गरबा का थोथा गर्व-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 1, 2025 व्यंग रचनाएं 0

नवरात्रि आते ही शहर गरबा-डांडिया के बुखार में तपने लगता है। भक्ति पीछे, डीजे आगे—फ़ैशन शो, सेल्फ़ी, और सार्वजनिक रोमांस! माँ दुर्गा कोने में दो माला, दो अगरबत्ती के साथ कैद; बाकी रात भर ‘चिकनी चमेली’ पर ठुमके। सोशल मीडिया पर दिव्यता, ज़मीन पर कीचड़, ट्रैफ़िक, और बेसमेंट में डूबते बच्चे। गरबा सबको कुछ देता है—नेताओं को वोट, संस्थाओं को चंदा, और समाज को चमक-धमक की चकाचौंध।

दिल का मामला है-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 1, 2025 व्यंग रचनाएं 0

"दिल का मामला है जी – एक दिन में कहाँ सिमट पाता है! वैलेंटाइन डे ने तो पूरे सात दिन का सरकारी-सा कार्यक्रम बना दिया है—चॉकलेट डे, हग डे, प्रपोज डे…पर दिल फेंक दिवस की तो भारी कमी है। असली शुरुआत तो दिल फेंकने से ही होती है। काश ओलंपिक में भी ‘दिल फेंक’ प्रतियोगिता होती, तो हम भारतीय गोल्ड की गारंटी से लौटते!"

       रावण का दशहरा-व्यंग्य कथा

Prahalad Shrimali Sep 29, 2025 व्यंग रचनाएं 0

दशहरे की शाम थाने में बैठे नशे में धुत्त दारोगा ने चौकीदार से पूछा — "गांव में क्या चल रहा है?" चौकीदार बोला — "हुजूर, रावण जल रहा है!" दारोगा उखड़ पड़ा — "आत्महत्या रोकनी चाहिए! जात बताओ रावण की!" चौकीदार ने तंज कसा — "हुजूर, रावण तो हर जात में है, नेता से लेकर पुलिस तक!" आईने में झाँकते ही दारोगा को खुद ही रावण नजर आया।

कन्याओं का स्लॉट सिस्टम: अब देवी भी अपॉइंटमेंट से आती हैं!

डॉ मुकेश 'असीमित' Sep 29, 2025 व्यंग रचनाएं 0

नवरात्रों का ‘कन्या पूजन’ अब लॉजिस्टिक ऑडिट बन चुका है। मोहल्ले की आंटियां कन्या खोज में परेशान, तो युवाओं ने लॉन्च किया kanjakkart.com — जहाँ स्लॉट बुकिंग, पैर धोने की सहमति और दक्षिणा का ऑनलाइन भुगतान सब कुछ तय है। कांताबेन जी कहती हैं, “अब बिना बुकिंग देवी भी वॉक-इन नहीं होतीं।” कन्याओं की यूनियन तक बन गई है — न्यूनतम दक्षिणा ₹100 और गिफ्ट में डेरी मिल्क का बड़ा पैक!

चलो बुलावा आया है-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Sep 25, 2025 व्यंग रचनाएं 0

"चलो बुलावा आया है… दिल्ली ने बुलाया है। नेता, लेखक, कलाकार—सब दिल्ली की ओर ताक रहे हैं। दिल्ली एक वॉशिंग मशीन है, जहां दाग तक धुल जाते हैं। 'दिल्ली-रिटर्न' टैग लगते ही भाव बढ़ जाता है, पूँछ लग जाती है, मक्खियाँ तक डर जाती हैं। बस किसी तरह दिल्ली पहुँचना है—चाहे बुलावा आए या न आए।"

गली में आज चाँद निकला-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Sep 25, 2025 व्यंग रचनाएं 0

"गली में आज चाँद निकला... पर यह कोई आसमान वाला चाँद नहीं, बल्कि टिकट की दौड़ में फँसा हुआ नेता चांदमल है। चाँदनी बिखेरने का दावा करता है, पर अपने ही अंधेरे में डूबा हुआ है। आलाकमान की चौखट पर सब चाँद कतार में खड़े हैं—कौन चमकेगा, कौन डूबेगा, बस यही फिक्र है। जनता सखी अब भी झरोखे से झांक रही है, कि कब उसके हिस्से का चाँद दीदार देगा। लेकिन सखी, याद रखो—ये सब चाँद चार दिन की चाँदनी वाले हैं।"

बुरा जो देखन मैं चला-व्यंग्य रचना

Vivek Ranjan Shreevastav Sep 24, 2025 व्यंग रचनाएं 0

आज का समाज मुखौटों के महाकुंभ में उलझा है—जहाँ असली चेहरा धूल खाते आईने में छिपा रह गया और नकली मुस्कान वाले मुखौटे बिकाऊ वस्तु बन गए। 'सच्चिदानंद जी की आईने की दुकान' सूनी है क्योंकि लोग सच्चाई से डरते हैं। भीड़ 'सेल्फी-रेडी स्माइल' और 'सोशल मीडिया संजीदगी' खरीदकर खुश है। असल चेहरा देखने की हिम्मत अब दुर्लभ साहस है।

दिवाली के बाद-हास्य व्यंग्ग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Sep 23, 2025 व्यंग रचनाएं 0

दिवाली के बाद—यह चार शब्द किसी भी अधूरे काम, टली हुई ज़िम्मेदारी और बचने की कला का ब्रह्मास्त्र हैं। शादी से लेकर कर्ज़ चुकाने तक, सुबह की वॉक से लेकर किताब छपवाने तक, सबके लिए यही बहाना! दिवाली से पहले सफाई-रंगाई के पटाखे फूटते हैं और दिवाली के बाद उधारी-बिल-किश्त के बम। सच कहें तो असली फुलझड़ी बहानों की ही होती है, जो हमेशा चमकती रहती है।

हिंदी का ब्यूटी पार्लर

डॉ मुकेश 'असीमित' Sep 21, 2025 व्यंग रचनाएं 0

हिंदी भाषा को सरकारी दफ़्तरों और आयोगों में किस तरह से बोझिल और जटिल बनाया गया है, जिससे वह अपनी सहजता और सुंदरता खो रही है।

WhatsApp के ग्यानी और बहस का जाल

डॉ मुकेश 'असीमित' Sep 21, 2025 व्यंग रचनाएं 0

WhatsApp के ग्यानी और बहस का जाल कभी-कभी लगता है कि किसी “व्हाट्सऐप फॉरवर्डीये ज्ञानी” से बहस करना ऐसा है जैसे पानी में रेत की मुठ्ठी बांधना—जितना कसोगे, उतना हाथ खाली। यह बहस आपके बौद्धिक स्तर को ऊपर नहीं उठाती; उल्टा उसे न्यूनतम तल तक खींच ले जाती है। ऐसे ज्ञानी प्रायः हर विषय में […]