अमीर दिखने का विज्ञान
देखिए अमीर बनना मुश्किल है—पसीना, टैक्स, इनकम, अकाउंटेंट सब चाहिए होते हैं। लेकिन आसान है तो अमीर दिखना। बस आप तैयार हो जाइए, हम कुछ ऐसे नुस्ख़े लेकर आए हैं जो आपको कुछ ही सेकंड में अल्ट्रा रईस दिखाने के लिए मददगार होंगे। आखिर एक कहावत भी तो है—“Fake it till you make it।”
सबसे पहला सबब ये है कि घर साफ़-सुथरा रखो। अमीरों के घर की पहचान बैंक बैलेंस से ज़्यादा उनके झाड़ू-पोंछे से होती है। ध्यान रहे, सफ़ाई के लिए पुराने जाँघिए या बनियान को डस्टर मत बनाओ—अमीरों के यहाँ धूल झाड़ने का भी क्लासी अंदाज़ होता है।
अब दूसरा सबब—चाय हो या कॉफी, कप में ही पियो। स्टील की प्लेट में सुर्र-घूँट करने से आप सीधे मिडिल क्लासिये ही लगेंगे। और हाँ, टीवी-एसी के रिमोट पर पन्नी मत चढ़ाओ। रिमोट है, दादाजी का शेयर सर्टिफ़िकेट नहीं कि लेमिनेट करवा लो मित्र।
और हाँ, कसम खाओ ये तीसरा सबब हरगिज़ याद रखोगे—दीवाली पर मुफ़्त वाले किराने की दुकान के कैलेंडर से घर मत सजाओ मित्र। लक्ष्मी के पाने तक के लिए अख़बार की जी-हजूरी मत करो। एक पन्ना बाज़ार से खरीदकर भी लाया जा सकता है। फिर कैलेंडर टाँगने की ज़रूरत ही क्या है? अमीरों के यहाँ आपको कैलेंडर कभी नहीं मिलेगा—उनका हर दिन अच्छा ही होता है, समझे आप। और दूध का हिसाब? अरे वो अब ऐप से होता है, स्मार्टफोन सिर्फ़ सेल्फ़ी खींचने के लिए नहीं है। दूधवाले का हिसाब कैलेंडर पर लिखना “गरीबी” की निशानी है।
कुछ और ख़ासियतें बताएँ अमीरों की—उनके बेडरूम में भी झाँक लो। अमीर लोग सोते समय भी सोने के गहनों और पूरे मेकअप में सोते हैं। नींद आए या न आए, पर चौड़ बनी रहनी चाहिए। रोशनी भी ऐसी रखो कि घर अस्पताल का वार्ड सा न लगे—वार्म लाइट, हल्की पीली, ताकि लगे ज़िंदगी पहले ही रोशन है।
और हाँ, अलमारी… अरे मित्र, दीवारों के कान होते हैं ये तो सुना है, लेकिन हमारे मिडिल क्लास के घरों में घुसो तो दीवारों में अलमारियाँ ही अलमारियाँ मिलेंगी। तो सबब ये है मित्र कि इन अलमारियों को “ट्रक का गोदाम” मत बनाओ। उतना ही सामान रखो जितना दिखाने लायक हो। और फ़र्श पर मैट बिछाओ, पुराने अख़बार नहीं।
कुछ बोनस सबब भी ले लीजिए—काली-पीली-नीली रबड़ की चप्पलों से तौबा करें। स्लाइडर पहनकर चलो, ताकि लगे कि आपको अपने पैरों की नहीं, इटालियन मार्बल की चिंता है। और सबसे ज़रूरी—पीठ सीधी रखो, चाल में ठसक हो। कभी देखा है किसी अमीर को झुके हुए चलते?
पुरानी छेद वाली टी-शर्ट, बरमुडे या चड्डी पहनोगे तो मोहल्ले के बब्बन चाचा ही नज़र आओगे। अमीर दिखना है तो रात को भी कॉलर वाला नाइट सूट पहनना—वो भी हल्के रंग का। ताकि लगे कि दाग से आप डरते ही नहीं—ड्राईक्लीन वाला है न भाई!
अब फ्रिज खोलो और अंदर से गरीबी का आलू-प्याज़ बाहर निकाल फेंको। इनकी जगह फ्रिज में एवोकाडो होना चाहिए। खाओ आलू ही, लेकिन दिखाओ एवोकाडो। दाल-मेथी को प्लास्टिक डब्बे में नहीं, शीशे की बोतल में स्टाइल से भरकर रखो और बड़े कॉन्फिडेंस से कहो—“We recycle everything… हम प्लेनेट बचा रहे हैं।”
अमीर लोग ब्लैक डॉग या पैगबग का झंझट नहीं करते। उनके पास वाइन ग्लास होते हैं। और वाइन भी ताज़ी नहीं, सड़े हुए फलों से बनी चाहिए। क्योंकि खाने से पेट भरना गरीबों का काम है, अमीर लोग पेट से ज़्यादा अपने ईगो को खिलाते हैं।
जहाँ-तहाँ तौलिया टाँगना गरीबपना है। उसे ढंग से फोल्ड करके रखो। और सोने के लिए पुरानी चादर नहीं—जो आपने पुरानी साड़ियों को काट-छाँटकर सिलाई करके बनाई हो। अरे मित्र, “कंफर्टेबल कोज़ी बेडिंग” होनी चाहिए। तकिए इतने हों कि आधा बिस्तर उन्हीं से भर जाए और सबकी खोलियाँ मैचिंग होनी चाहिए। नहीं हैं तो एसआईपी तोड़ दो, एफडी तोड़ दो, रिटायरमेंट प्रोविडेंट फंड निचोड़ दो, लेकिन तकिए मैच होने चाहिए।
गर्मी लगे तो फुल ब्लास्ट एसी चलाओ। एसी चाहे फुल पर चले या कम पर, बिल उतना ही आना है। बाहर पर्यावरण विभाग रो रहा हो, तुम्हें फर्क नहीं पड़ना चाहिए। तुम तो “सस्टेनेबिलिटी” के नाम पर पुरानी बोतलें रिसाइकल कर रहे हो—बस वही तुम्हारी कार्बन क्रेडिट है।
ग्लास के नीचे हमेशा कोस्टर होना चाहिए। वरना वाइन का ग्लास टेबल पर दाग देगा और लगेगा तुमने किश्तों पर फर्नीचर लिया है। और हाँ, बिस्तर पर हमेशा कोई मोटी-सी इंग्लिश किताब रखो। क्योंकि अब पैसे तो हैं ही (दिखाने के लिए), पर ज्ञान भी चाहिए। चाहे पढ़ो मत, बस कवर सबको दिखना चाहिए।
एक टिप्स और—“महंगे बर्तन सिर्फ़ मेहमानों के लिए हैं” ये सोच निकाल दो। रोज़ का खाना भी महंगी क्रॉकरी में ही खाना है। ताकि कोई अचानक आ भी जाए तो लगे—“सस्ता सामान इनके घर में है ही नहीं।”
तो मित्र, ये थे कुछ टिप्स और ट्रिक्स। बस अब देर किस बात की, अपने कान अलर्ट रखो, दरवाज़े की कॉल बेल पर कोई तो होगा जो कहेगा—“भाईसाहब, क्या बात है! आप तो बड़े पहुँचे हुए रईस लगते हैं।” तो समझ लेना—मिशन सफल! 😄

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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