ये बारिश की बूंदे जला रही मेरा मन ,
अब तक नहीं आए मिलने , मेरे सजन।
फिर जवां हो गए ये पेड़ ये,पत्ते सारे,
उनसे मिलने आ गए हैं, बूंदे बने तारे ,
अब तक नहीं आए मिलने, मेरे सजन।
ये बारिश की बूंदे जला रही मेरा मन ।
बादल इन्द्रधनुष का सेहरा सजा रहा ,
बादल आसमान को ,धरती से मिला रहा ,
अब तक नहीं आए मिलने, मेरे सजन ।
ये बारिश की बूंदे जला रही मेरा मन ।
बगिया भी फूलो की खुशबू से भर गई ,
जो अपने प्रेमी भंवरे से, आज मिल गई,
अब तक नहीं आए मिलने, मेरे सजन ।
ये बारिश की बूंदे जला रही मेरा मन ।
ये जहरीली बूंदे मुझपे जो पड़ रही है ,
मेरी आंखों से ,जमीन पर उतर रही है ,
फिर भी नहीं आए मिलने, मेरे सजन ।
ये बारिश की बूंदे जला रही मेरा मन ।

~विद्या पोखरियाल स्वरचित रचना ✍️
बैकुंठपुर छत्तीसगढ़
bahut hee shandaar kavitaa aapki
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय 🙏