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चुगली घुट्टी –आओ चुगली करें – व्यंग रचना

chuglee ghutee

चुगली घुट्टी –आओ चुगली करें – व्यंग रचना

आज हम बात करेंगे एक बहुत ही दिलचस्प शब्द जिसे सुनकर आपका दिल गुदगुदा जाएगा – “चुगली”। ये एक ऐसा शब्द है जो चिरकालीन भारतीय परम्परा में ग्राहणियों के लिए सबसे बड़ा स्ट्रेस बस्टर और पूजनीया चमचों के लिए सबसे बड़ा संसाधन है। यूं तो हमारे जीवन में चुगली इसी तरह व्याप्त है जैसे दूधवाले के दूध में पानी, सरकारी महकमे में रिश्वत, और रिश्तों में मिलावट। बचपन में ही इस चुगली की घुट्टी, मुगली घुट्टी के साथ पिला दी जाती है। पिलायी तो दोनों जेंडर कोजाती है , लेकिन चुंकि महिलाएं जिन्हें पुरुष प्रधान समाज में पहले पीहर और बाद में ससुराल में हमेशा उनकी आवाज़ दबाई जाती है, जिससे ये दबी हुई बातों की अपच का शिकार ये महिलाएँ , अब इस अपच का एक स्थाई समाधान ढूँढने में लगी , ये तो भला हो इस चुगली का जिससे महिलाएं काफी हद तक इस अपच से निजात पा लेती है। इधर पुरुष चुगली ज्यादा नहीं कर पाता, ये विशेषज्ञिकार कुछ बॉस के कर्मचारियों, नेता के चमचे ,सेठजी के मुनीम तक ही सीमित रह गया है| घर में बीबी की चुग्लास्त्र के आगे पति की नहीं चलती, इसलिए चुगली तो दूर वह चूं भी नहीं कर पाता।

आज वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हार्ट अटैक कम है , उसका कारण यही है कि महिलाएं चुगली रूपी गोली से अपने स्ट्रेस, तनाव और कुंठा की बीमारी को काफी हद तक ठीक कर लेती है। चुगली के लिए टॉपिक की भरमार है , जहां सास बहु ,दौरानी जेठानी,ननद भोजाई के आपसी रिश्तों में चुगली का परस्पर आदान प्रदान इन रिश्तों की जीवंतता बनाये रखता है, वही पड़ोस की महिलाओं की तो बात ही क्या,इसके लिए विशेष सत्र चलते है जो अमूमन मंदिर में ,भंडारे में, कथा के पंडाल में, चटखारे लेकर कॉलोनी की सभी महिलाओं को लपेटे में ले ही लिया जाता है। इसी चुगली की बदौलत सुबह-सुबह जल्दी जग कर महिलाएं दूध लेने जाती हैं, ये सुबह की हवा खोरी के साथ साथ चुगल खोरी का अनूठा प्रयास है ,वहां चार महिलाएं मिल जाती हैं और चुगली का अनवरत वार्तालाप समय को चुटकियों में व्यतीत कर देता है | मंदिरों में, पूजा स्थलों में सत्संग में, रैलियों में धरना प्रदर्शन हर जगह चुगली नामक अखंड प्रकरण चलता रहता है। वैसे चुगली एक प्रकार से समाज में लोगों के लड़ाई-झगड़े को भी कम करते हैं, वर्ना कभी कभार सर फुटबबल की नौबत आ जाए| अब माना की आपकेपड़ोस के कुत्ते ने आपके बच्चे को काट खाया, आप चाहती तो है कि पड़ोसी का जाकर सर फोड़ दे ,लेकिन आप मन मसोसकर रहा गयी है ,लेकिन अब आप क्या करेंगी, आपके पास दूसरा आप्शन है, आपकी दूसरी पड़ोसी से, कुत्ते रखने वाले पड़ोस की बेटी, बहू खानदान के करतूतों के गड़े मुर्दे उखाडती हुई,कुछ नए किस्से अपनी कल्पनायों से पिरोते हुए चुगली करके किसी प्रकार से अपना गुस्से से तापायमान बदन ठंडा कर लेंगी , अब सांप भी मर गया और लाठी भी न टूटी।

कोलोनी में कुछ चुगल स्पेशलिस्ट ओते है, मैंने जानबूझकर उन्हें चुगलखोर नहीं कहा क्योंकि मुझे भी चुगली की चुगली करने का इल्जाम सरेआम लग जाएगा, वैसे भी हरामखोर, सूदखोर की तरह चुगल खोर शब्द किसी की इज्जत पर थोड़ा प्रत्यक्ष प्रहार लगता है । तो कुछ चुगल विशेषज्ञ हर गली मोहल्ले में मिलते हैं जिनके यहां चुगली सुनने और सुनाने वालों की भीड़ हमेशा लगी रहती है , एक उत्सव् का सा माहोल इनके यहाँ रहता है ? इन चुगल स्पेशलिस्ट को चुगली मटेरियल की सप्लाई भी ये चुगली श्रोता दे जाते हैं, एक की चुगली करो चार और का चुगली मटेरियल रिटर्न गिफ्ट के रूप में साथ में परोस जाएंगे। जिस प्रकार का माहौल चुगली वार्ता में रहता है वो देखने लायक होता है, लोगों को दारू पीने के साथ चखना चाहिए होता है, तब कुछ दिखाने लायक नशे का सुरूर आता है ,यहां दो महिलाएं सिर्फ चुगली करने के साथ ही इस प्रकार के नशे के सुरूर में आ जाती है ,देख के लगता है न जाने कितने पेग पी गयी हैं , वो भी नीट, बिना चखने के |अब कोलोनी है ना, किसी का छोरा किसी की छोरी पर लाइन मार रहा है, किसी की बहू ने सास को खरी खोटी सुनाई, कौन की लड़की किस के साथ नैन मटक्का कर रही, किस का बाप ठरकीपन दिखा गया, कौन के घर इनकम टैक्स का छापा, कौन के घर बिजली निगम का छापा, सारी खबरें और खबरों का अपडेट यहां मिलता रहेगा। अब महिलाएं भी क्या करें, घर पर दिन भर की भाग दौड़, धमाचौकड़ी,परिवार के सभी सदस्यों की डिमांड पूरी करती मारी फिरती,लेकिन मजाल की कोई इसको दो शब्द प्रशंसा स्वरूप इसके कान में डाल जाए , महिलाएं चुगली सिर्फ़ दूसरों की नहीं करती ,कभी कभार अपनी खुद के परिवार की कर के अपनी उदारता का परिचय देती हैं और कभी कभी इतनी उदार हो जाती हैं कि घर की सारी गुप्त बातें भी पड़ोसियों को उंडेल जाते हैं, फिर यही बातें चुगली के स्तर को एक नई ऊँचाई तक ले जाती हैं।

चुगली कोई नया प्रयोग नहीं है मानव सभ्यता का जब से जन्म हुआ ,उस से पहले से ही अनंत काल से पृथ्वी पर जमी हुई है, यही नहीं देव लोक में चुगली के महान प्रेरक नारद मुनि जिन्होंने न जाने कितनी लड़ाईयाँ अपने देवत्व स्वरुप चुगली से करवाई या रुकवा दी, भगवान को भी इस चुगली के अधीन ही 10 अवतार लेने पड़े। चुगली को रामायण काल में मन्थरा ने एक अलग स्तर दिया, जिसकी बराबरी आज भी कई सासें करती नजर आती हैं। लेकिन जो बेंचमार्क मंथरा ने स्थापित किया है उसे छू पाना मुश्किल है, और मन्थ्रा ने ये परहित के लिए किया, वैसे भी कहा जाता है “पर हित सरिस धर्म नहिं भाई”, राजपाट भरत को दिलाना था, उसे खुद को तो कोई मतलब था ही नहीं, तभी तो चुगली करने वाले हमेशा हर बात पे आपको कहते मिल जाएंगे ,”अब हमें क्या ,हमें क्या मतलब, “सही मायने में ये दूसरों की गलतियों को नजर अंदाज़ नहीं करके समाज में एक मार्गदर्शन का काम कर रहे हैं। इधर ऐसे चुगल खोर भी हैं जो शकुनि मामा से प्रेरणा ले रहे हैं इनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ बर्बाद करना है, येन केन प्रकारेण ये चुगली द्वारा किसी को भी उजाड़ सकते हैं ,ऐसी प्रतिभा धारण कीये इन महारथियों से हमेशा अपना अस्तित्व बचाए रखें, कई संस्थाओं में तो इन चुगल खोरों के कारण ऐसी सडांध व्याप्त हो गयी है कि, संस्था की बदबू पूरे शहर में फैल गई है, सभी नाक मूंह सिकोड़ रहे हैं लेकिन वो है न कि आदमी की फितरत ही ऐसी है,बैठना उसी गंदगी में है ,जाए तो जाए कहाँ , इसलिए रूमाल नाक में लगाए बस झेल रहे हैं, संस्था में अपनी ग्रहणेंद्रियाँ आपको सुन्न करनी पड़ेगी , गाँधी जी के तीन बन्दर को आप ध्यान से देखे जो बन्दर मुह पे हाथ रखा हुआ है ,वो इसके साथ नाक को भी ढंके है,ये सन्देश की,इन चुगल खोरों की सडांध को सूंघना भी नहीं है ,तभी इस जीवन को ढो सकते हो |”चुगली नरस्य आभूषणं “, इसलिए ज्यादातर नारी ही है जो की आभूषण प्रेमी है इसे धारण करती है ,लेकिन इस आभूषण को पुरुष पसंद नहीं करता,वैसे भी पुरुष को आभूषण पसंद नहीं | अब चुगली करने वाला भी अपनी पूरी ईमानदारी बरतता है हर चुगली के चरमोत्कर्ष रहस्योद्घाटन के बाद ये कहना नहीं भूलता “तुम्हें अपना समझ के बताया है, किसी और से न कहना” इस प्रकार अपने अपनेपन का प्रमाण समने वाले को देता है, चुगली करने वाली महिलाएं आपके प्रश्न का इंतजार भी नहीं करेंगी वो बिना कोई अनुनय विनय के आपको चुगली परोस देंगी, क्योंकि उसे पता है आपकी स्वाद कलिकाओं को इन चुगली भरी बातों के स्वाद का चस्का लग गया है |

आजकल तो चुगली का डिजिटल वर्जन हो चुका है | अब पहले चुगली करने के लिए आवाज को धीमा रखना पड़ता था, क्यों की चुगली जिस कमरे या हाल में की जाती थी , उस दीवारों के भी कान होते थे , चुग्ल्री करते वक्त गर्दन को एक विशेष कोंन में एक तरफ टेडी कर के किसी के कान को समीप लाकर उंडेलना पड़ता था जिस से की चुगली मुफ्त में लुढ़क कर बगल वाले के पास नहीं पहुँच जाए,,अब वो सभी झंझट ख़त्म हो चुके है डिजिटल वर्शन चैटिंग एक ऐसा रूप आया है जिसने चुगली को उँगलियों के इशारे से अपने गंतव्य स्थल तक पहुँचने में मदद की है , जहा पहले मौखिक चुगली के लिए दो महिलाओं का श्रवण सीमा के दायरे के अन्दर होना जरूरी था, कभी कभार सुनने बाल के अगर कान बहरे हों तो चुगली करने बाला बड़ी परेशानी झेलता था | अब सारी समस्या ख़त्म. इधर चुगली करो ,किसी को कानों कान खबर नहीं और इस प्रकार चगली सुनने की जगह पढने की चीज हो गयी, दीवारों को भी सुनने का खतरा नहीं. चुगली को फॉरवर्ड कर के या उसमे थोडा नमक मिर्ची लगाकर इसे और मसाले दार बना कर आप दूसरों को परोस सकते है. चुगली की गूगली ही है जो अब ऐसे एक दुसरे पर इतनी फ़ास्ट तरीके से फेंकी जाती है की उसे वायरल होने से कोई नहीं बचा सकता. चुगली जिस की हो रही है उसका बाप भी नहीं पहचान पाए की ये चुगली का जन्मदाता कौन है ,क्यों की चुगली को जन्म देने बाला इतना उदार होता है की उसमे अपनी कॉपीराइट का स्टाम्प भी नहीं लगता. दोस्ती में तो चुगली आजकल खासा महत्त्व रखती है जब दो दोस्तों क दुश्मन एक ही हो तो दोस्ती और प्रगाढ़ हो जाती है, फिर जो दोस्ती में चुगली की क गाढ़ी चाशनी से इन संबंधों की डोर लपेटी जाती है ,दोस्ती की डोर मजबूत हो जाती है.

यु तो जैसे जैसे अआधुनिकता ने स्त्री को भी अब व्यस्त ,कर्मशील,मॉडर्न,अरुधिवादी, आत्मकेंद्रित बना दिया था और महिलायें कही इन रुढ़िवादी परम्पराओं को सिरे से नकारने लगी थी ,लेकिन की फिर आया सास बहु सीरीअल्स का सैलाब,जिस ने वापस इस चुगली वाली परम्परा को परिवार में जीवंत कर दिया है वैसे अछे लेखक भी अगर गौर से देखें तो अछे चुगल खोर रहे है तभी वो समस्याओं की मीन मेख निकाल पाते है, अब देखो हमे ज्यादा बात करने की आदत तो है नहीं ,कुछ चुगली करने का कीड़ा हमे भी जगा इसलिए अभी तक चुगली के बारे में चुगली किये जा रहे है,लेकिन आप कृपया बात को अपने तक ही रखना ,किसी से कहना नहीं| रचनाकार- डॉ मुकेश गर्ग

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