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सच्ची दोस्ती की कड़ियाँ — एक अद्भुत बंधन की बुनावट

दो पुराने स्कूल दोस्त एक छोटे से कमरे में बैठकर खिलखिलाते हुए बात कर रहे हैं। उनके पीछे दीवार पर एक पुरानी फिल्म का पोस्टर और एक पुराने पंखे की झुकी गर्दन है। माहौल में पुरानी यादों की गर्माहट और निश्छलता है।

जीवन की कशीदाकारी में, दोस्त जीवंत धागे बुनते हुए नज़र आते हैं जो हमारे अस्तित्व के स्वेटर में रंग और गर्माहट की पहचान बनते हैं। इन अनमोल बंधनों के बीच, एक दोस्ती है जो मेरे लिए खास है, एक ऐसा रिश्ता जो इतना अनोखा और स्थायी है कि यह समय और दूरी से परे है। यह कहानी मेरे एक ऐसे दोस्त के बारे में है, जो वफादारी और निश्वार्थ स्नेह कि पराकाष्ठा है, जिसकी उपस्थिति मुझे स्कूल के लापरवाह दिनों में वापस ले जाती है, एक पुरानी यादों को प्रज्वलित करती है जो ना केवल मेरे नीरस जीवन में स्फूर्ति उत्साह का ईंधन है बल्कि इस ज़िंदगी के नेटवर्क के लिए रिचार्ज किं तरह है ।

पिछले कुछ वर्षों में बनी अनेक मित्रता में से प्रत्येक मित्रता का अपना उतार-चढ़ाव रहा है, एक मित्र हमेशा ऐसा रहा है जो निरंतर बना रहता है। यह दिलचस्प है कि वर्षों बीत जाने और हमें अलग करने वाली भौगोलिक दूरियों के बावजूद, उसके साथ प्रत्येक रीयूनियन ऐसा लगता है जैसे कोई समय ही नहीं बीता। ऐसा लगता है जैसे जीवन उलटी दिशा में बदल गया है, और हमें मासूम रोमांचों और बेलगाम हंसी से भरे उन स्कूल के दिनों में बरबस वापस ले जाने को मजबूर कर देता है।

हमारी दोस्ती एक ऐसी स्वच्छंद उन्मुक्त यात्रा है, वयस्क जीवन की जटिलताओं से मुक्ति का स्वर्ग है। उसके साथ जब में होता हूँ , सामाजिक स्थिति और प्रतिष्ठा के मुखौटे दूर हो जाते हैं, और रह जाता है तो सच्चे साथ का शुद्ध सार । हमारी बैठकें हमेशा हंसी और यादों का तांडव होती हैं, मानो रोजमर्रा की नीरसता से मुक्ति का एक स्वागत योग्य अवसर । उनकी पत्नी की चंचल डाँट, हमें अपनी अंतहीन बातचीत में डूबने से पहले खाने का आग्रह करना, हमारी मीटिंग का एक परिचित और मनोरंजक अंतराल जो आज भी अपनी ओरिजिनलिटी लिये हुए है ।

वक्त कटता नही उड़ता हुआ प्रतीत होता है जब शरारती घटनाओं की यादें साझा होती हैं – बगीचे से टमाटर चुराना, किराए के वीसीआर पर कमरे में दोस्तों किं जमात टकटकी लगाये एक के बाद एक मूवी देखते बिताये रातें, और चरमराते बिस्तरों पर किराये के कमरे को ख़ाली करते वक्त सामान ले जाने की प्रफुल्लित करने वाली कठिन परीक्षा जैसे कि एक गंभीर जुलूस में भाग ले रहे हों। हमें ढीले तारों वाले टूटे-फूटे बिस्तरों और शोर मचाने वाले पंखे जो अपनी पंखुड़ियों से हवा देने के बजाया अपनी लगातार हिलने वाली गर्दन से अभीवादन करते हुए बिताई गई रातें याद आती हैं, और पंखा हमे ऐसे घूरता है जैसे किसी भी समय छत से टपककर हमारा आलिंगन करने को तैयार हो । ये अनगिनत यादें, जिनमें से प्रत्येक पिछली से भी अधिक आनंददायक है, ऐसे ख़ज़ाने हैं जिनका अगर मुझ से कहा जाये की आज की वैभव दौलत देकर उन्हें मुझ से छीन लिया जाये तो शायद मेरे लिए घाटे का सौदा होगा

मुझे अपने नए तीन मंजिला अस्पताल के नवीनीकरण के बारे में उनके साथ साझा करना याद है, उम्मीद थी कि वह इसकी भव्यता से आश्चर्यचकित हो जाएगा । लेकिन मजाल की उसे कोई परवाह हो ,उसकी ढीठता को दाद देनी पड़ेगी अपने स्वभाव के अनुरूप, भौतिक उपलब्धियों से प्रभावित हुए बिना, वह बदलावों पर ध्यान दिए बिना ही अंदर चला आया बिना एक नज़र किए हुए कि यार ने कुछ तरक्की की है जरा एक नज़र तो मार ले ।भाई को कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता यार
वह बातचीत हमारी दोस्ती के बारे में बहुत कुछ कहती है। वह मुझे देखता है मुझ में आज भी वो स्कूल के समय का लड़कपन भरा दोस्त माना कि उसके लिए वो बंधन उसी जगह स्थिर और स्पष्ट परिभाषित हो गया और बो कभी नहीं बदलने वाला मेरी उपलब्धियों या सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए ।

हमारा बंधन कृष्ण और सुदामा की पौराणिक मित्रता की याद दिलाता है, जहां भौतिक धन और स्थिति का कोई मूल्य नहीं है। हमारी कहानी में, यदि हममें से एक कृष्ण है, तो दूसरा सुदामा है, तो में कहूँगा की सुदामा में हूँ और वो कृष्ण से भी बढ़कर कृष्ण ने तो अपने अतुलनीय अकल्पनीय संपदा बैभव में से कुछ अंश दिया लेकिन उसने इस सुदामा को अपनी सामर्थ्य से कही अधिक भाव और प्रेम से मुझे हमेशा सहयोग दिया सहारा दिया । उसका अटूट स्वाभिमान क्या कहने
क्या मजाल जो एक शब्द अपने किसी दुख पीड़ा के लिए मुँह से निकाल दे वस्ताब में दोस्ती का असली रिश्ता कभी भी दायित्वों या अपेक्षाओं से प्रभावित नहीं होता ।

ऐसी मित्रता को समझना जटिल है। यह एक ऐसा बंधन है जो मान्यता या स्वीकृति की आवश्यकता से परे है। मेरे जीवन में प्रत्येक मित्र अनमोल है, और यह विशेष मित्रता उनमें से एक रत्न है – अमूल्य और अपूरणीय। यह इस तथ्य का प्रमाण है कि सच्ची दोस्ती सिर्फ जरूरत के क्षणों में मौजूद रहने के बारे में नहीं है, बल्कि जीवन के उतार-चढ़ाव से अप्रभावित रहकर निरंतर मौजूद रहने के बारे में है।
क्षमा करना इस दोस्त का नाम में नहि लेना चाहता क्यों कि मुझे मालूम है वो कहेगा अछा भई में ही मिला तुझे अपनी लिखनी से इम्प्रेस करने के लिये

ऐसी दुनिया में जहां रिश्ते अक्सर सतहीपन और भौतिक लाभ पर टिके होते हैं, यह दोस्ती वास्तविक संबंध के एक प्रतीक के रूप में मुखर है, जो मुझे हमेशा किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहने के विशुद्ध आनंद की याद दिलाती है ऐसा दोस्त जो बिना शब्दों के आपको समझता है, जो आपके अंतर्मन के सार के लिए आपको महत्व देता है। मेरा मानना है कि यही दोस्ती का असली सार है।

डॉ. मुकेश असीमित—साहित्यिक अभिरुचि, हास्य-व्यंग्य लेखन, फोटोग्राफी और चिकित्सा सेवा में समर्पित एक संवेदनशील व्यक्तित्व।
डॉ. मुकेश असीमित
✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक

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2 Comments

  1. Meenakshi Anand

    मित्रता की आत्मीय गहराइयों को अत्यंत भावुकता और सहजता से उजागर करता हुआ अत्यंत प्रभावशाली और आकर्षित आलेख।
    हार्दिक नमन है डॉ. मुकेश ‘असीमित’ आपकी अद्भुत व्यंगात्मक सोच और अद्भुत शब्दों की मसि से भरी हुई लेखनी को🙏🙏

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