चाँद हो या..कविता रचना

शीर्षक : *चाँद हो या…*

विधा : कविता

आज न चाँद निकला है।

न चाँदनी ही खिली है।

पर सितारों की महफिल।

तो फिर भी जमी है।।

अंधेरे और धुंधले में

एक चाँद चमक रहा है।

जिस पर ही निगाहें

सब की टिकी हुई है।

जिससे वो चाँद भी

शर्माए जा रहा है।

और अपने चेहरे को

दुप्पटे से छुपा रहा है।।

चमकते आकाश में सितारे

तरंगे बिखेर रहे है।

दिलों की धड़कनों को

बढ़ाये जो जा रहे है।

पर किसी से तो वो

दिलको लगा रहे है।

शान ये महफिल में

रंग वो जमा रहे है।।

चमक भरी दुनिया में

दिल को बहला रहे हो।

सुने पढ़े घर में भी

दीप जला रहे हो।

उदासी और निराशा को

अदाओं से निखर रहे हो।

और अपने रंग रूप से

शान-ए-महफिल जमा रहे हो।।

जय जिनेंद्र

संजय जैन “बीना” मुंबई

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Sanjaya Jain

शिक्षा : पी.जी एवम एम बी.ए. साहित्य उपलब्धियाँ:- नव भारत…

शिक्षा : पी.जी एवम एम बी.ए. साहित्य उपलब्धियाँ:- नव भारत टाइम्स में ब्लाक लिखता हूँ "हालचाल" और भी पत्र पत्रिकाओं और लोक कल पेपर्स में मेरी कविताएँ गीत और लेख प्रकाशित होते रहते है। संस्थाओ द्वारा अवार्ड :- करीब 200 अब तक मिल चुके है। जो की अनेक मंचों पर समाजिक संस्थाओं और क्लाब आदि द्वारा प्रदान किये गये है। व्यवसाय :- मुंबई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में प्रबंधक के पद पर कार्यरत हूँ। विशेषताएँ:- मंचों का संचालन करना, काव्य पाठ करना, आर्केस्ट्रा में गाना। ये सब मेरे शौक है। कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हुआ हूँ।

Comments ( 3)

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डॉ मुकेश 'असीमित'

5 months ago

abhaar aapka

Vidya Dubey

5 months ago

शानदार रचना 👌

डॉ मुकेश 'असीमित'

5 months ago

बहुत शानदार कविता