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आधुनिक संत-व्यंग्य कविता

“एक आधुनिक संत लग्ज़री कार के पास खड़ा है, भगवा वस्त्रों में, गले में रुद्राक्ष और हाथ में मोबाइल, पीछे भक्तों की भीड़ और मंदिर। व्यंग्यात्मक कला में चित्रित संत संस्कृति की विडंबना।”

बैरागी बन म्है फिरा,

धरिया झूठा वेश जगत करै म्होरी चाकरी,

क्है म्हानें दरवेश क्है म्हानें दरवेश,

बड़ा ठिकाणा ठाया गाड़ी घोड़ा बांध,

जीव रा बंधन बाध्या कह जोशी कवि राम,

तपस्या कुण रे करणी मची संतों में होड़,

पाप री खाडो भरणी (मची संतों में होड़, भक्त री लछमी हरणी।)

डॉ राम कुमार जोशी जोशी प्रोल, सरदार पटेल मार्ग बाड़मेर [email protected]
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