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आखिर कब तक ढूढ़े मां-Poem

एक प्रतीकात्मक चित्र जिसमें माँ की धुंधली परछाईं है, गोद फैली हुई है और बच्चा सिर रखकर सिसक रहा है। चारों ओर आंसुओं की लहरें और आसमान में हल्की रोशनी, जो ममता और यादों के अनकहे दर्द को दर्शाती है।

आखिर कब तक ढूढ़े मां

खुशियों की वजह

मन को तेरे रंग में रंगना होगा

तुम्ही हो मुस्कुराने की वजह भी

यही चोला भी पहनना होगा

कब तलक तुम्हारा इंतजार करूँ मां

वक़्त का क्या एतबार करूँ मां

खुद ही आगे चलकर

रास्ता भी नया चुनना होगा

तेरे एहसास के साये में आगे बढ़कर

सपना भी नया बुनना होगा

न जानें ये पलके कब सूख गई

मां तुझे याद करते करते

न जाने तेरा आँचल नम कब हुआ

तेरी गोदी में सर रखे हुए

मां बहुत याद आती हो

सिसकती करवटों में

अनकही बातों में जो

न कह पाई आंखे तुमसे

आंसू जो रुकते नहीं

बेचैनी कम होती नहीं

मन बेकरार रहता है

क्या कहूं, क्यो कहूँ , मां

अब तेरा ही इंतजार रहता है

अर्च्नाकार -ममता अवधिया

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