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वनों की फरियाद

A young man stands between a lush green forest with a river and flowers on one side, and a barren, polluted landscape with tree stumps and factory smoke on the other. He raises his hand as if to say “stop,” symbolizing a plea to protect nature.

न कर छेड़खानी तू धरती से प्यारे,

ये पेड़ हैं जीवन के सच्चे सहारे।

नदियों की धारा, पवन की रवानी,

सब कहते हैं — “मत कर बेइमानी।”

 

हरियाली ओढ़े ये धरती सुहानी,

तेरे ही कल की है ये राजधानी।

फूलों की हँसी, पंछियों की ज़बानी,

चुपचाप कहती है — “न कर मनमानी।”

 

जब तूने काटे वन, उजाड़े पहाड़,

प्रकृति ने दिखाए अपने विकराल वार।

सूखा, बाढ़, आँधी, जलती धूप,

ये उसके आँसू हैं, उसका है रूप।

 

साँसें भी थमने लगीं हैं अब धीरे,

गरम हो रही हैं हवाएँ क़सके घेरे।

ये तूफ़ान, ये धुंध, ये बीमारियाँ,

तेरी ही करतूतों की हैं कहानियाँ।

 

अब भी समय है, रुक जा ज़रा,

लगा दे हर कोने में हरियाली का तारा।

संभाल ले इस घर को, सहेज ले जीवन,

वरना खो देगा सबकुछ तू एक दिन।

न कर छेड़खानी इस प्रकृति से यार,

ये ही तेरा कल है, यही तेरा संसार।

डॉ. मुल्ला आदम अली,

तिरुपति, आंध्र प्रदेश

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