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चाँद हो या..कविता रचना

एक चमकदार रात का दृश्य जहाँ चाँद बादलों के पीछे छुपा है, परंतु एक महिला की छवि उस चाँद से अधिक आकर्षण का केंद्र बनी हुई है — सितारे झिलमिलाते हैं और वातावरण में सजीवता है।

शीर्षक : *चाँद हो या…*

विधा : कविता

आज न चाँद निकला है।

न चाँदनी ही खिली है।

पर सितारों की महफिल।

तो फिर भी जमी है।।

अंधेरे और धुंधले में

एक चाँद चमक रहा है।

जिस पर ही निगाहें

सब की टिकी हुई है।

जिससे वो चाँद भी

शर्माए जा रहा है।

और अपने चेहरे को

दुप्पटे से छुपा रहा है।।

चमकते आकाश में सितारे

तरंगे बिखेर रहे है।

दिलों की धड़कनों को

बढ़ाये जो जा रहे है।

पर किसी से तो वो

दिलको लगा रहे है।

शान ये महफिल में

रंग वो जमा रहे है।।

चमक भरी दुनिया में

दिल को बहला रहे हो।

सुने पढ़े घर में भी

दीप जला रहे हो।

उदासी और निराशा को

अदाओं से निखर रहे हो।

और अपने रंग रूप से

शान-ए-महफिल जमा रहे हो।।

जय जिनेंद्र

संजय जैन “बीना” मुंबई

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