वाह भाई वाह -कविता -हास्य व्यंग्य डॉ मुकेश 'असीमित' July 7, 2025 हिंदी कविता 0 Comments सामाजिक विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य करती ये कविता ‘वाह भाई वाह’ हमें उन विसंगतियों का एहसास कराती है जहाँ ज़िंदगी त्रासदी बन चुकी है, फिर… Spread the love
मकान मालिक की व्यथा –व्यंग रचना डॉ मुकेश 'असीमित' June 12, 2024 व्यंग रचनाएं 7 Comments किराए के लिए उन्हें फोन करता हूँ तो पता लगता है, वो बहुत दुखी हो गए हैं, उनकी सात पुश्तों में भी कभी किसी ने… Spread the love