शुभ लाभ-फटूकड़ियां – 2025 Prahalad Shrimali October 16, 2025 हास्य रचनाएं 0 Comments दीपावली की यह व्यंग्यात्मक ‘फटूकड़ियां 2025’ केवल रोशनी का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, राजनीति, न्याय और समाज की मानसिकता पर तीखा हास्य है। लेखक… Spread the love
चुनावी टिकट की बिक्री-हास्य व्यंग्य रचना Ram Kumar Joshi October 11, 2025 हिंदी कहानी 0 Comments “सर्किट हाउस की दीवारों में लोकतंत्र की गूँज नहीं — सिर्फ फ़ोटोग्राफ़ और आरक्षण की गंध है।” “माला पहनी, सेल्फी ली — और गांधी टोपी… Spread the love
लोकतंत्र की गाड़ी चल पड़ी, पम पम पम! डॉ मुकेश 'असीमित' October 7, 2025 Blogs 0 Comments लोकतंत्र की गाड़ी पम-पम-पम करती आगे बढ़ रही है—टायरों में हवा नहीं, पर वादों की फुलावट है। ड्राइवर बूढ़ा है पर जीपीएस नया, जो सिर्फ… Spread the love
आउल जी को भेंट-हास्य व्यंग्य कविता Ram Kumar Joshi October 4, 2025 हिंदी कविता 2 Comments सूरत की राजनीति में खानदानी गुरुर ने ऐसा पेंच फँसाया कि ‘बाई’ की जगह ‘राड’ निकल गया। जनसभाओं में गुणगान करते-करते सीट हाथ से निकल… Spread the love
वास्तविक डेमोक्रेसी तभी जब वह सायास डेमोग्राफी बदले बिना हो Vivek Ranjan Shreevastav September 27, 2025 हिंदी लेख 0 Comments लोकतंत्र का आधार जनता का शासन है, परंतु जब जनसंख्या की संरचना बदलती है तो लोकतंत्र का संतुलन डगमगाने लगता है। भारत जैसे विविध देश… Spread the love
चलो बुलावा आया है-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' September 25, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “चलो बुलावा आया है… दिल्ली ने बुलाया है। नेता, लेखक, कलाकार—सब दिल्ली की ओर ताक रहे हैं। दिल्ली एक वॉशिंग मशीन है, जहां दाग तक… Spread the love
गली में आज चाँद निकला-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' September 25, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “गली में आज चाँद निकला… पर यह कोई आसमान वाला चाँद नहीं, बल्कि टिकट की दौड़ में फँसा हुआ नेता चांदमल है। चाँदनी बिखेरने का… Spread the love
हिंदी का ब्यूटी पार्लर डॉ मुकेश 'असीमित' September 21, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments हिंदी भाषा को सरकारी दफ़्तरों और आयोगों में किस तरह से बोझिल और जटिल बनाया गया है, जिससे वह अपनी सहजता और सुंदरता खो रही… Spread the love
कोल्हू का लोकतंत्र-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' September 19, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments यह लोकतंत्र दरअसल एक कोल्हू है जिसमें बैल बनकर हम आमजन जोते जा रहे हैं। मालिक—नेता और अफसर—आराम से ऊँची कुर्सियों पर बैठकर तेल चूस… Spread the love
रोशनी ख़ुशबू की -गजल Kishan Tiwari September 5, 2025 गजल 0 Comments किशन तिवारी ‘भोपाल’ की यह ग़ज़ल जीवन की पीड़ा, संघर्ष और रिश्तों की विडंबना का गहन बयान है। इसमें मोहब्बत और विश्वास के टूटे बंधन,… Spread the love