भारत में सहकारिता आंदोलन सामाजिक और आर्थिक समावेशिता का एक महत्वपूर्ण साधन रहा है, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2025 को ‘अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष’ (International Year of Cooperatives, IYC 2025) घोषित किया जाना इस क्षेत्र की वैश्विक और स्थानीय प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। इस वर्ष का थीम, “Cooperatives Build a Better World,” सहकारी समितियों की सतत और समावेशी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है, जो संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को 2030 तक प्राप्त करने में सहायता करता है (United Nations, 2024)। भारत, जिसे इस वैश्विक उत्सव की शुरुआत के लिए चुना गया है, सहकारी आंदोलन को नई ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए एक अनूठा अवसर प्राप्त करता है। यह संपादकीय भारत में सहकारिता के सशक्तिकरण के उपायों और 2025 के अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के महत्व पर प्रकाश डालता है, जो सामाजिक-आर्थिक विकास में सहकारी समितियों की भूमिका को और मजबूत करने की दिशा में एक रोडमैप प्रस्तुत करता है।
सहकारिता आंदोलन: भारत का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत में सहकारिता का इतिहास 1904 के सहकारी ऋण समिति अधिनियम से शुरू होता है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण किसानों को साहूकारों के शोषण से बचाना और सस्ते ऋण प्रदान करना था (Drishti IAS, 2024)। स्वतंत्रता के बाद, सहकारी समितियों को सामुदायिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन माना गया, और प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में इनका विशेष महत्व रहा। आज, भारत में लगभग 8 लाख सहकारी समितियाँ और 29 करोड़ से अधिक सदस्य हैं, जो कृषि, डेयरी, मत्स्य पालन, आवास, और वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों में योगदान दे रही हैं (Drishti IAS, 2024)। अमूल, गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (GCMMF), इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो 3.6 मिलियन से अधिक दुग्ध उत्पादकों को जोड़ता है, जिनमें अधिकांश छोटे और सीमांत किसान हैं, विशेष रूप से महिलाएँ (Drishti IAS, 2024)। सहकारी समितियाँ देश के कृषि ऋण वितरण का 20%, उर्वरक वितरण का 35%, और चीनी उत्पादन का 31% हिस्सा संभालती हैं, जो उनकी आर्थिक प्रासंगिकता को दर्शाता है।
हालांकि, सहकारी समितियाँ प्रबंधकीय अक्षमता, वित्तीय संसंधनों की कमी, और तकनीकी पिछड़ेपन जैसी चुनौतियों से जूझ रही हैं। इन समस्याओं ने सहकारी आंदोलन की गति को धीमा किया है, जिसके समाधान के लिए नीतिगत, तकनीकी, और सामुदायिक स्तर पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। 2025 का अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष इन चुनौतियों का सामना करने और सहकारी समितियों को सतत विकास के लिए एक प्रभावी मॉडल के रूप में स्थापित करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है।
2025: अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष का महत्व
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 जून 2024 को 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया, जो 2012 के बाद दूसरी बार इस तरह का वैश्विक उत्सव है (United Nations, 2024)। इस वर्ष का थीम, “Cooperatives Build a Better World,” सहकारी समितियों की सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय आयामों में सतत विकास में योगदान को रेखांकित करता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सहकारी समितियाँ गरीबी उन्मूलन, लैंगिक समानता, और सतत आर्थिक विकास जैसे SDGs को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं (United Nations, 2024)। भारत में इस वर्ष का औपचारिक उद्घाटन नई दिल्ली में 25-30 नवंबर 2024 को आयोजित ICA ग्लोबल कोऑपरेटिव कॉन्फ्रेंस और जनरल असेंबली में हुआ, जिसमें 100 से अधिक देशों के 3000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया (Permanent Mission of India in Geneva, 2025)। इस आयोजन ने सहकारी समितियों के लिए चार प्रमुख स्तंभों पर ध्यान केंद्रित किया: सहकारी पहचान की पुष्टि, सहायक नीतियों का विकास, मजबूत नेतृत्व का निर्माण, और सतत भविष्य की स्थापना।
भारत के लिए यह अवसर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश की सहकारी नीति “सहकार से समृद्धि” (Prosperity through Cooperation) के साथ संरेखित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस वर्ष के उद्घाटन और एक स्मारक डाक टिकट का विमोचन भारत की सहकारी आंदोलन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है (Permanent Mission of India in Geneva, 2025)। यह वैश्विक मंच भारत को सहकारी मॉडल को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर इसकी प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करता है।
सहकारिता के सशक्तिकरण के लिए उपाय
नीतिगत सुधार और सहकारिता मंत्रालय की भूमिका
2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना भारत में सहकारी आंदोलन को पुनर्जनन देने का एक ऐतिहासिक कदम था। मंत्रालय ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को बहुउद्देश्यीय बनाने के लिए मॉडल उप-नियम 5.1.202 लागू किए, जो PACS को डेयरी, मत्स्य पालन, और भंडारण जैसे क्षेत्रों में विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं (Ministry of Cooperation, n.d.)। दिसंबर 2023 तक, 2000 PACS को जन औषधि केंद्रों के रूप में चिह्नित किया गया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती दवाओं की उपलब्धता बढ़ेगी (Ministry of Cooperation, n.d.)। इसके अतिरिक्त, 2022 का बहु-राज्य सहकारी समिति (संशोधन) अधिनियम सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है (Drishti IAS, 2024)।
संयुक्त राष्ट्र ने भी राष्ट्रीय समितियों के गठन को प्रोत्साहित किया है ताकि IYC 2025 की गतिविधियों का समन्वय किया जा सके (United Nations, 2024)। भारत में ऐसी समितियाँ स्थानीय सरकारों, सहकारी समितियों, और नागरिक समाज को एकजुट करके नीतिगत ढांचे को मजबूत कर सकती हैं। राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) ने 2023-24 में सहकारी समितियों के लिए 41,024 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है, जो इस क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है (Ministry of Cooperation, n.d.)।
तकनीकी नवाचार और डिजिटलीकरण
सहकारी समितियों के सशक्तिकरण के लिए डिजिटलीकरण एक महत्वपूर्ण उपाय है। डिजिटल बैंकिंग और यूपीआई (UPI) जैसे प्लेटफॉर्म ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशिता को बढ़ा सकते हैं। सहकारी बैंकों को डिजिटल भुगतान प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे उनकी पहुंच और कार्यक्षमता में सुधार हो रहा है (RBI, 2023)। ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से डेयरी और कृषि सहकारी समितियों में। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु की औरोविल सहकारी समितियाँ ब्लॉकचेन का उपयोग शुरू कर चुकी हैं (Drishti IAS, 2023)। इसके अतिरिक्त, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डेटा एनालिटिक्स सहकारी समितियों को बाजार विश्लेषण और जोखिम मूल्यांकन में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
सामुदायिक भागीदारी और लैंगिक সমावेशिता
सहकारी समितियाँ सामुदायिक भागीदारी और लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अमूल जैसे मॉडल ने 30% से अधिक महिला दुग्ध उत्पादकों को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की है (Drishti IAS, 2024)। स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का सहकारी समितियों के साथ एकीकरण महिलाओं के लिए उद्यमिता के अवसर सृजित करता है। NABARD ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत ऐसी पहल शुरू की हैं (NABARD, n.d.)। सामुदायिक जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यशालाएँ सहकारी समितियों की प्रभावशीलता को बढ़ा सकती हैं। IYC 2025 के तहत, युवाओं को सहकारी आंदोलन में शामिल करने के लिए प्रेरक कार्यक्रमों पर ध्यान देना आवश्यक है (United Nations, 2024)।
चुनौतियाँ और समाधान
सहकारी समितियों के सामने प्रबंधकीय अक्षमता, भ्रष्टाचार, और वित्तीय संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियाँ हैं। इनका समाधान करने के लिए पेशेवर प्रशिक्षण, डिजिटल लेखा प्रणाली, और विशेष फंड जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं। सामुदायिक जागरूकता और नीतिगत सुधार इन समस्याओं को कम करने में सहायक होंगे। IYC 2025 के तहत, भारत को राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर समन्वित गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि सहकारी मॉडल की वैश्विक पहचान को मजबूत किया जा सके।
निष्कर्ष
2025 का अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष भारत के लिए सहकारी समितियों को सशक्त बनाने और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक अनूठा अवसर है। नीतिगत सुधार, तकनीकी नवाचार, और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से, सहकारी समितियाँ सामाजिक समानता, लैंगिक समावेशिता, और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकती हैं। भारत सरकार की “सहकार से समृद्धि” की दृष्टि और संयुक्त राष्ट्र के सहकारी मॉडल के प्रति समर्थन एक समन्वित प्रयास की ओर इशारा करते हैं। यह वर्ष सहकारी समितियों को वैश्विक मंच पर स्थापित करने और भारत के समावेशी विकास में उनकी भूमिका को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
पूनाम चतुर्वेदी शुक्ला
संस्थापक-निदेशक
अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन एवं न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन
आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश