अस्पताल के हड्डी वार्ड में बूढ़ा आदमी अपनी टांग ऊंचे हेंगर पर लटकाये, भारत सरकार से लेकर निर्माण विभाग के इंजीनियर तक को गालियां दे रहा था। अस्पताल के बड़े साहब ने उस गरीब के लफ़्ज़ों को सुन, उससे पूछा तो जैसे बिफर पड़ा। कह रहा था कि साहब -आप लोगों से अगर राज नही संभल रहा तो विक्टोरिया वाले अंग्रेजों को वापस बुला लो, कह दो हमें राज करना नही आता है। तुम ही सम्भालों। साले सब चोर है। मार दिया मुझको।
बाद में ज्ञात हुआ कि इस बार की बरसात में गांव- शहर की काफी सड़कें बह गयी थी। मात्र खड्डों में सड़कें बची थी। ये बूढ़े महाशय चलते चलते पानी भरे सड़क के किनारे
गढ़े में गिर गये सो दोनों कूल्हे तुड़वा बैठे। जबसे यहां भर्ती हैं तबसे अंग्रेजी सरकार के गीत गाते हुए देशी सरकार के भ्रष्ट अफसरों को कोस रहे है।
आजादी के बाद अपने देश में अगर कोई वर्ग तेजी से धनवान हुआ़, वो है सरकारी ठेकेदार व सप्लायर। वैसे तो अंग्रेजों के समय भी यह वर्ग रिश्वत दे कर ठेके व सप्लाई के ठेके प्राप्त कर लेता था पर उन दिनों सरकार का भय कुछ ज्यादा असरदार था। ब्रिटिश टाइम के बने रेलवे के पुल, कचहरियां, अस्पताल, स्कूल आदि आज भी सौ-सवा सौ साल के बाद भी खड़े हैं अपनी सेवायें दे रहे है। रंग-रोगन समेत छोटी-मोटी रिपेयरिंग के सिवाय वे इमारतें आज भी कुछ भी नही मांगती। कुछ भवन तो आज भी दर्शनीय हो, सीना तानें खड़े हैं। सिविल इंजीनियरिंग व आर्किटेक्चर के शिक्षक ब्रिटिश समय के बने बांधों से लेकर नहरों की डिजाइन व उनके निर्माण के उदाहरण आज भी फर्राटे से दे रहे है। (प्राचीन हवेलियों, महलों की चर्चा से मुझे सामंतवादी के मेडल से नवाजा जायेगा, वह मुझे पचेगा नही, क्षमा करें।)
एक स्थान पर रेलवे के दो स्टेशनों के मध्य पटरियों को दुहरा करना था। एक लाइन आजादी से पहले की बिछी हुई थी। समानांतर दूसरी पटरियां बिछाई गयी। जहां जरूरत समझी पुल भी बनायें गये । सेफ्टी फेक्टर वगैरा की खूब दुहाई दी गई। तीन सालों की गारंटी पीरियड में प्रकृति ने उनको बचाने के लिए उस क्षेत्र में अकाल व सूखा ही रखा। ज्यों ही गारंटी ख़त्म हुई कि घनघोर बारिश से बाढ़ आ गयी और नई वाली पटरियां बह गयी और पुरानी वाली सबको मुंह चिढ़ाती बरकरार खड़ी रही।
केस हुए पर हमारे यहां मारने वाले से बचाने वाले को हमेशा बड़ा कहा गया है सो दलीलों के बल ठेकेदारों से लेकर इंजीनियर्स टीम को बचा लिया गया। वकीलों की सेवाओं पर पैसे तो काफी खर्च हुए पर फिर भी सभी को काजल की कोठरी से बेदाग निकाला गया। मारने वाले से तारने वाला बड़ा होता है। रेलवे तो पहले से ही घाटे में था और गर घाटा बढ़ गया तो कौन-सी परलय आ जायेगी, सभी ने यही कहा कि बिचारे ठेकेदार, इंजीनियर अपने ही है। मारने से मिलना कुछ नही। ये मरे हुए भ्रष्ट्राचारी
आज नही तो कल, कुछ दे ही जायेंगे। आशा रखो।
आज हमारे देश में दो तरह के बिल्डिंग वर्क किये जा रहे हैं एक तो सरकारी, जिसमें पांच साल की गारंटी पश्चात् हर साल पांच से लेकर दस प्रतिशत तक मेनटेनेंस बजट अलॉट होता है। इस बजट खर्च से छोटे ठेकेदारों का ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जाता है।
दूसरी प्राइवेट, जिसमें हम लोग रहते हैं, या अपना काम करते हैं। जिसकी लागत भी सरकार से एक-तिहाई कम होती है और गारंटी भी पचास से लेकर सौ साल की। पांच वर्ष बाद प्रतिवर्ष मेनटेनेंस बजट भी केवल रंग-रोगन या पानी के टोंटियों में कचरा जाम होने पर सफाई का खर्च मात्र।
सरकारी मकानों के निर्माण की तुलना, अपने घरों से कर कीजिए, सारी पिक्चर इसी वक्त साफ हो जायेगी।
आजादी के बाद अगर सब कुछ सही होता तो इन्हीं बजट से हुई बचत से दिल्ली से लेकर चंद्रमा तक टू-वे फ्लाइओवर बना लेते।
आज देश की आजादी को सत्तर साल से अधिक होने को आये पर इस भ्रष्टाचार के राक्षस ने सुधी नेताओं व बड़े से लेकर छोटे अफसरों को घर भरने के लिए प्रेरित कर रखा है। जयपुर की सड़कें बनाने में ख़र्च होने वाला धन एक्सईएन साहब के लिए ऑडी कार खरीदने में खर्च हो गया और मातहतों को महंगी कारों में घूमते देख चीफ साहब अब हेलीकॉप्टर खरीद की सोचने लगे हैं। चीफ साहब को स्टेण्डर्ड तो मेनटेन करने ही होंगे।
एक बालक अपनी बुद्धि अनुसार कह रहा था कि यदि भ्रष्ट नेताओं से लेकर अफसरों व ठेकेदारों को उल्टा कर झिंझोड़ा जाय तो इस भारत भूमि पर इतना धन बरसेगा कि कहां रखेंगे और खर्च कहां करेंगे की बड़ी समस्या उभरेगी। पहले इस विषय पर विचार करना चाहिए। जैसे एक प्रदेश सरकार ने सरकारी वरद हस्त प्राप्त दादाओं की कब्जाई जमीन छुड़वा कर गरीबों को बांट दी। फिर उस जमीन पर मकान भी बनवा कर मुफ्त में दिए। मकानों को बनवाने का खर्च भी दादाओं से वसूली धन ही था।
सावधान! सरकार छापें मारी भले करें। आमजन की सोच यह है कि सरकार पहले यह बताएं कि खर्च कहां करेंगे? छापेमारी के बाद इन्हीं भ्रष्ट भंगेड़ियों को ही पनपाना है तो नाटक बाज़ी बंद हो जानी चाहिए। इससे तो फिर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को ही पनपाना है। इस विभाग की भूख की श्रेणी का कोई थाह नहीं ले सकता। एक हाथ ले कर दूसरे हाथ देने की आवश्यकता ही कहां है? हम पहले भी लुट रहे थे आगे भी लुटते रहेंगे।

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