डॉ मुकेश 'असीमित'
Oct 3, 2025
व्यंग रचनाएं
0
“अथ खालीदास साहित्यकथा” आज के साहित्य की खिचड़ी परोसती है। फेसबुकिये कविराज, ट्विटरबाज महंत, सेल्फी–क्वीन और रीलबाज कविगण – सब मंच से उतरकर मोबाइल स्क्रीन पर आ विराजे हैं। आलोचक चुहलबाज बने बैठे हैं और सत्य कोने में जम्हाई ले रहा है। लाइक–पुरुषों की अंगूठी साहित्य की असली मुहर बन चुकी है। यही है साहित्य का आज का फास्ट–फूड संस्करण।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Oct 2, 2025
Important days
0
दशहरा केवल पुतलों का त्योहार नहीं, यह मनुष्य के भीतर छिपे रावण और राम के बीच की लड़ाई है। रावण के पास सामर्थ्य, ज्ञान और वैभव था, लेकिन संतोष नहीं। राम के पास संघर्ष और वनवास था, लेकिन संतोष ही उनकी शक्ति थी। रावण इच्छाओं का दास था, राम आत्मसंयम के स्वामी। यही कारण है कि आज भी रावण जलाया जाता है और राम पूजित होते हैं।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Oct 2, 2025
व्यंग रचनाएं
1
अख़बार ने लिखा — इस बार रावण 'मेड-इन-जापान'! पुतला बड़ा, वाटरप्रूफ, और दोनों पैरों से वोट माँगने तैयार। हम रोते नहीं, तमाशा देखते हैं: रावण की लकड़ी दूर से चमकती है, बच्चे खिलौने समझकर गले लगाते हैं, आयोजक स्टेज पर तालियां खाते हैं। असली रावण तो अंदर छिपा है — वह मुस्कुराता है और हर साल नया रूप धारण कर वोट, पैसा और शो भुनाता है। और सब शांत बैठे।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Oct 2, 2025
व्यंग रचनाएं
0
दिवाली का असली मतलब घर की महिलाओं के लिए सफाई है। और सफाई सिर्फ झाड़ू-पोंछा नहीं, बल्कि पति के शौक की चीज़ों को कबाड़ी वाले तक पहुंचाने का मिशन है। किताबें, कैमरे और कबाड़—सब अलमारी की जगह घेरकर ‘अपराधी’ घोषित हो जाते हैं। पति हर बार वादा करता है—“काम आएंगी”—पर सफाई अभियान में उसकी दलीलें भी झाड़ू के नीचे दब जाती हैं।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Oct 1, 2025
व्यंग रचनाएं
0
नवरात्रि आते ही शहर गरबा-डांडिया के बुखार में तपने लगता है। भक्ति पीछे, डीजे आगे—फ़ैशन शो, सेल्फ़ी, और सार्वजनिक रोमांस! माँ दुर्गा कोने में दो माला, दो अगरबत्ती के साथ कैद; बाकी रात भर ‘चिकनी चमेली’ पर ठुमके। सोशल मीडिया पर दिव्यता, ज़मीन पर कीचड़, ट्रैफ़िक, और बेसमेंट में डूबते बच्चे। गरबा सबको कुछ देता है—नेताओं को वोट, संस्थाओं को चंदा, और समाज को चमक-धमक की चकाचौंध।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Oct 1, 2025
व्यंग रचनाएं
0
"दिल का मामला है जी – एक दिन में कहाँ सिमट पाता है! वैलेंटाइन डे ने तो पूरे सात दिन का सरकारी-सा कार्यक्रम बना दिया है—चॉकलेट डे, हग डे, प्रपोज डे…पर दिल फेंक दिवस की तो भारी कमी है। असली शुरुआत तो दिल फेंकने से ही होती है। काश ओलंपिक में भी ‘दिल फेंक’ प्रतियोगिता होती, तो हम भारतीय गोल्ड की गारंटी से लौटते!"
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 30, 2025
Culture
0
समुद्र-मंथन की कथा हमें बताती है कि जीवन की साधना सबसे पहले विष का सामना है—आलोचना, उपहास और असुविधा का। लेकिन यही विष जब धारण कर लिया जाए तो भीतर से रत्न प्रकट होते हैं—प्रतिभा, विवेक, गरिमा, समृद्धि और अंततः अमृत। यह कथा हमें याद दिलाती है कि हर संघर्ष एक नया जागरण है और भीतर की देवी ही हमारी असली शक्ति है।
Prahalad Shrimali
Sep 29, 2025
व्यंग रचनाएं
0
दशहरे की शाम थाने में बैठे नशे में धुत्त दारोगा ने चौकीदार से पूछा — "गांव में क्या चल रहा है?" चौकीदार बोला — "हुजूर, रावण जल रहा है!" दारोगा उखड़ पड़ा — "आत्महत्या रोकनी चाहिए! जात बताओ रावण की!" चौकीदार ने तंज कसा — "हुजूर, रावण तो हर जात में है, नेता से लेकर पुलिस तक!" आईने में झाँकते ही दारोगा को खुद ही रावण नजर आया।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 29, 2025
व्यंग रचनाएं
0
नवरात्रों का ‘कन्या पूजन’ अब लॉजिस्टिक ऑडिट बन चुका है। मोहल्ले की आंटियां कन्या खोज में परेशान, तो युवाओं ने लॉन्च किया kanjakkart.com — जहाँ स्लॉट बुकिंग, पैर धोने की सहमति और दक्षिणा का ऑनलाइन भुगतान सब कुछ तय है। कांताबेन जी कहती हैं, “अब बिना बुकिंग देवी भी वॉक-इन नहीं होतीं।” कन्याओं की यूनियन तक बन गई है — न्यूनतम दक्षिणा ₹100 और गिफ्ट में डेरी मिल्क का बड़ा पैक!
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 29, 2025
Darshan Shastra Philosophy
0
विवेकानंद का संदेश युवाओं को भीतर की अनंत शक्ति पहचानने, निडर होकर लक्ष्य चुनने और सेवा को पूजा मानने का आह्वान है। व्यावहारिक वेदांत बताता है—अपने कर्म को समर्पण बनाओ, हर व्यक्ति में दिव्यता देखो, और अनुशासन से मन को साधो। चार योग—कर्म, भक्ति, ज्ञान, राज—अलग रास्ते होते हुए भी एक मंज़िल तक ले जाते हैं। उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक चरित्र, करुणा और कर्म एक जीवन बन न जाएँ।