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“वर्चुअल पूजा वाली बहुएं”-हास्य-व्यंग्य

एक बुज़ुर्ग महिला आरती करती दिख रही हैं, वहीं मोबाइल स्क्रीन पर एक बहू हाथ जोड़कर पूजा में शामिल है — यह वर्चुअल पूजा के माध्यम से जुड़ते परिवार की झलक है।

“वर्चुअल पूजा वाली बहुएं” …

बच्चे प्रगति की होड़ और नौकरी की विवशताओं में दुनिया के दूसरे छोर तक जा पहुंचे हैं। पर हमारे आत्मीय बंधन कमजोर नहीं हुए। इसके चलते भारतीय परिवारों में “वर्चुअल पूजा” का नया ट्रेंड चल निकला है। यह वही पूजा है जिसमें घर की बहू-बेटियाँ नहीं, बल्कि उनका व्हाट्सऐप प्रोफाइल पिक्चर, सास के हाथ में थमे फोन की स्क्रीन पर नाचता है। सासू जी संस्कृति का झंडा थामे, घंटी-शंख बजाती हैं, और बहू 5G स्पीड पर भगवान को विदेश से प्रसाद चढ़ाने की कोशिश करती हैं। हे भगवान! पहले तो तुम्हें मूर्तियों में समेट दिया, अब स्क्रीन पिक्सेल्स में कैद कर लिया। पर करें भी तो क्या? पुराने ज़माने में सास-बहू के रिश्ते की कसौटी चूल्हा-चौका थी। आजकल वह कसौटी “कनेक्टिविटी” बन गई है। सुबह सास का कॉल आता है, “बेटा, आज एकादशी है, उठो! मैं तुम्हें लाइव पूजा दिखा रही हूँ।” बहू, जो रात भर काम करके देर रात सोई है, आँखें मलती हुई फोन उठाती है। एक तरफ सास गंगाजल छिड़क रही हैं, दूसरी तरफ बहू का कैपेचिनो ऑर्डर हो रहा है। पूजा के दौरान सास की आवाज़ ब्रेक होती है, “बेटा, प्रसाद में लड्डू… बफरिंग.. चढ़ा दिए हैं… कनेक्शन लॉस्ट ” बहू सोचती है शायद सास ने “लड्डू” की जगह “सिग्नल” चढ़ा दिया है। परवाह नहीं, पूजा के अंत में सास “स्क्रीनशॉट” फैमिली ग्रुप में डाल देती हैं “आज की पूजा संपन्न।” सभी हाथ जोड़ी इमोजी टाइप कर देते हैं। वर्चुअल पूजा के चलन से बहुओं को न तो व्रत रखने की ज़रूरत है, न ही मंदिर की सफ़ाई या पूजा की थाली तैयार करने का झंझट। सास जी को बस इतना चाहिए कि बहू वीडियो कॉल पर “हाँ” में सिर हिला दे। जाति, धर्म को धता बताकर आई बहू तक संस्कृति पहुँचाना सासू जी अपनी जिम्मेदारी मानती हैं। पूजा के बाद का काम बहू संभाल लेती हैं। सास घी का दीया जलाती हैं, तो बहू बैकग्राउंड में “वर्चुअल मंदिर” का फिल्टर लगा देती है। भक्ति भाव के लिए हाथ जोड़कर एक सेल्फी ले ली जाती है — #”आज की पूजा, #कल्चरनेवरडाई”। और प्रसाद? अब वह “ऑनलाइन ट्रांसफर” होता है। सास कहती हैं, “बेटा, मैंने तुम्हारे नाम के लड्डू चढ़ाए हैं, तुम आना तब खा लेना।” बहू मन ही मन सोचती है, “अगले साल जब फ्लाइट्स सेल होगी, तब।” होशियार बहुएं बच्चों को भी वर्चुअल प्रसाद खिला कर सास का मन जीत लेती हैं। बेटा काल्पनिक प्रसाद खाते हुए बोलता है, “मां पंचामृत ज्यादा खट्टा लग रहा है,” मां हंसकर जवाब देती है, “हां बेटा, फ्रेश दही का पैकेट आया नहीं है।” बहू पूछती है मां ब्लिंकिट कर दूं ? सास खुश हो जाती हैं। इस आयोजन में टेक्नोलॉजी और तर्क टकराते हैं। सबसे ज़्यादा हैरानी भगवान को होती होगी। जब बहू का नेटवर्क डाउन हो जाता है, तो सास भगवान से मिन्नतें करने लगती हैं “हे प्रभु, वाई-फाई का सिग्नल भी अटूट कर दो।” बहू स्टारलिंक के आने की संभावना जताती है। इस ट्रेंड ने बहुओं की जिंदगी आसान कर दी है।

अब उन्हें सुबह उठकर सास के साथ चौका नहीं करना पड़ता। बस फोन म्यूट करके तकिए के नीचे दबा दो, और सास को लगता है बहू “ध्यानमग्न” है। पर कभी-कभी टेक्नोलॉजी गड़बड़ा जाती है। जब बहू का फोन ऑटो-रोटेट होकर उल्टा हो जाता है, तो सास मॉर्डन बहू के नये इलेक्ट्रॉनिक योगासन पर बलिहारी जाती है। यह वर्चुअल पूजा, नई पीढ़ी तक संस्कारों के ट्रांसफर का ट्रांसफॉर्मेशन टाइम है। यहाँ टकराव है विचारों का — “परंपराएँ अटल होती हैं,” बनाम “अडैप्ट ऑर डाई!” पर वर्चुअल पूजा एक मीठी सच्चाई है। नौकरी, शिक्षा के लिए हम कितनी भी दूर क्यों न हों, परिवार टेक्नोलॉजी के सहारे जुड़े रहने की कोशिश करते हैं। भले ही पूजा वर्चुअल हो, पर सास की चिंता और बहू की मजबूरी रियल है। और हाँ, जब तक भगवान तक पहुँचने के लिए “सबमिट बटन” नहीं बनाया जाता, यह सिलसिला चलता रहेगा। वर्चुअल रियलिटी हेडसेट और एआई पंडित भविष्य का नया व्यवसाय बन सकते हैं। अगले पाँच सालों में सुदूर परिवारों का साथ पूजा-पाठ और भी तकनीकी हो जाएगा। सास वीआर हेडसेट पहनकर बहू को थ्रीडी मंदिर में बुलाएँगी। बहू ऑफिस के ब्रेक रूम में खड़े होकर “डिजिटल अक्षत” फेंकेगी। प्रसाद के रूप में क्रिप्टोकरेंसी दान होगी, और आरती के बजाय “लाइक”, “शेयर” के बटन दबाए जाएँगे। तब तक, वर्चुअल पूजा के इस दौर का आनंद लें, जहाँ सास की आवाज़ कभी कॉल ड्रॉप होती है, तो कभी बहू का मन! रही संस्कृति की डोर, वह तो वाई-फाई के सिग्नल से बंधी है!

-विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल

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