“मैं और मेरा मोटापा – एक प्रेमकथा”
✍️ डॉ. मुकेश ‘असीमित’
“गर्ग साहब आप कौन सी चक्की का आटा खाते हो रे…?”
यह प्रश्न मेरे पड़ोसी शर्मा जी हर सुबह तब पूछ बैठते हैं जब मैं अपने मकान के झरोखे से अपनी तोंद को हवा खाने के लिए बाहर लटकाता हूँ। उन्हें लगता है जैसे गली की हवा का आवागमन मेरी तोंद ने ही रोक रखा है। उनके मुताबिक यह अनधिकृत अतिक्रमण है, मानो किसी नगर निगम की नोटिस का इंतज़ार कर रहा हूँ।
शर्मा जी को मेरी तोंद से गहरी व्यक्तिगत शिकायत है। वे ताना कसते हैं—“सरकारी राशन की डेढ़ छँटाक से भी पेट ऐसे तन गया है जैसे चाँद पर तिरंगा।” इसके बाद चार मोटे रिश्तेदारों की अकाल मृत्यु का खौफ़नाक विवरण सुना कर मुझे भयभीत करने की कोशिश करते हैं। खुद अपनी तोंद सहलाते हुए उपदेश का पुलिंदा भी बाँध देते हैं। उनके अनुसार हम डॉक्टर लोग अगर ऐसे पेट रखेंगे तो समाज का मनोबल गिर जाएगा। उनकी नज़रें तिरस्कार से भरी होती हैं, मानो कह रही हों—“ये…!”
मगर मैं भी डॉक्टर हूँ। डराने की दवा मेरे ऊपर असर नहीं करती।
कहते हैं जो खाओगे, वही लगोगे। लगने तक तो ठीक है, लेकिन कई बार यह शरीर को हद से ज़्यादा लगाकर ओवररिएक्ट कर जाता है। सादा सरकारी राशन, मिलावटी दाल, आटा, दूध, घी खाकर भी कुपोषण का शिकार होने के बजाय मैं फुलता ही जा रहा हूँ। ऐसा लगता है जैसे यह अन्न मुझे ऊर्जा नहीं, बल्कि मूर्खता और फुलाव बाँट रहा है—मेरी तोंद मुझसे आगे निकलकर अपनी ही अलग पहचान बनाना चाहती है।
इस बदनामी से इतना भयभीत हूँ कि अपनी फूलती तोंद को ऐसे छिपाए रखता हूँ जैसे कोई अनचाहा गर्भ। गली-मोहल्ले की नज़रों से बचाकर, गुपचुप। समझ नहीं आता लोग मोटापे को एसेट क्यों नहीं मानते? जीवन में कोई साथ दे न दे, यह मोटापा तो हर हाल में साथ रहता है। समाज जोड़ तोड़,बेईमानी,झूठ फरेब से अर्जित की हुई धन दौलत को संपत्ति मानता है, पर तोंद को नहीं। तोंद जो बिना किसी सायास प्रयास के मुंह उठाये चली आते है आपके पास ,बिन बुलाये मेहमान की तरह..क्यों? चोरी का भी कोई डर नहीं। यह तो आपकी काया रूपी तिजोरी में सात तालों से बंद पड़ी अमानत है। धन-दौलत तो माया है—आनी-जानी, चंचला। कभी आपके पास, कभी पड़ोसी के पास। लेकिन यह नियामत—यह तोंद—मरते दम तक आपका साथ नहीं छोड़ेगी।
आजकल यूट्यूबर और रील बनाने वाले मोटापे को ऐसे प्रस्तुत करते हैं जैसे सावधान इंडिया का कोई एपिसोड चल रहा हो—“ध्यान से देखिए इस आदमी को। इसके भीतर मोटापा छिपा है। यदि कहीं दिखे तो तुरंत सूचना दें। हम दावा करते हैं, बीस दिन में इसका मोटापा गायब कर देंगे!”
सुना है सरकार भी अब मोटापे के पीछे पड़ गई है। पहले तो सिर्फ़ रिश्तेदार और पड़ोसी पीछे पड़े रहते थे, अब सरकार भी नज़र रखने लगी है। अब सुनने में आया है कि मोटापे की प्रणय स्थली हर फास्ट-फूड की दुकान पर उन तमाम खाद्य सामग्री—कचौरी, समोसा, जलेबी, रबड़ी, रसगुल्ला—के कंटेंट और इंग्रेडिएंट की अधिकृत सूची टँगी रहेगी जिनसे मोटापे के अवैध संबंध पनपते हैं।
लेकिन हमें क्या फ़र्क पड़ता है? आपका काम है चेतावनी देना, और हमारा काम है उसे चुनौती समझकर स्वीकार करना।
ये चेतावनियाँ हमारे लिए एडवेंचर है। आपने लिखा—“इस दीवार पर पेशाब करना मना है।” तो हमने ठेंगा दिखाया , किया छाती ठोक कर किया मित्र..और लिखे गए वाक्य के ठीक नीचे किया । आपने सिगरेट के हर पैकेट पर लिखवा दिया—“ये मौत का बुलावा है, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का बुलावा है।” हमने वहाँ भी अपना साहस दिखाया।
अब आप हमारे मोटापे और हमारे शरीर के लिव-इन रिलेशनशिप को भी अवैध करार दे रहे हैं। इस फूलते-फैलते मोटापे को जन्म देने वाली खाद्य सामग्री ,तोंद को माँ का प्यार देने वाली इन खाद्य सामग्रियों को जिनका दूध का कर्ज है हमारे ऊपर,उन पर भी चेतावनी के बोर्ड टाँगे जा रहे हैं—“इसमें इतना कोलेस्ट्रॉल है, इतना तेल है, इतना मीठा है।”
अरे टाँगिए बोर्ड! हम तो उस बोर्ड को उखाड़कर प्लेट बना लेंगे और उसी पर समोसा चटनी के साथ खाएँगे। और आप देखते रह जाइएगा।
मैं और मोटापा अक्सर आपस में बातें करते हैं—“क्या होता अगर तू नहीं होता? मैं फिगर में कैसे कहलाता?” हाँ जी, गोल भी तो एक फिगर है। तुम न होते तो क्या होता… तुम ही हो जो 24×7 मेरे साथ रहते हो। मेरी छाया भी एक दिन साथ छोड़ दे, पर तुम कभी नहीं छोड़ोगी—मुझे इस पर पूरा विश्वास है।
मेरी जीवन-संगिनी, मोटापा—तुम्हें नमन है, अभिनन्दन है।
ये जो रसभरी गुलाबजामुन हैं, ये पेट को अटकन-बटकन खेलने के लिए मिली गोटियाँ हैं या कुछ और? ये रबड़ी है या ज़मीन पर उतरी चाँदनी? ये पास्ता है या मेरे जन्म-जन्मांतर की दबी हुई चाहत? ये पिज़्ज़ा है या पूनम के चाँद का दर्शन?
ये हवा का झोंका है, या भजियों के तलने की सोंधी महक? ये कुरकुरों की सरसराहट है या तुम्हारी कोई धीमी फुसफुसाहट? मजबूरी यह हालत मन में भी है, तन में भी, हमारी जेब में सड़ रहे धन में भी है।
डाइटिंग की काली रात इधर भी है, उधर भी। इस पेट को मोटापे के साथ काली रात में काला मुँह करने से कोई रोक नहीं सकता।
करने को बहुत कुछ है मगर बैठ-तले निठल्ले। क्या करें हम? कब तक यूँ ही भूखे रहकर वर्कआउट करते रहें हम? दिल कहता है—दुनिया की हर मीठी, तली-भुनी चीज़ चख लो।
दीवार जो हम दोनों में है, आज गिरा दें। क्यों दिल में सुलगते रहें? लोगों को बता दें—हाँ, हमें मोहब्बत है, मोहब्बत है, मोहब्बत है… अपने मोटापे से हमें मोहब्बत है।

✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक
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बेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण इस प्यारी तोंद का
बहुत बहुत आभार आपकी प्रतिक्रिया के लिए
वाह 😂😂
आभार आपका