दीपावली — अंधकार के गर्भ से ज्योति का जन्म

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 20, 2025 Important days 1

“दीपावली अमावस्या की निस्तब्धता से जन्मी वह ज्योति है जो केवल घर नहीं, हृदय की गुफाओं को आलोकित करती है। यह बाह्य उत्सव से अधिक आत्मदीपकत्व का अनुष्ठान है — अंधकार को मिटाने नहीं, उसमें दीप जलाने का साहस।”

नरक चतुर्दशी — रूप, ज्योति और आत्म-शुद्धि की यात्रा

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 18, 2025 Important days 0

“नरक चतुर्दशी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भीतर के नरक से मुक्ति का पर्व है। यह मन की अंधकारमय प्रवृत्तियों से प्रकाशमय चेतना की ओर यात्रा का क्षण है — जहाँ स्नान शरीर का नहीं, आत्मा का होता है; और दीप केवल मिट्टी का नहीं, मन का।”

जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0

धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके लिए शुभ है?” यह रचना बताती है कि असली उल्लू कौन है — वह जो लक्ष्मी जी के साथ उड़ता है या वह जो उनकी प्रतीक्षा में खाली वॉलेट थामे बैठा है। हास्य, कटाक्ष और सटीक सामाजिक टिप्पणी से भरा व्यंग्य।

धनतेरस नहीं, आरोग्य दीपोत्सव — धन्वंतरि के अमृत का असली अर्थ

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 18, 2025 Important days 0

धनतेरस को केवल खरीददारी का पर्व नहीं, बल्कि आरोग्य दीपोत्सव के रूप में मनाने का संदेश देता यह आलेख बताता है कि धन्वंतरि देव स्वास्थ्य, संयम और आत्मज्ञान के प्रतीक हैं। सोने से अधिक मूल्यवान है तन–मन का स्वास्थ्य, और असली दीप वह है जो भीतर जलता है — स्वच्छता, संयम और संतुलन के रूप में। यही है धनतेरस का शाश्वत अर्थ।

संघ-साहित्य की विरासत, विचार की निरंतरता और आधुनिक भारत में उसकी वैचारिक प्रासंगिकता

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 17, 2025 Book Review 0

संघ-साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सेवा की जीवंत साधना है। यह परंपरा के मौन और आधुनिकता के संवाद के बीच बहने वाला विचार-सरोवर है, जिसमें हर पन्ना अनुशासन की साँस लेता है। यह नारा नहीं देता, विचार बोता है; विरोध को अस्वीकार नहीं करता, उसे आत्मसात करता है। यही साहित्य संघ की वह आत्मा है, जो शब्दों से कर्म तक, और कर्म से विचार तक अपना चक्र पूरा करती है — निरंतर, भारतीय और जीवंत।

संघ-साहित्य: शब्दों में अनुशासन, विचारों में संवाद

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 17, 2025 Culture 0

संघ-साहित्य केवल प्रचार का उपकरण नहीं, बल्कि विचार की निरंतरता का प्रमाण है। यह शाखाओं से निकलकर पुस्तकों, पत्रिकाओं और डिजिटल संवादों में प्रवाहित होती एक चेतना है, जो अनुशासन के साथ आत्ममंथन भी सिखाती है। इन पन्नों में न केवल विचारों की गर्माहट है, बल्कि वह मौन भी है जो संस्कार बनकर पीढ़ियों में उतरता है। यह साहित्य नारे नहीं, आत्मसंवाद रचता है — और यही इसकी स्थायी प्रासंगिकता है।

नोबेल, भारतीय लेखक और वैश्विक संवाद की सीमाएँ

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 16, 2025 शोध लेख 0

“भारतीय साहित्य में गहराई की कमी नहीं, पर संवाद और अनुवाद की दीवार उसे वैश्विक कानों तक पहुँचने नहीं देती। नोबेल से बड़ा है वह शब्द जो सीमाएँ लांघ जाए।”

काम वाली बाई — एक व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 16, 2025 व्यंग रचनाएं 0

पहले आदमी अपनी कुंडली देखकर तय करता था कि आज दिन कैसा रहेगा; अब बस यही देखता है — बाई आ रही है या नहीं! अगर नहीं आ रही तो समझ लीजिए — आज का दिन शुभ नहीं है। घर में बर्तन, झाड़ू और रिश्ते — सब एक साथ बजते हैं। गृहस्थी के इस धर्मयुद्ध में ‘काम वाली बाई’ ही असली दुर्गा है — जो झाड़ू को त्रिशूल और पोछे को शंख बनाकर कलह रूपी राक्षस का संहार करती है।”

पालतू कुत्ता — इंसान का आख़िरी विकास चरण

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 16, 2025 व्यंग रचनाएं 0

अब मनुष्य “सामाजिक प्राणी” से “पालतू प्राणी” में विकसित हो चुका है। पट्टा अब कुत्ते के गले में नहीं, बल्कि उसकी ईएमआई और सोशल मीडिया की आदतों में है। बच्चों से बचत कर, जिम्मेदारियों से बचकर जब जीवन में भावनात्मक खालीपन आता है — तो इंसान “टॉमी” पाल लेता है और धीरे-धीरे खुद ही कुत्तानुकरण काल में प्रवेश कर जाता है।

भारतीय दर्शनशास्त्र: जब प्रश्न व्यवस्था माँगते हैं — आत्मबोध से विश्वबोध तक

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 15, 2025 Darshan Shastra Philosophy 0

भारतीय दर्शन उस अनूठी यात्रा का नाम है जो व्यक्ति के “मैं” से शुरू होकर “हम” तक पहुँचती है। न्याय बुद्धि को कसौटी देता है, वैशेषिक जगत की रचना को व्यवस्थित करता है, सांख्य भीतर के साक्षी को पहचानता है, योग उस साक्षी में ठहरना सिखाता है, मीमांसा कर्म की पवित्रता को जोड़ती है, और वेदांत बताता है कि यह सब एक ही ब्रह्म की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं। यह ज्ञान का नहीं, अनुभव का मार्ग है — जहाँ आत्मबोध विश्वबोध में बदल जाता है।