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“मजे की राजनीति: भारतीय जीवन का मस्ती भरा दर्शन”

A cheerful cartoon caricature of a middle-aged Indian man in a yellow shirt and dhoti, clapping joyfully with a wide smile and expressive eyes.

भारतीय आम आदमी की दुनिया एक ऐसी मस्तखोर, रंगीन मिजाज़ी दुनिया है, जहाँ हर काम में मस्ती और मौज का तड़का लगाना अनिवार्य है। हैप्पीनेस इंडेक्स में भले ही हमें दूसरे देशों से पीछे दिखाया गया हो, लेकिन यह महज़ दिखावा है। वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स के स्थापित पैमाने एक आम भारतीय के रग-रग में बसी मस्तीयत और मनोरंजन की गहरी चाह को कभी नहीं पढ़ पाए। यहाँ के बाशिंदे मानते हैं कि जिस काम में मज़ा नहीं, वह काम करना ही बेमानी है। मज़ा केवल कार्य करने में ही नहीं, बल्कि देखने, सुनने और महसूस करने में भी समाहित होना चाहिए। कहते हैं न, “जीवन एक सज़ा है, अगर इसमें मज़ा नहीं।” जीवन के चार प्रयोजन—धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष—में भी मज़े का समाहित होना अत्यंत आवश्यक है।

कहते हैं, “जहाँ चार यार मिल जाएँ, वहीं रात हो गुलज़ार।” मैं कहता हूँ, चार की ज़रूरत नहीं—एक आप हों, एक दूसरा यार “मज़ा” आ जाए, तो फिर महफ़िल लूटने से कोई नहीं रोक सकता! लोग शिकायतें कीर्तन, लंगर, समारोह, रैली, फ़िल्म या सत्संग से तभी करते हैं, जब उन्हें लगता है कि वहाँ ‘मज़ा नाम का यार’ नहीं आया।

अब तो राजनीतिक पार्टियाँ भी अपने चुनावी घोषणा पत्रों में ‘खटाखट’ और ‘फटाफट’ इस मज़े को जनता को परोसना चाहती हैं। और भोली-भाली जनता इस मज़े के चक्कर में मंत्रमुग्ध होकर अपनी आँखें मूँदे ‘अच्छे दिनों’ के आने का इंतज़ार कर रही है। अब जब मज़ा आ रहा है, तो अच्छे दिन भी आ ही जाएँगे!

आप इसे चाहें तो कुछ विदेशी अलंकारों जैसे “किक”, “ट्विस्ट” का नाम दे दीजिए, परंतु असली भारतीय ज़िंदगी में यह मज़ा अपने मौलिक रूप में ही व्याप्त है। आम आदमी को आप दिनदहाड़े लूट लीजिए, बस उसे मज़ा दिला दीजिए। विकास के वास्तविक पैमाने तो सिर्फ़ सरकारी आँकड़े भरने के काम आएँगे, लेकिन वे आम जनता के मन को नहीं भर सकते! इस उदासीन लोकतंत्र में अगर कोई जीवन्तता है, तो बस इसी ‘मज़ा तत्व’ की संजीवनी बूटी से, जिसे देश के कर्णधार, समाज के ठेकेदार, सरकार, पत्रकार और कलाकार—घोंट-घोंटकर पिला रहे हैं। बाकी लोकतंत्र तो चलेगा ही। हमारे यहाँ एक कहावत है— “भैंस को कांकड़े और सरकार को आँकड़े खिलाते जाओ”, यही है असली लोकतंत्र!

एक बात पक्के  तौर पर कहें मित्र-दरअसल  लोकतंत्र के चारों  स्तंभ—न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और पत्रकारिता—देश की नब्ज़ को पहचानकर आम जन को भरपूर मज़ा दिलाने में जुटे हुए हैं।

अब जब नाम ही मनोरंजन का है, और जब तक ‘मन’ नहीं रंजेगा, तब तक वह काहे का मनोरंजन? इस बात का विशेष ध्यान हमारे न्यूज़ चैनलों से लेकर धर्मप्रचारकों, शिक्षाविदों, कलाकारों और राजनेताओं तक—सब रखते हैं। एक ही राग लोकतंत्र के घिसे-पिटे पियानो पर बजाया जा रहा है— “एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट!”

टीवी न्यूज़, प्रिंट मीडिया हो या मुख्यधारा का मीडिया, क्या नहीं कर रहे! खबरों को मसालेदार और चटपटा बनाकर परोसा जा रहा है। न्यूज़ चैनलों पर 24×7 मज़े की मौकरी लगी हुई है! आपको मिलेंगे—कव्वाली शो, स्टैंडअप कॉमेडी, और सबसे ख़ास—टीवी डिबेट सेशन, जिनमें बैठे हैं कुछ ख़ास मज़ेदार लोग, जिन्हें पार्टी प्रवक्ता कहा जाता है। गालियाँ देने, शोर मचाने और ड्रामा करने में माहिर ये सभी, क्या मजेदार मजा परोसते हैं मित्र ।

कई मित्र कहते हैं—“मज़े के साथ खबर भी तो हो।” लेकिन नहीं मित्र! खबर नहीं है, तो बना दी जाएगी। जब तक मज़ा है, तब तक सब जायज़ है। खबरों के लिए हमने राजनीतिक गलियारों में बिछा दी है खबरों की बिसात। रिपोर्टर को टारगेट दिया गया है—शाम तक कोई खबर नहीं लाया, तो खुद ही खबर बन जाएगा! लो आ गई खबर—‘सनम बेवफा निकली!’ अब उसका लाइव कोर्ट ट्रायल टीवी डिबेट में ही चलेगा। अपराधियों की तहकीकात भी वहीं होगी और फैसला भी वहीं सुनाया जाएगा। मज़े की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी।

आपके मज़े के लिए डिबेट को बना दिया गया है नवाबों के मुर्गों की लड़ाई का लाइव शो। जाइएगा नहीं, कहीं छोड़कर हमें। आप हैं की चैनल बदलते रहते हैं —कहाँ जायेंगे मित्र , दूसरे चैनल पर भी कोई मुर्गा लड़ा  रहा होगा! हमारा मुर्गा लड़ाने वाला एंकर विशेषज्ञ है। मुर्गे सिर्फ लड़ते ही नहीं ,पंख ही नहीं फडफडाते —गालियाँ देते ही हैं और खाते भी  हैं। देखिए न, असली खेल हमारे चैनल पर!

“खबरें कम, सनसनी ज़्यादा; विचारशील बहस कम, तू-तू, मैं-मैं ज़्यादा!” यही पहचान है। इसलिए ‘गालीवाली मैडम’ आज हमारे चैनल पर! हमारे डिबेट शो को नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से बेस्ट एक्टिंग का अवार्ड मिला है। इस बार के सिने अवॉर्ड्स में भी हमारी प्रविष्टि दी जाएगी।

ज्ञान भी अब मज़े की  भट्टी में  पककर पचने लायक होता है। ज्ञान मज़ेदार न हो तो चलेगा, परोसने  वाला मज़ेदार हो तो  विद्या रानी को  निसंकोच  आँख, कान, नाक और सभी इंद्रियों से ग्रहण किया जा सकता  है।

पोस्ट्स, ट्वीट्स और अपडेट्स मज़े के वायरस से संक्रमित होकर ही वाइरल होने की संभावना पाते हैं। वह मज़ा जो कभी वेश्याओं की बंद कोठरियों में परोसा जाता था, अब खुलेआम और गर्व से सार्वजनिक मंचों पर पेश किया जा रहा है। नजराने के तौर पर अब कोई सोना-चाँदी या मोटरगाड़ी नहीं माँगता—बस लाइक्स और शेयर्स बटोरकर ही घर चलाया जा रहा है।

भारतीय आम आदमी तो बेचारा दिन भर इसी मज़े की खोज में रहता है—चाहे कार्यस्थल हो या धार्मिक और प्रेरक सभाएँ। कभी पड़ोसन की नजरों में, कभी थक-हारकर लौटते वक़्त दो घूंट में, तो कभी सड़क पर हो रही जूतम-पैजार को बिना टिकट देख लेने में, कुछ न कुछ अपने मज़े का जुगाड़ कर ही लेता है।

हमारे धार्मिक गुरुओं और प्रेरक वक्ताओं की प्रस्तुतियाँ भी अब बिना ‘स्टेज परफ़ॉर्मेंस’ के अधूरी लगती हैं। वक्ताओं को अब व्यास पीठ पर बैठकर नहीं, बल्कि स्टैंडअप कॉमेडियन की तरह प्रस्तुतियाँ देनी पड़ती हैं—तभी यह ‘मज़ा प्रदायिनी’ हो सकती है।

संगीत, नृत्य, कोरस गाती सुंदर बालाएँ, वाद्य यंत्रों की ताल और उत्तेजक विचारों के साथ इनके प्रवचन में ऐसा मंच सजाया जाता है कि मत पूछिए मित्र! यह धर्म को भी बाज़ार की “मोस्ट सेलिंग प्रोडक्ट” बनाने का तरीक़ा बन गया है। झिलमिल सितारों से सजे सत्संग पंडालों में मज़े का भरपूर प्रसाद परोसा जाए, इसके लिए डीजे साउंड की व्यवस्था और भजनों को फिल्मी गानों की धुन में पिरोकर “राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट!” के भाव से मज़े के मज़े लूटे जा रहे हैं।

तो मित्रों, मज़ा आया या नहीं?

आपको मालूम है, मैंने भी मज़े से सेटिंग कर रखी है मित्र! साहित्य की सूखी सिवइयाँ भी बिना मज़े की चाशनी में लपेटे परोसें तो भला कौन पाठक खाएगा?

रचनाकार -डॉ मुकेश ‘असीमित’

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

(लेखक, व्यंग्यकार, चिकित्सक)

निवास स्थान: गंगापुर सिटी, राजस्थान 
पता -डॉ मुकेश गर्ग 
गर्ग हॉस्पिटल ,स्टेशन रोड गंगापुर सिटी राजस्थान पिन कॉड ३२२२०१ 

पेशा: अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ 

लेखन रुचि: कविताएं, संस्मरण, लेख, व्यंग्य और हास्य रचनाएं

प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से )
काव्य कुम्भ (साझा संकलन ) नीलम पब्लिकेशन से 
काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन से 
अंग्रेजी भाषा में-रोजेज एंड थोर्न्स -(एक व्यंग्य  संग्रह ) नोशन प्रेस से 

गिरने में क्या हर्ज है   -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह ) भावना प्रकाशन से 

प्रकाशनाधीन -व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन )  किताबगंज   प्रकाशन  से 
देश विदेश के जाने माने दैनिकी,साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित 

सम्मान एवं पुरस्कार -स्टेट आई एम ए द्वारा प्रेसिडेंशियल एप्रिसिएशन  अवार्ड  ” 

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2 Comments

  1. Anshu tripathi

    हा हा हा…!!!बहुत मज़ेदार लिखा आपने डॉ साहब… हास्यपरक.. 👏👏👏👏

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