रोशनी ख़ुशबू का मेरे घर में आना कम रहा
किसलिए नाराज़ मुझसे उम्र भर मौसम रहा
लौट आया दौड़ कर सीने से मेरे लग गया
दूर मुझसे एक पल को भी न मेरा ग़म रहा
हाथ में पत्थर लिए मुझको सभी अपने मिले
ज़िन्दगी भर मैं मगर सच बात पर क़ायम रहा
बेवजह तारीफ़ करना मेरी आदत में नहीं
इसलिए महफ़िल में भी तन्हाई का आलम रहा
हमने सारी उम्र कुछ भी आप से माँगा नहीं
आपके हाथों में क्यूँ ख़ंजर कभी मरहम रहा
साथ में खाईं थीं क़समें हक़ बराबर का मिले
आपकी आवाज़ का संसद में स्वर मद्धम रहा
किशन तिवारी भोपाल