मरने की फुर्सत नहीं -व्यंग रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' May 13, 2024 Blogs 0

इस लेख में, एक निजी चिकित्सक का व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है जो अपने पेशेवर जीवन में उतने सफल नहीं हैं जितना समाज से उम्मीद की जाती है। वह अपने डेस्कटॉप पर बैठकर सोशल मीडिया चलाने, लेखन करने और डिजिटल कला में अपनी रचनात्मकता को प्रदर्शित करने जैसे कार्यों में व्यस्त रहते हैं, जबकि उनकी पत्नी उन्हें हॉस्पिटल पर अधिक ध्यान देने के लिए ताने मारती हैं। उनकी जीवनशैली और कार्यशैली से उनके स्टाफ को भी अपने शौक पूरे करने का समय मिल जाता है, जिससे हॉस्पिटल में उनकी ड्यूटी एक पार्ट टाइम जॉब की तरह बन जाती है। डॉक्टर साहब अपने कार्यकाल के दौरान खाली समय में लोगों के तंजों का सामना करते हैं और समाज उन्हें एक निष्क्रिय व्यक्ति के रूप में देखता है | यह आलेख समाज में डॉक्टरों के प्रति रूढ़िवादी उम्मीदों और वास्तविकता के बीच के अंतर को दर्शाता है।

मंत्री जी  की चुनावी रैली –व्यंग रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' May 11, 2024 Blogs 0

चुनावी माहौल अब अपने पूरे शबाब पर है। चारों ओर बस एक ही चर्चा की गूंज है - चुनाव! जहां देखो, वहां गरमा-गरम बहसें और चुनावी चर्चाएँ जारी हैं। गर्मी के तीखे तेवर भी इस उत्साह को कम नहीं कर पा रहे हैं। हर जगह, चाहे चाय के ठेले हों या मीटिंग रूम, हर किसी के होंठों पर चुनावी चर्चाओं के चटखारे हैं। आज मेरा शहर भी इसी उत्साह के सागर में डूबा हुआ है। मेरा शहर उन कुछ भाग्यशाली शहरों में से एक है जिसे भले ही शहरी मानदंडों पर खरा न उतरा हो, फिर भी उसे शहर कहा जाता है। नाम बड़े और दर्शन छोटे की यह कहावत यहाँ नहीं चलती, क्योंकि नाम के साथ अब काम भी बड़ा होना निश्चित है। आज शहर के लोग दुल्हन की तरह सजे इस शहर में खासे उत्साहित हैं। हर कोने पर बड़े बड़े बैनर, जिनमें राजनेताओं के आदमकद कटआउट और उनकी कंटीली मुस्कानें देखी जा सकती हैं। बड़े मंत्री जी, जो कि सत्तारूढ़ पार्टी से हैं, आज अपने चुनाव प्रचार के लिए यहाँ आने वाले हैं। हमारे सांसद तो पांच साल बाद ही दर्शन देते हैं, लगता है आज उनकी दर्शन की रस्म भी होगी।

कुंवारा लड़का,दुखी बाप -व्यंग रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' May 9, 2024 Blogs 0

ओपीडी में एक सनकी मुठभेड़ में, एक अघोषित आगंतुक, निश्चित रूप से एक परिचित चेहरा, दिनचर्या को बाधित करता है। बिना किसी अपॉइंटमेंट या पंजीकरण के, उनका आगमन ही अप्रत्याशित परिचितता के बारे में बहुत कुछ कहता है। उनका नाटकीय प्रवेश और अनोखा अभिवादन, "पहचानें कौन?" सुप्त स्मृतियों को तुरंत जागृत करें। अत्यधिक बोझ से दबे क्लिनिक के दरवाजों और बेचैनी से इंतजार कर रहे मरीजों की अव्यवस्था के बीच, आगंतुक का अतिरंजित भावनात्मक प्रदर्शन, पुरानी यादों और अनकही चिंताओं से भरा हुआ, सामने आता है। यह एक विनोदी लेकिन मार्मिक अनुस्मारक है कि कैसे व्यक्तिगत संबंध अप्रत्याशित रूप से व्यावसायिक स्थानों में घुसपैठ कर सकते हैं, अपने साथ मानवीय रिश्तों और अनकहे सामाजिक दायित्वों की जटिलताओं को ला सकते हैं।

हास्य-व्यंग्य: इक्कीसवीं सदी में सामाजिक दर्पण

डॉ मुकेश 'असीमित' May 8, 2024 Blogs 0

इक्कीसवीं सदी में, जहां विश्व नित नवीन परिवर्तनों की गोद में खेल रहा है, वहीं हास्य-व्यंग्य की विधा ने भी अपने आवरण को नवीनतम रूप प्रदान किया है। यह विधा न केवल समाज के विसंगतियों का दर्पण है बल्कि यह जनमानस की अभिव्यक्तियों और हसरतों का थर्मामीटर भी है। हमारे समय के लोकतांत्रिक पाखंड और […]

मैं और मेरा आलसीपन –अक्सर ये बातें करते हैं

डॉ मुकेश 'असीमित' May 8, 2024 व्यंग रचनाएं 0

"वास्तव में, आलस्य और मेरे मध्य ऐसा अटूट बंधन है, जैसे कि आत्मा और शरीर का होता है, जो केवल महाप्रलय में ही छूट पाएगा, ऐसा मेरी आशा है।"

मै और मेरा मधुमेह रोग -मेरे संस्मरणों से

डॉ मुकेश 'असीमित' May 8, 2024 Blogs 0

प्रस्तुर है एक व्यंगात्मक रचना , शायद मेरी तरह आप में से कई भी इस लाईलाज बीमारे से ग्रसित हों, में मेरी दिनचर्या में, जो अपनी मधुमेह की बीमारी के चलते पारिवारिक और सामाजिक नज़रों के बीच एक विचित्र स्थिति में फंसा हुआ हूँ । प्रातःकाल की सैर से लौटते हुए मुझे अपनी पत्नी द्वारा मेथी के फांक थमाई जाती , एक गहन चिंता की लकीरें मेरे मुख मंडल पर । इस रचना में मैंने छुआ है उन अनगिनत घरेलू नुस्खों का मर्म, जो अक्सर देसी दवाइयों के चक्कर में विज्ञान से अधिक कल्पनाशील होते हैं। इसी भावभूमि पर खड़े होकर, हम आपको आमंत्रित करते हैं कि जुड़ें हमारे साथ 'बात अपने देश की' ब्लॉग पर, जहाँ हम ऐसी ही अन्य रचनाओं के माध्यम से देश-दुनिया की विडंबनाओं पर चर्चा करते हैं। यहाँ हर व्यंग्य न सिर्फ आपको गुदगुदाएगा, बल्कि आपको थोड़ा सोचने पर भी मजबूर करेगा। तो आइए, करें कुछ बातें अपने देश की, अपने तरीके से।

कचरे का अधकचरा ज्ञान –व्यंग रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Apr 30, 2024 Blogs 0

यह व्यंग्य रचना शहरी कचरा समस्या और समाज के उदासीन दृष्टिकोण की गहराई में उतरती है। शहरों में बढ़ती कचरा समस्या न केवल पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म दे रही है बल्कि यह शहरी जीवन की दिनचर्या का एक अनचाहा हिस्सा भी बन चुकी है। इस रचना में हम एक आम सुबह की शुरुआत देखते हैं, जहां लेखक का सामना सड़क के कोने पर एक कचरे के ढेर से होता है, जो अपनी दुर्गंध से उनका 'स्वागत' करता है। सामाजिक उदासीनता का चित्रण इस बात से होता है कि स्थानीय निवासी, जिन्हें कचरा प्रबंधन की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, फिर भी अनदेखी करते हुए नालियों और सड़कों पर कचरा फेंकने में लगे रहते हैं। विडंबना यह है कि 'कचरा नहीं डालें' के साइन बोर्ड के ठीक नीचे ही सबसे ज्यादा कचरा जमा होता है। लेखक ने इस रचना में शहरी समाज के कचरा प्रबंधन के प्रति लापरवाही और स्वच्छता अभियान की विफलता को बड़ी ही व्यंग्यात्मकता से पेश किया है, जो हमें यह आभास दिलाती है कि कैसे समाज का हर वर्ग इस समस्या का समाधान करने के बजाय उसे और अधिक जटिल बना रहा है।

चुगली घुट्टी –आओ चुगली करें – व्यंग रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Apr 29, 2024 Blogs 0

चुगली घुट्टी –आओ चुगली करें – व्यंग रचना आज हम बात करेंगे एक बहुत ही दिलचस्प शब्द जिसे सुनकर आपका दिल गुदगुदा जाएगा – “चुगली”। ये एक ऐसा शब्द है जो चिरकालीन भारतीय परम्परा में ग्राहणियों के लिए सबसे बड़ा स्ट्रेस बस्टर और पूजनीया चमचों के लिए सबसे बड़ा संसाधन है। यूं तो हमारे जीवन […]

ग्रेस एनाटोमी बनाम चौरसिया महाकाव्य- एस एम् एस मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष के संस्मरण

डॉ मुकेश 'असीमित' Mar 9, 2024 Blogs 0

SMS मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष की स्मृतियाँ ,हम ग्रामीण परिवेश से आए हिंदी भाषियों के लिए कुछ ज्यादा खट्टे-मीठे अनुभव लिए होती हैं। एक ऐसे एनाटमी के पूजनीय सर, जिनका नाम मैं निजता के हनन के कारण उल्लेख तो नहीं करूंगा, लेकिन उनका खौफ और आतंक जिस प्रकार से हम हिंदी भाषियों के मन […]

मेरे बाप की सड़क है -एक व्यंग रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Mar 8, 2024 हिंदी लेख 0

मेरे अस्पताल में एक न्यूरोलॉजिस्ट के मासिक परामर्श के लिए अनुबंध करने हेतु दूरभाष पर बातचीत हो रही थी था। फोन पर बातचीत के दौरान, उन्होंने बताया कि हमारा शहर कितना सुंदर है, सब कुछ कितना सही है, फिर कुछ झिझकते हुए बोला -लेकिन वहां की सड़कें इतनी खराब क्यों हैं। सड़कों पर चलने वाले […]