‘गिरने में क्या हर्ज है’ डाक्टर मुकेश ‘असीमित’ जी का पहला व्यंग्य संग्रह है । पहले संग्रह के हिसाब से देखा जाए तो डॉक्टर साब व्यंग्य में नए हैं पर इनकी रचनाएं काफी परिपक्व हैं । भाषा की बात हो या शिल्प की या विषय की डॉक्टर साब मंझे हुए व्यंग्यकार ही महसूस होंगें । इनके नाम की तरह इनके पास विषय भी असीमित हैं
व्यंग्य के साथ हास्य का तड़का इनकी रचनाओं को पठनीय बनाता ही है इनके पास विषयों का भंडार भी है । बड़े से बड़े दर्द को इतनी सहजता से सामने रख देते हैं कि पाठक ना तो खुद को पढ़ने से रोक पाएगा ना रचना को पढ़ने के बाद सोचने से रोक पाएगा । व्यंग्यकार के लिए दृष्टि ही मायने रखती है कई जबरदस्ती के व्यंग्यकारों के मुहँ से सुना है ‘विषय समझ नहीं आते किस पर लिखें ‘जबकि यदि सच में व्यंग्यकार हैं तो विषय हर तरफ बिखरे मिलेंगे बस व्यंग्य की नजर होनी चाहिए । उसके बाद बात आती है विषय की गहराई तक उतरने की व्यंग्यकार जितने गहरे में उतरने की क्षमता रखेगा विषय के उतने ही पहलू उजागर कर पाएगा । मुकेश जी के पास ये दोनों ही चीजें हैं वे ना सिर्फ आसपास बिखरे विषयों को उठाते हैं बल्कि उन्हें हर पहलू से पूरा निचोड़ते भी हैं । इस पुस्तक की शीर्षक रचना ‘गिरने में क्या हर्ज है” भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट करता व्यंग्य है ।
अब इनका एक और व्यंग्य देखिए ‘हवाई यात्रा का भारतीयकरण’ इस व्यंग्य को पढ़ते हुए आपको आज के एयरपोर्ट के पूरे हालात आँखों के सामने घूमते नजर आएंगे जिन्हें पढ़ते हुए आप को पहले तो मजा आएगा फिर दर्द होगा ‘यार क्या हालत कर दी है एयरपोर्ट की’ इसी तरह एक रचना है ‘करेले का जूस’ इस रचना को आप पढ़ते हुए मुस्कुराएंगे लेकिन साठ ही एक डायबिटीज के मरीज का दर्द भी महसूस करेंगे और एक भारतीय पत्नी किस तरह अपने पति के स्वास्थ्य की चिंता में विलीन होकर उनकी देखभाल करती है इसको भी महसूस कर पाएंगे । मुकेश जी की नजर से लगता है कुछ छूटता ही नहीं दोस्त ,पड़ौसी ,नेता ,शादी ,बचपन, देश ,समाज हर विषय पर रचना इस संग्रह में मौजूद है । मुकेश जी कि भाषा की बात करें तो काफी सहज है सरल है और पठनीय है । हास्य और व्यंग्य दोनों को अच्छे तरीके से साधना आता है और व्यंग्य कार के लिए जो सबसे जरूरी है सपाट बयानी से बचना उसका भी विशेष ध्यान रखा गया है । कुल मिलकर ये संग्रह पैसा बसूल है जिसे खरीदने के बाद आपको अफसोस नहीं होगा बल्कि पढ़कर पूरा आनंद मिलने की गारंटी है । मुकेश जी को शुभकामना और साधुवाद
कुछ महिलायें कलछी तोड़ भोजन बनाती हैं डॉक्टर साब ने हड्डी जोड़ व्यंग्य लिखें हैं ।
किताब पर ईमानदार विचार -अर्चना चतुर्वेदी
प्रकाशक -भावना प्रकाशन
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