दिल का मामला है
दिल का मामला है जी –इसे भी एक दिन में समेट दिया.. । लो जी सभी दिल फेंकों के लिए आ गया दिल दिवस। यूँ तो वैलेंटाइन डे ने बड़े दावे किये थे की दिलों के मेल का असली दिन वही है ..लेकिन दिल है न कब किस दिन पर आ जाए कह नहीं सकते..’ये दिल है की मानता नहीं…’अब एक दिन से मेरा क्या होगा ..दिल जलिए.. । वैसे ही दिवसों की ऐसी मारा मारी है की पूछो मत । कोई सा दिन खाली नहीं । ऊपर से वैलेंटाइन दिवस, दिवस नहीं होकर पूरे 7 दिन का साप्ताहिक कार्यक्रम हो गया .. । लगता है जैसे सरकारी कार्यक्रमों का कोई सप्ताह मनाया जा रहा हो..हिंदी सप्ताह ,समाज कल्याण सप्ताह ,कौमी एकता सप्ताह,मद्य निषेद सप्ताह,मतदाता जागरूकता सप्ताह ..अलाना सप्ताह और ढीकाना सप्ताह.. । वैसे वैलेंटाइन अगर सच में दिलों के मेल का दिन है, तो चॉकलेट डे, प्रपोजल डे, किस डे, हग डे, ये डे और वो डे में में एक दिन ‘दिल फेंक दिवस’ भी रहना चाहिए था । मैं तो कहता हूँ किसी भी प्रणय घटना,या दुर्घटना जो भी कह लीजिये उसकी शुरुआत ही दिल फेंकने से होती है। में तो कहता हूँ की ओलिंपिक में भाला फेंक, तस्तरी फेंक ,क्लब फेंक,हथोडा फेंक के साथ ही एक गेम दिल फेंकने का भी होना चाहिए..इसमें तो माशा अल्लाह हम दो चार गोल्ड मैडल कबाड़ ही लायें.. । फिर खाली पीली फेंकने में भी तो एक्सपर्ट हैं हम लोग.. ।
वैसे भी दिल दिवस, दिल के मारे लोगों के लिए नहीं है ,ना ही दिल के हारे हुओं के लिए ।दिल की बीमारी अगर लगी हुई है तो अच्छी बात है.. ।लेकिन कहाँ लगती है दिल की बीमारी आजकल.. ? दिल तो पत्थर हो चुके हैं .. । आजकल वैसे भी दिल के बीमार से ज्यादा लोग दिमाग से बीमार हैं । नाम बदनाम दिल का हो रहा है । करते हैं लोग मन की और कहते हैं जी ‘हम तो दिल की सुनते हैं। ‘
हम तो बोलते हैं, आप दिल की सुनो कोई बात नहीं,लेकिन खुद ही सुनो ना..काहे दूसरों को सुनाते फिरते हो.. । दिल का क्या भरोसा, कब किस के लिए धड़क जाए। अब दिल की सुनोगे, तब तक तो ठीक है, प्रॉब्लम सुनने में कहीं नहीं है , दिल की बात मुंह से कहने में भी नहीं है ,अगर बात को दो फुट की सोशल डिस्टेंसिंग से भी कह दी हो, तो चलेगा । लेकिन तुम हिम्मते मर्दानगी की चूल उठने पर कहीं किसी दिन किसी के थोबड़े को दिल पे रख कर सुनाएँ की’ लो सुनो मेरे दिल की बात ..’तो भैया संभल के…’बड़े धोखे हैं इस राह में….’ बस यहीं मुश्किल है। कई लोगों के दिल के अरमान यहीं चकनाचूर हुए देखे हैं.,.कई देवदास पारो के चक्कर में ढेर होते देखे हैं ।
वैसे दिल के साथ आज जिगर दिवस भी निपटा देना चाहिए। कल के जाए जिगर अलग से एक दिवस की मांग करें..और रूठ जाए ,काम करना बंद कर दे.. । अभी तक के प्रणय पुरानों ,आँखों देखी ,कही-सूनी प्रेम कहानियों में दिल और जिगर को एक ही चीज माना गया है । अब जब से स्साली साइंस ने हमारे ज्ञान के चक्षुओं में अपनी तिर्रफिट की धुल झोंकी है..कान्फुज हो गए….कोई कहता है ..’जाने जिगर भी, जाने दिल भी … ! ‘पूछते हैं ..अच्छा कहाँ बैठती है आपकी जाने जिगर …? बोले “यहीं बैठी है…!” कहाँ..?” दिल में या जिगर में..?” अरे बैठी है वहीँ जहाँ उसे जगह मिली हो…फ़ालतू फंड में तर्क मत दो.. ।“
लेकिन इन दिल फेंकू आशिकों से पूछेंगे ,ज़रा हाथ लगा कर बताओ कहाँ बैठी है…तब बेटे हाथ तो सही दिल की लोकेशन पर लगाते हैं ।चलो कम से कम माशूका कहाँ बैठी है उसके बारे में ठीक ठाक पता तो है..नाम में क्या रखा है.नाम कुछ भी रख दो..पलके,दिल,जिगर,छाती ..कुछ भी.. ।वैसे देखा जाए ये सब श्रृंगार रस के कवियों की कारस्तानी है.. ।उनको खुद पता नहीं माशूका को बिठाना कहाँ है.. ।कभी पलकों पर बिठा देते है..अब बताओ ६० किलो की माशूका..को पलकों पर झेलो…आशिक की की नींद शायद इसलिए ही खराब रहती है.. ।
लेकिन आज कल दिल फेंकने वाले भी बड़े टेक्ट फुल हो गए जी .. । विज्ञान के ज्ञान का भरपूर प्रयोग ले रहे हैं.. । वो प्यार व्यार के मामले में थोड़े एडवांस होते हैं। दिल टूट गया तो क्या जिगर अभी भी सलामत हैं । अगली लड़की को जिगर दे देंगे। वैसे भी जिगर दिल से मजबूत होता है । जिगर थोड़ा बाद में टूटता है । लड़की मना भी कर दे तो दिल पहले टूट फूट कर अपना इस्तीफा दे देता है..भाई मैं तो गया काम से..तू अपना देख ले.. । जिगर नशेड़ी है बस मौके की तलाश में,..,इधर दिल टूटा की अपनी मांग आगे रख देता है …”ला भाई आज तो पिला दे…मुझे भी तो टूटना है । “
एक अप्रकाशित हास्य व्यंग्य लेख -“दिल का मामला है ” कल सम्पन्न हुए दिल दिवस के अवसर पर लिखा था ..
लघु अंश साझा कर रहा हूँ…क्या करें…माल बिकने से पहले सैंपल दिखाना पड़ता है…
“
वैसे आजकल के जमाने में दिल भी ऐसे आने लगे हैं ,मल्टी स्टोरी इमारतों की तरह , एक बार में आठ साथी को बसा लेते हैं फिर भी एक दो रूम तो वैकेंट रहते ही हैं। इस मामले में दोनों के दिल ऐसे ही बनाये हैं । लड़के को मालूम हैं कि लड़की के दिल में पहले से ही कई धरना दिए बैठे हैं.. फिर भी यही कहेगा ‘देख लो अगर एक की जगह हो ,थोड़ा सा एडजस्ट हो जाए तो। ‘
दिल का बाजार सज गया है सभी तरह के दिल बाजार में उपलब्ध हैं । सेल लगी हैं । डिस्काउंट पर उपलब्ध धडाधड बिक्री.. । लेकिन चाइनीज माल हैं … कोई गारंटी नहीं । चल जाये तो दो चार साल निकल भी सकती है नहीं तो आज दिल लिया ,कल ब्रेक अप परसो कहीं और। पहले दिल लगाना पांच वर्षीय योजना होती थी पहले नजरें मिलती थीं ,फिर इशारों का आदान प्रदान ,फिर नींद खराब, फिर पत्र व्यबहार, फिर इजहार , फिर माशूका के जबाब का इंतज़ार फिर घर वालों से तकरार ।
आजकल एक से दिल लगाने का मतलब समाज में कोई वैल्यू ही नहीं । आपके सोशल स्टेटस के लिए असेसरिज हो गयी आशोकों की फेरहिस्त..,जैसे होंटों पर रेव्लोन की लिपस्टिक,रोलेक्स की घड़ी, गुच्ची का पर्स ऐसे ही गले में चार पांच आशिकों के नाम के पट्टे.. । जब तक दो चार दिल फेंक आशिक चक्कर नहीं लगायें आसपास तब तक समाज में कोई वैल्यू हे नहीं।
आदमी का शौक है दिल का दर्द पालना.. । जी दिल की लगी अब लगी नहीं पाली जाती है । है बिल्कुल जैसे घर में कुत्ते पालते हैं। एक जना आठ-दस दिलों को पाल लेता है ? उनके नाम भी मोबाइल में दर्ज हो जाते हैं..लडकियां..मुर्गा नंबर 1,२,3,४…. और लड़के…गुलाब साइकिल रिपेयर वाला, टिन्नू टायर वाला, रामू चाय वाला..जैसे ही कुछ.. ।
लड़के धरती में उगे नहीं की इस आशिक के बाजार में नीलामी के लिए तैयार हैं… जी । कोई है खरीददार..कदर दान… मेहरबान … । बस हमारा दिल पाल लीजिये… खाना खर्चा हम देंगे, आपके मोबाइल का रिचार्ज करा देंगे , ज्वैलरी, खाना पीना, मूवी शो, सब हमारी तरफ से। लड़की …”ठीक है तो इस बार तुम्हारी बारी।“ एक साल बस ..अगली बार कोई और जगह देख लेना।“
या फिर..: “ आप वेटिंग में है, सुनो अगली साल आना।“
चलो आपको एक वाकया सुनाते हैं .. एक महाशय डॉक्टर के पास गए, अधेड़ उम्र के थे..। कोई दिल दिवस की ही बात थी..फ्री हार्ट चेकअप का बोर्ड देख कर रुक गए थे ।
“डॉक्टर साहब दिल में बहुत दर्द हो रहा है। “
डॉक्टर साहब ने चेक किया, हार्ट एक दम सही धड़क रहा, बिल्कुल ४४० वाल्ट के करंट के माफिक।
बोले –:”यार दिल तो आपका सही धड़क रहा है। “
मरीज : “डॉक्टर साहब कहाँ चेक कर रहे, दिल तो घुटने में आ गया है अब वहाँ चेक कीजिए। “
चलो दिल की बातें कभी ख़त्म हो ही नहीं सकती..चलते चलते कुछ तुकबंदी शेर..कहीं से कबाड़े हैं.. सोर्स मिल नहीं रहा इसलिए ग़ालिब को ही चिपका देता हूँ..
हुई उम्र तो बहुत कुछ बदला है ग़ालिब ,
दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-घुटना हो गया।
यूँ तो बुझ चुका है तुम्हारे हुस्न का हुक्का ग़ालिब ,
ये तो हम हैं की फिर भी गुडगुडाए जा रहे हैं।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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