नवरात्र: अपने भीतर की देवी को जगाने का निमंत्रण
नवरात्र कोई साधारण त्योहार नहीं। यह जीवन की कोर-कसरत है, एक गहन साधना है, आत्मा के भीतर की देवी को पहचानने और उसे जीवन में सक्रिय करने का आयोजन है। नौ रातों तक चलने वाला यह पर्व न सिर्फ माँ दुर्गा के विविध रूपों की पूजा है, बल्कि मनुष्य के भीतर छुपी ऊर्जा, विवेक, करुणा और साहस की तलाश भी है। यह वह कालखंड है जब धर्म, दर्शन और दैनिक जीवन एक-दूसरे में ऐसे घुल जाते हैं जैसे घी, शहद और तुलसी पंचामृत में।
इन नौ रातों का रहस्य केवल पूजन-पद्धति नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक यात्रा है—स्वयं से स्वयं तक की। हम देवी के नौ रूपों को पूजते हैं, लेकिन क्या कभी हमने विचार किया कि ये रूप हमारे अपने जीवन के आयाम हैं? शैलपुत्री का साहस, ब्रह्मचारिणी का तप, चंद्रघंटा की आक्रोशित ऊर्जा, कूष्मांडा का सृजन, स्कंदमाता का मातृत्व, कात्यायनी का न्याय, कालरात्रि की निर्भीकता, महागौरी की निर्मलता और सिद्धिदात्री की पूर्णता—ये सब हमारे भीतर जागने की प्रतीक्षा में हैं।
उपवास और संयम कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक अनुष्ठान है। जब पेट खाली होता है, तो मन स्पष्ट होता है। और जब मन स्पष्ट होता है, तब आत्मा बोलने लगती है। यह पर्व उसी आवाज़ को सुनने का अवसर है। भीतर के ‘महिषासुर’—काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार—को पहचानने और पराजित करने का पर्व है नवरात्र।
और यह अकेले की यात्रा नहीं। जब मोहल्ले, कस्बे, महानगरों में गरबा की लय पर हजारों लोग एक साथ थिरकते हैं, तो वह एक लयबद्ध प्रार्थना बन जाती है—भिन्नताओं में एकता की, विविधताओं में समरसता की। यह समवेत प्रयास हमें बताता है कि शक्ति का स्रोत अकेले नहीं, समुदाय में है। नवरात्र केवल देवी की पूजा नहीं, स्त्री शक्ति का उत्सव है। एक आत्मस्मरण है कि जब हम देवी को तो पूजते हैं, पर अपनी बेटियों, बहनों, सहकर्मियों को वही आदर नहीं देते, तो वह पूजा अपूर्ण रह जाती है।
यह पर्व एक दर्पण है, जिसमें हमें अपने सामाजिक व्यवहार का, स्त्री के प्रति दृष्टिकोण का, और सामूहिक ऊर्जा के प्रति सजगता का प्रतिबिंब देखना चाहिए। क्या हम वाकई नारी को शक्ति मानते हैं, या केवल उसकी मूर्ति को?
और फिर आता है यह पर्व अपने सबसे जरूरी संदेश के साथ—पुनर्जन्म का। नवरात्र जीवन को दोबारा शुरू करने का अवसर है। हर वर्ष आने वाला यह पर्व कहता है—जो टूट गया, उसे छोड़ दो। जो बीत गया, उसे विसर्जित कर दो। भीतर जो सो रहा है, उसे जगाओ। अपने भीतर की देवी को आमंत्रित करो। नई ऊर्जा, नया उत्साह, नया प्रकाश।
आज, जब स्क्रीन की रोशनी में आंखें थक चुकी हैं, जब सूचनाओं की बाढ़ में चेतना डूब चुकी है, तब नवरात्र हमें विराम देता है—एक साँस भरने की जगह, आत्ममंथन की संभावना। यह एक रिमाइंडर है कि जीवन कोई रेस नहीं, कोई लक्ष्य नहीं—बल्कि एक साधना है, एक क्रमिक जागरण।
नवरात्र का यही सबसे बड़ा संदेश है—अपने भीतर की शक्ति को पहचानो। अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ। और इस जीवन को इतना जाग्रत करो कि वह दूसरों के लिए भी दीपक बन सके। जब आप अपनी चेतना के अंधकार को पराजित करते हैं, तो वही सबसे बड़ी विजयदशमी होती है।
नवरात्र केवल धर्म नहीं, आत्मजागरण है। पूजा नहीं, आत्मसाक्षात्कार है। और शक्ति नहीं, वह साहस है जो एक साधारण मनुष्य को असाधारण बना देता है।

✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक
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