“आ गए मेरी शादी का तमाशा देखने!”
(नाना पाटेकर शैली में दूल्हे के मन की उथल-पुथल )
स्टेज पर दूल्हा बैठा है। बगल में उसकी नवनवेली दुल्हन बैठी है। सामने सजी-धजी भीड़ है। सीन बिल्कुल ऐसा समझो जैसे किसी क्रांति-वीर फिल्म का दृश्य हो — मंच पर नायक को ओपनली फाँसी दिए जाने का सीन।
दूल्हे को नज़र आता है कि रिसेप्शन में आए हुए सभी रिश्तेदार और परिचित तमाशा देखने आए हैं।
डर लगता है दूल्हे को… साला, रोज़ न जाने कितनी सोनम बेवफ़ा हो रही हैं। हनीमून (चाँद-शहद यात्रा)में अपने ‘चाँद’ को ही दिन में चाँद और रात को सूरज दिखा रही हैं।
नीचे दोस्त चिल्ला रहा है —
“कहाँ जा रहा है भाई अपनी जान के साथ हनीमून पर ? अब घोषणा तो कर दे!
क्या बतायुं इन्हें ! जान पर बन आयी है मेरे ! ‘अब तो जान के साथ हनीमून पर जाने से ही जान के लाले पड़ रहे हैं!”
सालो ! अभी रिसेप्शन रखने की क्या ज़रूरत थी? एक साल बाद रखते, कम से कम हनीमून के बाद जिंदा तो वापस आ जाने देते मुझे!
रहा नहीं गया दूल्हे से… फूट पड़ा वह —
“आ गए मेरी बर्बादी का तमाशा देखने!”
उधार का सूट, किराए की मुस्कान, दिल पर साँप लोटते तुम्हारे — क्यों?
अब ये लोग मुझे शादी की माला में लटका देंगे,
ज़बान में जबरदस्ती शादी का लड्डू ठूँस देंगे,
हवन की अग्नि में आँख से आँसू निकलेंगे,
फिर थोड़ी देर लटकता रहूँगा पत्नी के सपनों के फंदे में।
फिर मेरा छोटा भाई कहेगा —
“भैया, अब नीचे आ जाओ, फोटो सेशन पूरा हो गया।”
बारातियों की भीड़ नहीं, ये मेरी लाश का जुलूस लग रहा है।
सब खा-पीकर चले जाएँगे।
शादी में भी इनका दिमाग लिफ़ाफ़े की मोटाई और मिठाई के वज़न में ही अटका है।
ताऊजी बोलेंगे — “पकोड़ी में नमक थोड़ा कम था।”
कोई बोलेगा — “खाना ठीक था, बस रसम में तड़का कम था।”
फिर घर जाकर कहेंगे — “लड़की तो सुंदर है, लड़का कुछ दबा-दबा लग रहा था।”
और मैं?
मैं इस शादी के मंडप में हलाल किये जाने वाले बकरे की तरह बाँध दिया गया हूँ।
“दोष तुम्हारा नहीं, मेरा है।
मेरे ‘ना’ नहीं कह पाने की नामर्दानगी का नतीजा है ये , ये मजबूरी —
मुझे मालूम था, एक दिन मेरे सपनों का तमाशा देखेगी ये भीड़।”
कुछ मत कहो मुझसे।
कुछ नहीं चाहिए तुम्हारी सहानुभूति।
कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा ज़िंदगी में मेरे।
मुझे तो गुलामी करने की आदत है —
कभी नौकरी की, बॉस की ,अब पत्नी की।
हनीमून भी उसकी पसंद का, लोन भी उसकी सहमति से — सब कुछ उसका!
तुम्हें तो बस इंस्टा स्टोरी चाहिए न —
“कपल गोल्स!”
अरे, किस ‘गोल्स’ की बात कर रहे हो हरामख़ोरों!
नीला ड्रम भी गोल होता है!
फाँसी का फंदा भी!
कहीं गोलू पैदा करने से पहले ही इस दुनिया से गोल हो गया तो?
सुहागरात के दिन हल्दी वाला दूध भी हलाहल की तरह पीना पड़ेगा।
हे ऊपरवाले… इस परीक्षा की घड़ी से पास करा देना!
ऊपरवाले, तूने शादी बनाई ही क्यों?
इंसान ही बना देता, ये ‘पति’ क्यों बनाया?
सोचता होगा न तू —
“मैंने सबसे खूबसूरत चीज बनाई थी – इंसान,
नीचे देख जरा — सब बारातियों में तब्दील हो गए हैं ,
जो बच गए, वो पतियों में!”
सब रटे-रटाए रिश्ते हैं यहाँ — मामा, चाचा, मौसी, बुआ,
जिन्होंने मुझे बचपन में बिना कपड़ों के देखा था,
आज देख रहे हैं टाई में कस के,
और सोच रहे हैं — “कब तक टिकेगा ये सूट-बूट वाला नाटक?”
टाई का फंदा भी फाँसी के फंदे सा गला घोंट रहा है।
दोस्त तुम बजा रहे हो न ये नकली तालियाँ,
जरा देखो मुझे —
“जैसे एक पुराना लट्टू —
जिसकी डोरी कोई और खींच रहा है,
और घूम मैं रहा हूँ!”
हनीमून? अरे काहे का होनेमून स्सालो ..!
कहाँ जाऊँ?
“अभी तो मुझे ये भी नहीं पता कि जिसके साथ जाना है,
वो सच में मेरे साथ रहना चाहती है या मेरे बैंक बैलेंस के साथ?”
हनीमून पर जाना ही है या जाकर वापस भी आना है?
या ये वो रास्ते हैं जहाँ से लौटना मुश्किल है?
वो जो मेरे बगल में बैठी है —
कभी किसी और की कॉलर आईडी थी शायद…
अब मेरी पत्नी कहलाएगी —
पर क्या मैं उसका पति कहलाने लायक भी हूँ?
अभी तुम्ही से एक मेरे कानों को भड़का कर गया है –
“खुश रहो बेटा, ये ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी है!”
मुझे तो संदेह है इस पर ,कहीं मेरे कॉलेज की क्रश ‘खुशी’ का नाम तो नहीं बता दिया मेरी बीबी को !
देख रहा हूँ उसकी हंसी..उसका मेरी बीबी को तिरछी नजर से देखकर कुछ इशारा सा करना…यार मुझे सुपारी किलर सा लगता है वो ,कहीं हनिमून के पैकेज के साथ तो बुक नहीं किया बीबी ने..!
खाओ, हँसो, फोटो खिंचवाओ,
कल से तुम सब लोग यही कहेंगे —
‘साले की तो किस्मत खुल गई!’
किस्मत?
“जिसने किस्मत लिखी, वो भी ऊपर से देख कर मुस्करा रहा होगा —अरे पहले कन्फर्म तो कर लो, कही मेरी किस्मत की पॉवर ऑफ़ अटोर्नी बीबी को तो नहीं ट्रान्सफर कर दी !
मुझे डर है , ये जो माला मेरे गले में पडी है ,कल मेरे फोटो पर पड न जाए,ये दुआ करो तुम सब !’”
देखो मुझे ध्यान से
“रो रहा हूँ मैं —जी भर कर
आखिरकार हप्प्निनेस इस नोट एव्रीथिंग !”

✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक
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