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मेरा कमरा मेरा सलाहकार

A humorous black-and-white line-art caricature scene of a cluttered Indian bedroom where each object appears alive and speaking. The ceiling leaks with a smug smile, a noisy ceiling fan growls like a politician making speeches, a wall clock and calendar act like election officials lecturing about time, a thin empty wallet with folded hands gives financial advice, a proud mirror mocks the protagonist with brutal honesty, a cracked wall tries to preach responsibility while fungal patches peek through, an excited window points outward like a motivational speaker, and the floor, earthy and calm, gives grounded wisdom. At the center stands a confused, overwhelmed Indian man listening to all of them as if attending a chaotic parliament session inside his own room. Style: minimalist cartoon, exaggerated features, clean lines, satirical expressions.

मेरा कमरा मेरा सलाहकार

कमरे में दाख़िल हुआ ही था कि लगा जैसे देश का मौजूदा माहौल ही कमरे में उतर आया है। जिन हिस्सों को वर्षों से सिर्फ धूल पोंछकर सम्मान देता आया था, आज वे किसी राष्ट्रीय सम्मेलन के प्रतिभागी की तरह पंक्ति बद्ध मेरे जीवन की दिशा तय करने पर सलाह पर सलाह देने को आमादा थीं।

सबसे पहले छत ने आवाज़ दी, जितनी ऊँची सोच रखोगे, उतना ही ऊँचा उठोगे। यह वही छत थी, जो बरसात में हाउसिंग बोर्ड के इंजीनियर साहब और ठेकेदार की ईमानदारी साबित करते हुए रो रो पड़ती है। मैंने कहा, तुम्हारी खुद के पक्के होने का भरोसा ही नहीं, और तुम ऊँचा सोचने को कहती हो। छत हँस दी। बोली कि ऊँचा सोचने का मतलब, अपने भीतर की ऊँचाई को पहचानना होता है। मैं सोचने लगा कि आजकल सोशल मीडिया पर भी यही तो हो रहा है, जहाँ हर दूसरा व्यक्ति खुद को दार्शनिक घोषित कर रहा है , कुछ लाइक्स मिल जाएँ तो अपने को विवेकानंद का चचेरा चाचा समझने में गुरेज नहीं करता ।

सीलिंग पंखे ने गुर्राते हुये बिन मांगी दार्शनिक सलाह दी , बोला कि दिमाग ठंडा रखो। यह सलाह सुनकर मैने पूछा कि भाई, जब तुम्हारी बियरिंग घिस जाती है तब तुम खुद क्या करते हो? पंखा बोला, मैं भी जानता हूँ कि मैं शोर ज़्यादा करता हूँ, ठंडक कम देता हूँ, शायद मैं देश की राजनीति की तरह हूँ , शोर ही मेरा सबसे बड़ा योगदान है। फिर भी मेरी सलाह का मूल्य समझो, ठंडे दिमाग से ही सही निर्णय होते हैं।
मैंने समझते हुए कहा कि यही दिक्कत है, देश में निर्णय गरमा गर्म होते हैं जिनका फायदा ठंडे दिमाग वाले उठा ले जाते हैं।

दीवार पर लगी घड़ी और कैलेंडर ने एक साथ आवाज़ मिलाई, समय की कदर करो। ये दोनों ऐसे बोले जैसे चुनाव आयोग हों , और मैं एस आई आर के परीक्षण को पारकर बचा आख़िरी मतदाता। पर ये शायद ये जानते नहीं कि मैं वास्तव में समय की कदर करता हूँ, तभी तो हर मीटिंग में देर से पहुँचता हूँ, ताकि मेरा समय बचे क्योंकि , कितनी भी जल्दी पहुंचो मीटिंग तो देर से ही शुरू होती है। काश सब को समय का महत्व समझ आ जाए!
कैलेंडर बोला कि समय वही है जो बदलता है।
मैंने कहा कि बदलता तो सब कुछ है । कैलेंडर बोला कि समय बदलना आसान है, सोच बदलना कठिन। लगा जैसे किसी समाचार चैनल का प्राइम टाइम डिस्कशन ही मेरे कमरे में ट्रांसफर हो गया हो। बातें वजनदार थी , मैं कुछ कहता कि तब तक
टेबल पर पड़े पर्स ने बड़ी दीनता से कहा कि भविष्य के लिए बचाया करो। यह वही पर्स था जो इस हद तक हल्का है कि हवा भी भीतर जाने में संकोच करती है। मैंने कहा तुम्हारे रहते भविष्य के लिए रुपए बचाना वैसा ही है जैसे तुमसे उम्मीद करना कि तुम महीने के अंत तक नोट बचा पाओगे । पर्स बोला कि मेरी कमज़ोरी को मेरी सलाह पर हावी मत होने दो। भविष्य वही सुरक्षित रख पाता है जो वर्तमान में अपनी इच्छाओं को डाइट पर रखता है। बात समझ में आई, लेकिन यह भी सच है कि आजकल की महँगाई में , इच्छाएँ नहीं, जेबें ही डाइट कर रही हैं।

दूसरी दीवार पर लगा शीशा अपनी चमक के गुरूर में मगन बोला कि अपने आप को देखो। मैंने कहा देखने में क्या रखा है, तुम हर सुबह मेरा चेहरा ऐसे दिखाते हो जैसे कोई मोबाइल फ्रंट कैमरा गलती से बिना ब्यूटी मोड के चालू हो गया हो। शीशा बोला कि मैं कभी झूठ नहीं दिखाता। मैंने कहा कि समस्या यही है, आजकल सच्चाई कपड़े धोने वाले साबुन से भी ज़्यादा सफ़ेद होकर बाजार में आती है।

मैने शीशे को ही शिक्षा देनी चाही , मैं बोला तुम थोड़ा तो मीठा बोला करो । शीशा बोला सच्चाई अगर मीठी हो जाए तो समाज कड़वा हो जाता है। मैंने मन ही मन सोचा, यह शीशा भी शायद किसी साहित्य महोत्सव में शामिल होकर ज्ञान पाकर आया है।

दीवार ने करुण स्वर में कहा दूसरों का बोझ बाँटो। यह वही दीवार थी जिस पर पिछले महीने एक कील ठोंकी थी तो आधा प्लास्टर पपड़ी बनकर नीचे गिर गया था । बोझ बाँटने की क्षमता अब भी उसमें थी, पर खुद का वास्तविक कार्य संभालने की मजबूती नहीं । जैसा आज आम रिवाज है , सब दूसरों को सलाह देते हैं, खुद अपना वास्तविक कार्य भर नहीं करते ।
दीवार बोली कि समाज तभी टिकता है जब बोझ साझा होते हैं। मैंने कहा अभी तो समाज में बोझ बाँटने की बजाय ट्रोल करने और बधाई संदेश बाँटने की होड़ लगी दिखती है। दीवार ने अपनी सीलन सम्हालते हुए कहा कि बोझ बाँटना ही समाज को टिकाऊ बनाता है, वरना सब पर मेरी तरह फंगस लग जाती है ।

खिड़की उत्साह में बोली कि देखने का दायरा बढ़ाओ। वही खिड़की , जिसकी जाली से मोहल्ले की बिल्लियाँ , कुत्ते और कभी कभी बतियाती अल्हड़ युवतियां दर्शन देती हैं। मैंने कहा दायरा बढ़ाने के लिए सोच बदलनी पड़ेगी । खिड़की बोली कि खिड़कियाँ दीवार के पार दुनिया दिखा ही सकती हैं। दृश्य खुद बदल जाते हैं। सोच आपके अपने बस में होती है। मुझे लगा, यह खिड़की किसी मोटिवेशनल टॉक में बतौर स्पीकर बुलाए जाने लायक है।

अंत में फर्श ने अपनी भारी आवाज़ में सलाह दी , जमीन से जुड़े रहो। वह आगे बोला कि जो ऊपर उठते है उनका वास्तविक आधार जमीनी ही होता है। जो आधार भूल जाए वह ज्यादा टिकता नहीं। उसकी बात में वह सादगी थी जो आजकल नेताओं के भाषणों में गायब होती जा रही है।

इन सब सलाहों ने मिलकर मुझे समझा दिया कि जीवन की दिशा बाहर नहीं, भीतर के कमरे से तय होती है। बाहर का शोर, नारे, भाषण और वादों की आँधी भीतर आते-आते थम जाती है, पर कमरे की ये मूक आवाजें वास्तव में जीवन दर्शन हैं। मेरा कमरा मेरे लिए किसी संसद से कम नहीं, फर्क बस इतना है कि यहाँ सच्ची सलाह मिलती है विपक्ष का शोर कम होता है।

और हाँ, कमरे के ये हिस्से अपने-अपने दोषों के साथ सलाह दे रहे थे , ठीक वैसे ही जैसे समाज में हर वह व्यक्ति खुद सुधरना नहीं चाहता, मगर दुनिया को सुधारने की सलाह देना अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझता है। यही संभवतः समय का सबसे बड़ा व्यंग्य है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव

vivek ranjan
Vivek Ranjan Shreevastav
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