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गर्भाशय से कोख – सृजन के सोपान डॉ. श्री गोपाल काबरा






क्या आप जानते है-
– कि माँ की कोख और गर्भाशय में क्या फर्क होता है। कोख और नाभिनाल से जुड़े गर्भ के बीच सम्बन्ध  मात्र भौतिक नहीं वरन् एक गहरे भावनात्मक लगाव का होता है। गहरे भावनात्मक लगाव का आधार क्या है। गर्भाशय तो कोख का मात्र भौतिक रूप है। कोख और गर्भ के बीच भावनात्मक रिश्ता विलक्षण होता है। सृष्टि संचानन का केन्द्रबिन्दु होता है यह लगाव।  स्वयम् का माँ से ही नहीं, उसी कोख से जन्मे सहोदरों के बीच रिश्ता भी गहरा होता है।
– कि गर्भाशय के कोख बनने की क्रिया एक जटिल रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके गहरे भावनात्मक पहलू हैं।
– कि गर्भाशय मोटी मंसपेशियों की छोटी थैली होती है जिसे कोख बनने के लिए कम से कम 12-13 साल का सफ़र तय करना होता है। उसके बाद उसे नियमित मासिक यज्ञ करना होता है, अपने रक्त की आहुति देनी होती है। इस निमित हर बच्ची के मस्तिष्क में एक जैविक घडी़ होती है और साथ में एक डायरी भी। इस जैविक डायरी में गर्भाशय में होने वाले प्रतिवर्ष के परिवर्तनों का लेखा-जोखा दर्ज होता है और कैशौर्य अवस्था के आते-आते जब मालुम होता है कि गर्भाशय कोख बनने में सक्षम हो गया है तो जैविक घड़ी पीयूष ग्रन्थि को इसकी सूचना देती है।
-कि संकेत पाकर पीयूष ग्रन्थि जनन गंरंथि प्रेरक हार्मोन स्रावित करती है। इस हार्मोन से प्रेरित होकर डिम्बग्रन्थि स्त्रीबीज (ओवम) तैयार करती है, हर महीने एक-एक। तैयार होता स्त्रीबीज और उसकी सहायक कोशिकाएँ प्रेरक हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन, भेजकर गर्भाशय को तैयार होने का सन्देश भेजती हैं।।
ओवूलेशन

 
-कि स्त्रीबीज के परिपक्व होकर आने के 11-12 दिनों के दौरान प्रतिदिन एस्ट्रोजन हार्मोन से प्रेरित होकर गर्भाशय की आन्तरिक झिल्ली, एण्डोमेट्रियम गर्भ के आने की अपेक्षा में, गर्भ के स्वागत, सत्कार ओर पोषण की तैयारी में जुट जाती है। एण्डोमेट्रियम की रक्त नलिकाएँ लम्बी और सर्पिल आकार की हो जाती हैं, ताकि अपेक्षित गर्भ को प्रचुर मात्रा में रक्त उपलब्ध हो सके। एण्डोमेट्रियम में स्थित नन्ही ग्रन्थियां बड़ी हो जाती हैं ताकि इनमें पोषक तत्त्व संग्रहित हो सके। अपेक्षा रत पूरी एण्डोमेट्रियम मखमली व गुदगुदी हो जाती है।
-कि अवचेतन मस्तिष्क में स्थित रज घड़ी अब दूसरा सन्देश पीयूष ग्रन्थि को भेजती है। पीयूष ग्रन्थि डिम्ब क्षरण हार्मोन स्रावित करती है। डिम्ब, डिम्बग्रन्थि से निकल कर गर्भाशय की डिम्बवाहक नली में आ गिरता है। हार्मोनों की रासायनिक प्रक्रिया के फलस्वरूप ही डिम्ब वाहक नली ठीक समय पर डिम्ब को हाथ फैलाए लपकने को तैयार रहती है, वरना उदर गुहा में गिरने पर, डिम्ब का कहीं अता-पता ही नहीं चले।
-कि डिम्ब क्षरण होते ही डिम्बग्रन्थि में स्थित ग्रेन्यूलोसा कोशिकाएँ गर्भाशय की सूचनार्थ एक नया गर्भ प्रेरक-पोषक हार्मोन, प्रोजेस्टेरोन, स्रावित करती हैं। इस हार्मोन के व्यापक प्रभाव होते हैं। गर्भाशय को सूचना मिल जाती है कि स्त्रीबीज आ रहा है। रासायनिक संवाद।
-कि गर्भाशय की एन्ड्रोमेट्रियम में एस्ट्रोजन से प्रेरित पोषक ग्रन्थियाँ अब पोषक तत्त्वों से भर जाती हैं। एण्डोमेट्रियम की सतही कोशिकाओं को सन्देश मिलता है कि एक नन्हा प्राणी आ रहा है अतः उसके स्वागत-सत्कार के लिए तैयार रहें, तत्पर रहें। एण्डोमेट्रियम की सभी लाखों कोशिकाओं को यह सन्देश जाता है, मालुम नहीं नन्हा प्राणी उनमें से किसके पास पहुँचे। गर्भाशय कोख बनने को आतुर।
-कि एस्टाªजन से संवेदनशील बने गर्भाशय पर जहाँ प्रोजेस्टेरोन गर्भप्रेरक हार्मोन का कार्य करता है, वहीं यह हार्मोन मस्तिष्क के लिम्बिक लोब स्थित यौनकेन्द्रों को भी प्रेरित करता है। यौन कल्पना, परिकल्पना, सुखानुभूति, स्मृति और संवेदनशीलता की प्रेरणा मिलती है और शरीर के अंग-अंग को यौन आतुरता रहती है। भावनात्मक चेतना।
-कि क्षरित स्त्रीबीज, बस एक दिन ही जीवित रह सकता है,  अतः यही, और मात्र यही, समय है जब शुक्राणु का मिलन स्त्रीबीज से हो सकता है। अतः इसका प्रयास अवचेतन में भी होता है। स्त्री पुरुष के बीच अबोला यौन संवाद होता है।
-कि अगर यह मिलन नहीं हुआ तो गर्भाशय की व्यापक तैयारियाँ व्यर्थ जाएँगी, और व्यर्थ जाती हैं। डिम्बग्रन्थि प्रोजेस्टेरोन बनाना बन्द कर देती है। गर्भाशय की सर्पिल रक्त नलियाँ संकुचित हो जाती हैं, रक्तप्रवाह रुक सा जाता है, एण्डोमेट्रियम का सतही भाग नष्ट हो जाता है, ऋतुस्राव शुरू हो जाता है। यज्ञ की समाप्ति, पूर्ण आहुति। गर्भाशय, गर्भाशय ही रह जाता है, कोख नहीं बन पाता।
-कि यौन मस्तिष्क, हाइपोथैलेमस, पीयूष ग्रन्थि, डिम्ब ग्रन्थि और गर्भाशय के पारस्परिक विलक्षण रासायनिक संवाद व समन्वय हैं, ऋतुचक्र रूपी यज्ञ होता है। निष्काम लोक हितार्थ कर्म ही धर्म होता है, इसीलिए ही इसे मासिक धर्म कहते हैं।
-कि इस बीच अगर समागम होता है, और शुक्राणु योनिपथ के जटिल मार्ग को सफलतापूर्वक पार कर समय सीमा में स्त्रीबीज तक पहुँचता है और मिलन (निषेचन) हो जाता है।  स्त्रीबीज के आधे गुणसूत्र, शुक्राणु के आधे गुणसूत्रों से मिलकर पूरक गुणसूत्रों से युग्म बनाते हैं। तब प्रारम्भ होती है सृष्टि सृजन की विलक्षण प्रक्रिया, जिसमें एक कोशिकीय युग्म से लाखों-अरबों कोशिकाओं वाला मानव शरीर विकसित होता है। और यह सब संचालित होता है हर गुणसूत्र पर स्थित डी.एन.ए. से बने जीनों से। हर जीव को यही जीवन चक्र शाश्वतता प्रदान करता है, सृष्टि में निरन्तरता।

कोख का करिश्मा – मातृ भ्रूण संवाद – महिला से मां
क्या आप जानते हैं-
-कि स्त्रीबीज शुक्राणु से मिल कर युग्म बनता है, युग्म गर्भ बन जाता है, गर्भाशय कोख और स्त्री माँ। इसका आधार है जटिल, किन्तु विलक्षण रूप सं समन्वित रासायनिक प्रक्रियाएँ।
-कि निषेचन उपरान्त बना युग्म, कोशिकाओं में विभाजित होता हुआ डिम्बवाहिनी से गर्भाशय की ओर अग्रसर होता है। कौन करता है इसके लिए प्रेरित। कौन करता है इसका पथ प्रदर्शन। चेतन मस्तिष्क को तो इसका बोध भी नहीं होता, लेकिन युग्म और योनिपथ के बीच पारस्परिक रासायनिक संवाद होता है।

-कि कुछ ही दिनों में कोशिकाओं में विभाजित होता युग्म कोशिकाओं का पंुज बना गर्भाशय में पहुँचता है। स्त्रीबीज में स्थित ऊर्जा के संग्रहित पोषक तत्त्व ख़त्म होते जाते हैं और युग्म को जीवित रहने के लिए इनकी आवश्यकता होती है। कोशिकाओं का पंुज बना युग्म, एण्डोमेट्रियम की सतही कोशिकाओं से सम्पर्क साधता है। लेकिन एक बडी़ दुविधा उपस्थित होती है। युग्म की कोशिकाओं में आधे गुणसूत्र पिता के होते हैं। ये गुणसूत्र महिला के गुणसूत्रों से विषम होते हैं। प्रकृति का शाश्वत नियम है कि केाई भी जीव अपने से भिन्न गुणसूत्रों वाले को स्वीकार नहीं करता, उसको नष्ट कर बाहर फेंकने के लिए शरीर का रक्षा संस्थान तत्पर रहता है। गर्भाशय भी इसमें सक्षम होता है। हालाँकि डिम्बग्रन्थि से आने वाले गर्भप्रेरक व गर्भ पोषक इसके लिए सन्देश भेज चुके होते हैं। गर्भाशय इसके प्रति संवेदनशील भी होता है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर युग्म की कोशिकाओं और गर्भाशय की सतही कोशिकाओं के बीच रासायनिक संवाद होता है। पारस्परिक सहिष्णुता का रासायनिक परिवेश तैयार होता है, आपस में सौहार्द बनता है, गर्भाशय अब कोख बन जाता है। कोख, जो विषम गुणसूत्रों वाले इस जीव के स्वागत, संरक्षण और संवर्द्धन को तैयार और तत्पर हो जाती है।
-कि पारस्परिक रासायनिक संवाद द्वारा कोख की सतही कोशिकाएँ युग्म की कोशिकाओं को स्थापित होने के लिए पथ प्रदर्शित करती हैं और गर्भ की कोख में स्थापना हो जाती है। गर्भ को पोषण, संरक्षण मिलता है और कोख को सृजन का आत्मसुख। विलक्षण जैविक प्रक्रिया जो गर्भाशय को कोख बनाती है।
-कि डिम्बग्रन्थि को गर्भ स्थापना की रासायनिक सूचना जाती है। आग्रह होता है कि वह गर्भप्रेरक एवं पोषक प्रोेजेस्टेरोन हार्मोन बनाना चालू रखे। अगर संवाद नहीं पहुँचता तो डिम्ब ग्रन्थि यह हॉर्माेन बनाना बन्द कर देती है और ऋतुस्राव हो जाता है। गर्भ की स्थापना की सूचना यौन मस्तिष्क और पीयूष ग्रन्थि को भी पहुँचती है।
-कि स्थापित गर्भ के भू्रण में विकसित होने की प्र्रक्रिया में उसके पोषण की आवश्यकताएँ उत्तरोत्तर बढ़ती जाती हैं। कोख अब भू्रण को नए सम्बन्ध के लिए प्रेरित करती है। ऑंवल (प्लेसेन्टा) विकसित होता है और भू्रण नाभिनाल से जुड़ जाता है। ऑंवल की संरचना और कार्य विलक्षण होते हैं, भ्रूण और माँ के बीच सम्पर्क सेतु और सम्बन्ध सेतु।
-कि ऑंवल में भू्रण का रक्त शुद्धीकरण के लिए आता है और शुद्ध और पोषक तत्त्वों से लैस होकर भू्रण के पास वापस लौट जाता है। भू्रण का रक्त कोख के रक्त में मिश्रित नहीं होता और न ही सीधा सम्पर्क में आता है। दोनों के बीच भू्रण की एक कोशिकीय परत होती है, एक न लाँघने वाली लक्ष्मण रेखा।
-कि कोख में स्थापित यह ऑंवल भू्रण की आँत, गुर्दे और फेफड़ों का कार्य करने का माध्यम होता है। ऑंवल और कोख के बीच सतत रासायनिक संकेतों और सन्देशों के अनुरूप ये सारी प्रक्रियाएँ संचालित होती हैं। भू्रण के शरीर के सभी अपशिष्ट ऑंवल द्वारा कोख के रक्त में छोड़ दिए जाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्ग ऑंवल करता है और कोख के रक्त से प्राणवायु ले लेता है। भू्रण अपनी आवश्यकता के अनुरूप माँ की कोख से पोषक तत्त्व ले लेता है।
-कि ऑंवल, कोख से रिश्ते में इससे भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जो गर्भप्रेरक और गर्भपोषक हार्मोन पहले डिम्ब ग्रन्थि बनाती थी, वे अब ऑंवल बनाता है। इसके अतिरिक्त ऑंवल अनेक हार्मोन और रसायन बनाता है जो माँ की अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से सम्पर्क स्थापित करते हैं और वस्तुतः उनके ऊपर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है। भू्रण माँ के शरीर का अन्तरंग अंग बन जाता है। यह वर्चस्व यहाँ तक होता है कि भू्रण की आवश्यकताओं की पूर्ति प्राथमिकता से होती है, माँ के शरीर के लिए पर्याप्त न हो तब भी।
-कि कोख का सम्बन्ध मात्र भौतिक नहीं है। गर्भ की अनुभूति उसके हिलने-डुलने और दिल की धड़कनों से ही नहीं होती। कोख के माध्यम से गर्भ की अनुभूति गहन भावनात्मक होती है। भौतिक अनुभूति होने से कहीं पहले जब गर्भ के रूप में युग्म कोख में आता है तब से, रासायनिक अनुभूति आरम्भ हो जाती है।
-कि ऑंवल के हार्मोन, भावना प्रवर मस्तिष्क लिम्बिक लोब को गर्भ निहित भावनाओं के प्रति संवेदनशील बनाते हैं। गर्भ की रासायनिक अनुभूति इसी लिम्बिक लोब (चक्रिल मस्तिष्क) में होती है। गर्भ संरक्षण, ममत्व के भाव, मातृत्व, सब का केन्द्र, मस्तिष्क का यही भाग होता है।
-कि मातृत्व चेतन मस्तिष्क का बौद्धिक पक्ष नहीं वरन अर्ध-चेतन और अवचेतन मस्तिष्क की रासायनिक अनुभूति जनित भाव है। कोख और ऑंवल मिल कर एक विलक्षण रसायनेन्द्रिय का कार्य करते हैं जो शरीर की सभी ज्ञानेन्द्रियों, जननेन्द्रियों और रसेन्द्रियों को अति संवेदनशील बना देते हैं। माँ का समस्त अस्तित्त्व ही कोख केन्द्रित हो जाता है। मातृसुख से बडा़ कोई सुख नहीं है।
-कि गर्भ, कोख से केवल ऑंवल द्वारा ही नहीं जुड़ा होता वरन् गर्भ का आवरण, ऐम्नियोटिक मेम्ब्रेन (जेरा), कोख की समस्त अन्दरूनी सतह से जुड़ा होता है। इनमें भी बड़ा अन्तरंग सम्बन्ध होता है। ऐम्नियोटिक थैली में स्थित तरल, गर्भ के चारों ओर होता है, जिसमें गर्भ मछली की तरह तैरता और जीता है। ऐम्नियोटिक मेम्ब्रेन और तरल के माध्यम से भी भ्रूण कोख से और कोख के माध्यम से माता से सम्पर्क साधता है, रासायनिक संकेत और सूचनाएँ भेजता और प्राप्त करता है।
-कि कोख बनने से पहले गर्भाशय मॉंसपेशियों की एक मोटी थैली था। मॉंसपेशियों की प्रकृति होती है संकुचन। गर्भस्थापना के लिए यह आवश्यक था कि इस संकुचन प्रक्रिया को रोका जाए अन्यथा गर्भ ठहर ही नही पाएगा। पहले डिम्बग्रन्थि स्रावित एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोना से संकुचन का शमन होता रहा, तत्पश्चात् जब ऑंवल यह हार्मोना बनाने लगा तो कोख, गर्भावस्था के अनुरूप धीरे-धीरे बढ़ती गई। कोख गर्भाशय से पचास गुणा बड़ी होती है।
-कि गर्भावस्था के पूर्णकालीन अवस्था में पहुँचने पर ऑंवल संकुचन शामक हार्मोन स्रावित करना बन्द कर देता है। फलस्वरूप कोख अपनी स्वाभाविक, संकुचन प्रकृति में लौट आती है। गर्भाशय की मॉंसपेशियाँ बड़ी शक्तिशाली होती हैं, प्रसव प्रारम्भ हो जाता है। प्रसव का प्रारम्भ भू्रण से मिले संकेतों के फलस्वरूप ही होता है।
-कि प्रसव पीड़ा कोख केन्द्रित होती है। कोख एक संवेदनशील इन्द्रिय का कार्य करती है। अपनी पीडा़ से अधिक माँ को, प्रसवपथ से गुज़रते कोमल शिशु की सम्भावित पीड़ा और कष्ट का भान होता है। यही है ममता। प्रसव पीड़ा का सुख, गर्भ-सृजन की पूर्ण परिणति का सुख होता है – अद्भुत, अद्वितीय, अविस्मरणीय।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
15, विजय नगर, डी-ब्लॉक,मालवीय नगर, जयपुर-302017 मोबाः 8003516198

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