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ऋतु विश्ेाष में गर्भस्थ शिशु का पुत्र या पुत्री होना संयोग या सुयोग ?

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पुत्र प्राप्ति के लिए सितम्बर में गर्भ धारण शुभ, पुत्री के लिए दिसम्बर।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा

गर्भस्त शिशु का लिंग निर्धारण और जन्म पर पुत्र या पुत्री का होना क्या ऋतु विशेष पर निर्भर करता है ? क्या वर्ष के किसी माह विशेष में गर्भ धारण से पुत्र या पुत्री का अधिक होना होता है या किसी माह में धारित लिंग विशेष के गर्भस्थ शिशुओं का क्षरण अधिक होता है ?
जयपुर के संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल के 30 वर्ष के हर महीने में जन्मे नर व मादा शिशुओं के आँकड़े कुछ रोचक तथ्य उजागर करते हैं। डा. श्रीगोपाल काबरा और डा. (श्रीमती) विजया काबरा द्वारा किए गए पुलित्ज़र संचार संस्थान, जयपुर के लिए इस अध्ययन के अनुसार, दुर्लभजी अस्पताल में 1972 से 2001 तक 23,933 जीवित बच्चों का जन्म हुआ। इनमें 53 प्रतिशत नर व 47 प्रतिशत मादाएँ थीं।
लेकिन 3 दशक के आँकडों का वर्षवार आकलन दर्शाता है कि सत्तर के दशक में जहाँ बालिकाएँ अघिक होती थीं, वे समयोपरान्त घट गईं और अब बालक अघिक होते हैं। 1972 और 1973 में जीवित जन्मे बच्चों में 53 प्रतिशत बालिकाएँ हुई थीं। सत्तर के दशक में जन्मे बच्चों में 50.3 प्रतिशत बालिकाएँ और 49.7 प्रतिशत बालक थे। अगले दशक 1981 से 1990 के शुरू में ही यह अनुपात उलट गया और इस दशक में 48.7 प्रतिशत बालिकाएँ और 51.3 प्रतिशत बालक हुए।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जीवित जन्मे बच्चों में लिंग अनुपात में यह बदलाव लिंग निर्धारण की विधियों के उप्लब्ध होने के पहले ही हो गया था। लिंग निर्धारण करवा कर मादा भ्रूण गिरवाने की सुविधा के बहुत पहले। 1991-2000 के दशक में यह अनुपात और गिर गया – 44.5 प्रतिशत बालिकाएँ और 55.5 प्रतिशत बालक हो गए। प्रसव पूर्व इतने अधिक मादा भू्रणों का क्षरण चिकित्सकीय विश्लेषण माँगता है। बालिका भू्रण गर्भपात को इसका एक मात्र कारण मानने का कोई आधार नहीं है। प्रसव पूर्व मादा भू्रण नष्ट होने के कारणों में ऐच्छिक गर्भपात मात्र एक और अनुपात में छोटा कारण तो हो सकता है, पर एक मात्र कारण सम्भव नहीं लगता।
माहवार अध्य्यन से रोचक तथ्य सामने आये। प्रतिमाह जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या और उनका लैंगिक अनुपात मौसम और महीनों के अनुसार अलग-अलग होता है। जन्म के महिने से गर्भधारण का माह आंका गया। बच्चे का लिंग, गर्भ धारण पर ही निश्चित हो जाता है। अतः लिंग अनुपात के लिए गर्भ धारण का समय महत्व है।
सर्वाधिक प्रसव अगस्त महीने में होते हैं। 30 वर्षों के यौगिक आँकड़ों के अनुसार ही नहीं वरन् 70, 80 व 90 के दशकों के पृथक्-पृथक् यौगिक आँकड़ों में भी यही पाया गया। अर्थात्् मात्र किसी वर्ष विशेष का संयोग नहीं था। अगस्त में जन्म बच्चे का गर्भधारण पिछले नवम्बर में हुआ होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि या तो नवम्बर में गर्भधारण अधिक होते हैं या फिर इस महीने में गर्भस्थ होने वाले शिशु प्रसव तक जीवित रहने में अधिक सक्षम होते हैं तभी अगस्त में अधिक प्रसव होते हैं।
जून में जन्म लेने वाले बच्चों में बालकों का अनुपात सर्वाधिक 55 प्रतिशत पाया गया। यानी सितम्बर में गर्भधारण से पुत्र प्राप्ति का योग अधिक है। मादा भू्रण के लिए यह महीना गर्भधारण के लिए शुभ नहीं है। यह तथ्य भी 30 साल के यौगिक आँकड़ों में ही नहीं वरन् हर दशक के आँकड़ों के लिए भी यही था।
बालिकाओं का सर्वाधिक जन्म अनुपात 48.5 प्रतिशत सितम्बर में होता है। अर्थात््, दिसम्बर का सर्द मौसम बालिका भ्रूण गर्भ धारण के लिए सर्वाधिक अनुकूल है।
विश्व के अनेक भागों से जीवित जन्म पर लिंग अनुपात में समयोपरान्त आए बदलाव और लिंग अनुपात पर मौसम, गर्मी, पर्यावरण और मौसमी संक्रमण का असर रिपोर्ट किया गया है। ऋतु विशेष में गर्भस्थ हुए शिशु का पुत्र या पुत्री के रूप में जन्म लेना महज़ संयोग नहीं वरन् कई कारणों का सुयोग है।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
15, विजय नगर, डी-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर-302017 मोबाइलः 8003516198

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