेज केे कुप्रभाव का दुष्परिणाम औसतन 10000 में से एक पर होता है लेकिन वह एक आप, मैं या हमारा बच्चा हो सकता है।

डॉ. श्रीगोपाल काबरा
!5, विजय नगर, डी-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर-302017 मोबाइलः 8003516198

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