Babita Kumawat
Jul 9, 2025
Poems
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"ये कविता मातृभूमि की रक्षा में तैनात भारत माँ के लाड़ले सैनिकों को समर्पित है। जो अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे की शान को ऊँचा रखते हैं। इनका स्वाभिमान, जज़्बा और शहादत भारत के गौरव के प्रतीक हैं। राष्ट्र सदा इनकी ऋणी रहेगा।"
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jul 7, 2025
Hindi poems
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सामाजिक विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य करती ये कविता ‘वाह भाई वाह’ हमें उन विसंगतियों का एहसास कराती है जहाँ ज़िंदगी त्रासदी बन चुकी है, फिर भी आमजन तमाशबीन बना बैठा है। गड्ढों, महंगाई, रिश्तों की दूरी और शिक्षा की मार के बीच भी मुस्कुराता देश – ‘वाह भाई वाह’!
Vidya Dubey
Jul 7, 2025
Hindi poems
1
विद्या पोखरियाल की यह कविता "पत्थर हूं मैं" जीवन की विसंगतियों को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है। यह पत्थर कभी पूजित है, कभी ठुकराया गया। मंदिर, नदी, पहाड़ और रास्ते — हर स्थल पर उसका एक अलग अस्तित्व है। यह साधारण होते हुए भी असाधारण है।
Vidya Dubey
Jul 5, 2025
Hindi poems
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यह कविता स्त्री के संघर्ष, सहनशीलता और उसकी शक्तियों का गान है। माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, देवी — हर भूमिका में वह समाज की नींव है। वह कमजोर नहीं, संसार की रचयिता है। उसकी जात सिर्फ 'औरत' नहीं, एक सम्पूर्ण सृष्टि है। यही उसका आत्मघोष है: हां मैं एक औरत हूं।
Vidya Dubey
Jul 3, 2025
Poems
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विद्या पोखरियाल की यह कविता एक माँ की गहन भावनाओं की अभिव्यक्ति है, जो अपने बच्चे के नाम से अपना अस्तित्व गढ़ना चाहती है। वह उसका पथप्रदर्शक बनना चाहती है, उसका संसार संवारना चाहती है और हर कठिनाई में साथ निभाने को तत्पर है — पूर्ण समर्पण की अद्वितीय अभिव्यक्ति।
Uttam Kumar
Jul 3, 2025
Poems
2
इस कविता में सावन का रसभीना चित्र है—जहाँ झूले हैं, कजरी है, और बदरा की फुहारें हैं, वहीं किसी के पिया की दूरी आँखों में तड़प बनकर उतरती है। यह रचना सावन की सौंदर्याभिव्यक्ति और विरह के भाव का सुंदर संगम है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 30, 2025
Poems
1
यह कविता एक बच्चे की अंतरात्मा की पुकार है—जो केवल अपने लिए जीना चाहता है, किसी की महत्वाकांक्षा की ट्रॉफी बनकर नहीं। वह अपने सपनों को जीना चाहता है, न कि दूसरों के अधूरे सपनों को ढोना। उसमें संवेदना है, विद्रोह है और मानवता की गूंज है।
Dr Mahima Shreevasav
Jun 30, 2025
Poems
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देशभक्ति केवल नारों या गीतों में नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के उन छोटे-छोटे कर्मों में छिपी होती है जो सादगी से, ईमानदारी से, कर्तव्य की भावना से जन्म लेते हैं। कविता में देशभक्ति की परिभाषा शोर में नहीं, बल्कि खामोश अच्छाइयों में मिलती है।
Sanjaya Jain
Jun 29, 2025
Poems
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यह आत्मपरिचयात्मक कविता एक लेखक के अंतरमन की झलक देती है — जहाँ लेखनी के गुण-दोष, धनहीनता में भी मन की समृद्धि, और समाज को जाग्रत करने की शक्ति निहित है। यह भावनाओं, चेतना और सभ्यता को एक नए रूप में ढालने का आह्वान करती है।
Uttam Kumar
Jun 29, 2025
Poems
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द्रोपदी की पुकार, कृष्ण की कृपा और महारथियों की चुप्पी — यह कविता महाभारत की उस घड़ी का चित्रण है जहाँ न्याय मौन हो गया, और एक स्त्री की पीड़ा ने देवता को पुकारा। चीरहरण नहीं रुका, पर चीर बढ़ता गया — और मौन महारथियों की हार दिखी।