कलियुग का रावण
अखबार में एक खबर पर नज़र पड़ी… इस बार रावण बनाने के लिए इम्पोर्टेड कागज मंगवाया जा रहा है जापान से… रावण भी ‘मेड इन जापान!’ लो जी…कर लो बात , रावण भी इम्पोर्टेड! मतलब, हमें हमारी देसी टेक्नोलॉजी पर इतना अविश्वास हो गया है… । कह रहे हैं ,देसी मटेरियल से बना रावण, बरसात की मार नहीं झेल पाता । गलने लगता है बूँदें पड़ते ही.. । रावण को बने रहना पड़ेगा दशहरे तक .. । पुतले रावण के ही बनते हैं ना, राम के नहीं। पुतले बोलते नहीं, उन्हें जैसा आकार दे दो, अपने मन की मर्जी के रावण का आकार।ये दस सर क्यों बना रहे हैं..अपने मन के रावण जैसा बनाना है तो एक ही सर बना दो, वही जो दुनिया को दिखाते हो..किसने देखा है, अन्दर छुपाये रखे वो दस घिनौने चेहरे ।बनाना है तो बनाओ उसके दो हाथ जो पीछे बंधे हुए है..जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ के ,रिश्वत के फेविकोल से बंधे । सजा दो उसकी आस्तीन में वो जातिवाद,भ्रष्टाचार,धार्मिक उन्माद के जहरीले सांप .. । लेकिन नहीं..हम रावण को रावण जैसा बना भी दें फिर भी हम वो हैं जो उसे राम भी बता दें ,तो आपको विश्वास करना पडेगा … । हमारी नजर में राम और रावण में कोई भेद नहीं.. । रावण के पुतले को एक ने गदा पकड़ा रखी है, कोई धनुष भी पकड़ा सकते हैं। कल के लिए ये कहना मुश्किल हो जाएगा कि जो सामने खड़ा है वो रावण है या राम ? पुतला कह रहा है मुझे कम से कम रावण तो रहने दो ? बुराई का असली प्रतीक.. । मैंने राम से दुश्मनी भी की तो असली दुश्मनी ..दिखावा नहीं किया,तुम लोगों की तरह.. । हो सकता है कल रावण के पुतले को अपने कागजात दिखाने पड़े कि “भाई, मैं रावण ही हूँ, मुझे राम बनाया जा रहा है,मेरी आइडेंटिटी भी छीनी जा रही है !”
पुतला बनेगा रावण का,पुतले को मारना आसान है। असली रावण तो सबके अंदर छुपा हुआ है,दिखता ही नहीं है । रावण के पुतले को बड़ा बनाते हैं,काफी उंचा,ताकि दूर से ही नजर आ जाए,जलाना आसान हो जाएगा ..उसे ही असली रावण मानकर ,उसे मारकर हम संतुष्ट हो लेते है… , चलो काम ख़त्म …अब अगली साल देखेंगे … । आयोजन समिति ने इस बार वार्निंग दे दी है..” देखो रामदीन ,तुम्हरी टीम ने पिछली बार जो रावण बनाया था,बड़ा जिद्दी था यार, जल ही नहीं रहा था.. । हमारे अतिथि महोदय नाराज हो गए थे..! पता है ,वो जो डोनेशन बोल रखा था उन्होंने वो भी देकर नहीं गए…वो तो भला हो किसी शहर के ही मनचले ने पीछे से जाकर आग लगा दी… । इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए रामदीन ,अपने कारीगरों को समझा देना ,वरना हम पेमेंट रोक लेंगे.. ।“
मेले में बच्चों को घुमा भी लाये,कुछ चाट-पकोड़ी खिला लाये.. । पिकनिक जैसा कुछ हो गया.. । जैसे बच्चे की कोई रीरी थी जिसे एक टॉफी दिला दी बच्चा चुप हो गया..अब देखेंगे अगले साल.. ।सदियों से यही होता आया है..रावण के पुतले बनेंगे राम के चोगे बनेंगे..! इंसान को आता है मन के रावण को छुपाना, उस के ऊपर सभी ने राम के चोगे ओढ़ रखे हैं.. ।’
मेला सज चुका है, रावण के पुतले—छोटे, बड़े, डोरेमोन स्टाइल, स्पाइडरमैन स्टाइल, डायनासोर स्टाइल..बच्चों के मनपसंद के टीवी ओर कॉमिक्स करेक्टर में ढले रावण ..,बड़े क्यूट से रावण—सब कुछ बाजार में मौजूद हैं।बच्चे रावण के खिलोने ही पसंद कर रहे हैं ..उन्हें मारने के लिए नहीं..अलमारी में या उनके स्टडी टेबल पर सजाने के लिए.. । उन्हें मानते हैं असली हीरो ..:—”मॉम, देखो कितना क्यूट है!” पर कोई राम, लक्ष्मण, सीता के खिलौने नहीं ले रहा। वनवासी भेष में राम, सीता, लक्ष्मण किसी को नहीं भा रहे…”कूल नहीं है मोम ये ।“
दुकानदार भी खुश हैं—इस बार भी रावण के खिलौनों की मांग ज्यादा थी, पहले से ही दस गुना ज्यादा स्टॉक रखा था, और सब बिक गया। बचे रह गए तो बस राम, लक्ष्मण और हनुमान के खिलौने।
सच में, हम रावण को सिर्फ इसलिए जला पाते हैं क्योंकि हमें पता है कि अगले साल फिर उसे जलाने का मौका मिलेगा। अगर कोई कह दे कि ‘बस, इस बार आखिरी बार जलाना है,’ तो शायद कोई तैयार न हो। क्यूँ की हमें भाता है रावण को हर साल देखना ,और बड़े कद में,और भव्य,और आकर्षक.. । ये तो नेताओं, आयोजकों और संस्थाओं के लिए भीड़ जुटाने का एक सर्कस शो है, एक स्टार सेलिब्रिटी के रूप में रावण मौजूद है ,प्रसिद्धी ,धन,यश ,वोट,अहंकार..सब कुछ आपके लिए बटोरेगा..’हुकुम मेरे आका ।‘
आप क्या सोचते हैं,राम के भी पुतले बनने चाहिए..क्यों नहीं बनते ? बनाने की कोशिश करते भी हैं..लेकिन जब बनकर तैयार होते है तो देखते है…ये तो रावण का बन गया.. । आदमी पुतले में अपने मन का अहंकार ही तो उतारता है ,जब तक मन का अहंकार रहेगा , पुतला रावण का ही बन पाएगा,कितनी भी कोशिश कर लो।”
इस देश में एक सोची-समझी साजिश चल रही है… हर इवेंट को एक मुद्दा बना दो … मुद्दा जितना चमकीला और आकर्षक होगा, ताकतवर होगा,बड़ा होगा,उतनी ही जनता आकर्षित होगी। कोई भी घटना एक मुद्दा बने, समस्याएं भी मुद्दा बनें। समस्याएं हल नहीं होनी चाहिए, मुद्दे हल होने के लिए नहीं, दिखाने के लिए होते हैं। हर बार मुद्दे को बड़ा किया जाता है… मुद्दे को वाटरप्रूफ, बरसात रोधी, फायरप्रूफ बनाया जाता है।
हो सकता है कल रावण को जलाने की बजाय गाड़ने की सोचें, ताकि उसे जब चाहें कब्र से उखाड़ सकें, झाड़-पोंछकर दिखा सकें कि “देखो, ये है रावण! बुराई का प्रतीक, और हमें इसे मारना है, जलाना है। ये सामने खड़ा है, आप नहीं मारो इसे , तुम्हे मारने का अधिकार नहीं है , हमें मारने दो । हम पत्थर मारेंगे, तीर मारेंगे, इसे जलाएंगे। ये अधिकार तुम हमें दो, अपना वोट हमें दो, ताकि हम उसे मार सकें।”
“समस्याएं?” हाँ, बस रावण को हम मार देंगे तो सारी समस्याएं हल। बेरोजगारी की समस्या, गरीबी की, महंगाई की, हर समस्या का समाधान है बस रावण को जलाते रहना। लेकिन रोज-रोज नहीं जलाना है। पहले इसे बड़ा होने देंगे। छोटे रावण को मारेंगे तो जनता को मजा नहीं आएगा, इसलिए बस इंतजार करो… रावण बन रहा है… वाटरप्रूफ… आकर्षक। तुम्हारे मन का रावण अट्टहास कर रहा है… हाँ, अब आएगा मजा! देखो रावण के जलने के साथ ही शहर की सारी समस्याएं जल कर राख हो गयी ..अब कोई टूटी सड़क नहीं,कोई कचरे से अटी पडी नालियां नहीं…कोई बीमार नहीं..कोई गरीब नहीं..कोई भूखा नहीं.. ।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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