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Tag: समकालीनव्यंग्य

एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी—सीधी पीठ वाली, बिना पहियों के—जिस पर प्रेमचंद जैसे लेखक बैठकर विचारों की मशाल जलाते थे, और आज के लेखकों की रिवॉल्विंग, आरामदेह कुर्सियों के विपरीत खड़ी है।

मुंशी प्रेमचंद जी की कुर्सी-व्यंग्य रचना

मुंशी प्रेमचंद की ऐतिहासिक कुर्सी अब एक प्रतीक है—सच्चे लेखन, मूल्यों और विचारों की अडिगता का। पर आज का लेखक इस कुर्सी की स्थिरता नहीं,…

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