Vidya Dubey
Jul 15, 2025
हिंदी कविता
2
बारिश की हर बूंद, प्रतीक्षा की तपिश से दहकती है। पेड़-पत्ते जवां हैं, बगिया महकी है, लेकिन प्रेमी नहीं आया। बूंदें अब फूल नहीं, अंगारे बन गई हैं। विद्या पोखरियाल की स्वरचित कविता प्रेम, विरह और मानसून की इस जटिल रागिनी को भावभीने ढंग से उजागर करती है।
Vidya Dubey
Jul 7, 2025
Hindi poems
1
विद्या पोखरियाल की यह कविता "पत्थर हूं मैं" जीवन की विसंगतियों को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है। यह पत्थर कभी पूजित है, कभी ठुकराया गया। मंदिर, नदी, पहाड़ और रास्ते — हर स्थल पर उसका एक अलग अस्तित्व है। यह साधारण होते हुए भी असाधारण है।