मेरी बात हो गई है ऊपर-व्यंग्य रचना

वह अनायास या दुर्घटनावश नही आए है नेतागिरी में।उनका स्पष्ट लक्ष्य था उन्होंने स्कूल में मोनिटर बनते ही गर्जना कर दी थी मै नेता ही बनूंगा । मेरा जीवन गरीबों के लिए है।जैसे लोग सिविल सर्विसेज में जाने का लक्ष्य बनाते है,डॉक्टर बनने का सपना देखते है ।वैसे ही उनकी भीष्म प्रतिज्ञा से घर वाले थर थर कांप उठे थे ।फिर घर के लोगों ने उनके इस सपने को साकार करने का बीड़ा उठाया और पूरा घर उन्हें नेता बनाने में सहयोग करने लगा। आखिर उनका सपना पूरा हुआ और वह बन गए नेता ।जब नेता बन गए तो बड़े नेताओं से संपर्क हुआ और उनकी बात होने लगी,,हर बार उनकी ऊपर बात हो जाती है ।

शहर का काम हो या कार्यकर्ता का सहयोग उनकी बात ऊपर हो जाती है । ऊपर से उनका आशय जो भी हो,पर शहर का कार्यकर्ता और घर के लोग  ऊपर की बात का आशय सिर्फ और सिर्फ दिल्ली के  नेताओं को समझते है,ऐसे नेता आसानी से किसी से नहीं मिल पाते जो बेहद व्यस्त हैं ।पर उस से क्या हुआ करे सरकार में कामों में व्यस्त ,नेताजी की बात उनसे लगभग रोज हो ही जाती है।बड़े नेताओं को सिर्फ एक काम है रोज इनसे  बात करना और इनको काम है यह सबको बताना ,नेतागिरी में और क्या करें ? विद्वान व्यक्ति है , उन्होंने विचार किया कि पार्टी ने कहा है समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना।

अब वह घर से निकले और पहुंच हुए चाय वाले के पास।वह वहां रोज जाने लगे क्यों कि उनको विश्वास था एक न एक दिन समाज का अंतिम व्यक्ति यहीं मिलेगा।पार्टी हित में उनकी तलाश जारी थी।एक दिन उन्हें लगा कि इसके चाय की उधारी ज्यादा हो गई  तो वास्तविक रूप में ये अंतिम व्यक्ति बन जाएगा। इसलिए दूसरी  दुकान की तरफ रुख कर लिया ।उनका विचार था कार्यकर्ता काम धंधे में उलझ जाए तो जनसेवा के उसके कार्य में कमी हो सकती है।घर के काम किए तो उस अंतिम व्यक्ति को कोई और ढूंढ लेगा ।इसलिए घर की तरफ कभी नहीं देखा।उनका शरीर दो चीज के लिए ही बना है कुर्ता पजामा ,और जनसेवा ।उनका मानना है,  ये देश वर्षों से मेरे ही कुर्ता पजामा के इंतजार में है।वह गाड़ी से घर से निकलते है क्यों कि अगर वह पैदल चले  तो समय पर अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाएंगे।

 वह जब राजनीति में सेवा करने आए थे, उन्हें लगता था कि इस शहर में उनकी लोकप्रियता होगी लोग उन्हें ढूंढेंगे ,देखते देखते सचमुच शहर उन्हें ढूंढने लगा उधारी मांगने के लिए ।वह बहुत घिसे हुए नेता है ,गाड़ी के टायर घिस गए ,चप्पल घिस हैं।घिसते घिसते वह देश से नीचे आ कर  प्रदेश में बात होने लगी ।बात ऊपर होना बंद नहीं हुई ।इस बात पर उनकी धाक है, दबदबा है उन्हें घर के लोग और मोहल्ले के दुकानदार जिन्होंने उनके फोटो बड़े नेता के साथ देखे है वह लोग अभी भी नेता मानते है।ये उनका विश्वास है

विश्वास का क्या है ? ,परिवार कर रहा है न वर्षों से ।परिवार को पता है कि नेता जी की बात ऊपर होती है।एक बार एक कार्यकर्ता का फोन आया ,नेता जी,

मुझे पुलिस ने मुझे पकड़ लिया, छुड़वाने आइए,,उन्होंने कहा क्या कर लेगी पुलिस ?अपन तुम्हारी जमानत अदालत से करवा लेंगे,,।

दो दिन वह जेल में बंद रहा,,अब अदालत पहुंचा ,उसने फोन लगाया।

नेता जी ने कहा कोई दिक्कत नहीं,, यहां से नहीं हुई तो हाइकोर्ट थोड़ी बंद हो गया,,।

जिला कोर्ट से जमानत खारिज हुई उसने  कहा भाई साहब,,यहां हाइकोर्ट में कोई जुगाड लगाइए,,नेता जी ने कहा चिंता मत कर सुप्रीम कोर्ट से करवा लाऊंगा,,, मेरी बात हो गई है ऊपर,,। तीन महीने बाद जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद वह कार्यकर्ता जब नेता जी को बाजार में मिला तब नेता जी ने कहा,,देखो तुम्हे जेल में कोई परेशानी नहीं होगी,,मेरी बात हो गई है ऊपर,,।

—-प्रदीप औदिच्य

Pradeep Audichya

प्रदीप औदिच्य आयु 48 वर्ष शिक्षा bsc.MA LLB. व्यवसाय वकालत…

प्रदीप औदिच्य आयु 48 वर्ष शिक्षा bsc.MA LLB. व्यवसाय वकालत पठन पाठन में स्कूल समय से रुचि व्यवस्थित लेखन वर्ष 2020 से,, व्यंग्य रचना स्वदेश समूह में नियमित कॉलम प्रारंभ लगभग 300 से अधिक व्यंग्य, स्वदेश,अमर उजाला,दैनिक ट्रिब्यून,जागरण सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित,, पीपुल्स समाचार चैनल के लिए भी व्यंग्य लेखन,, पता MIG 4 housing board colony near budhe balaji mandir Guna Madhya Pradesh 473001

Comments ( 2)

Join the conversation and share your thoughts

डॉ मुकेश 'असीमित'

5 months ago

आभार आपका रचनात्मक सहयोग के लिए

प्रदीप औदिच्य

5 months ago

मेरे व्यंग्य रचना को स्थान देने के लिए सम्पादक जी का आभार