डूबने की फिलासफी
एक अजूबा दुनिया का
समझों मित्र सुजान
जीवित देह जल डुबती
क्यों तैरे मुर्दा जाण? (1)
काम क्रोध अभिमान के
भार होत ज्यों भारी
जिन कारण जीवित मिनख
डूबत जल गहराई। (2)
अंत समय यमदूत ज्यो
. बांधे कर्म और प्राण
मृत शरीर हल्का पडे़
. तैरे जल में जाण। (3)
मुरदे जल में तैरते
. है अचरज की बात
पाप गठरियाँ बांध के
जीवित डूबत जात । (4)

डा राम कुमार जोशी
जोशी प्रोल, सरदार पटेल मार्ग
बाड़मेर 344001
[email protected]
आपकी दर्शन युक्त इस कविता पर कमेंट करने की तो क्या समझने की अल्प बुद्धि भी मेरे में नही है। पर जिवित देह जो पाप के भार से डूबती जा रही है पर उससे अच्छी निष्प्राण निष्ष्क्रिय देह है जो पाप नही सकती है; तैरती है। इस उपमा ने यह संदेश दिया है कि पापियों तुमसे तो मुर्दे भी अच्छे है।
सुंदर रचना
शब्द सौंदर्य से अभिभूत करती रचना
नैतिक ज्ञान तो हे ही साथ में सजीव बोध की रसमय रचनाएं।
छोटी छोटी पर सागर की बात करती रचना
आभार आपका आदरणीय
आपकी दर्शन युक्त इस कविता पर कमेंट करने की तो क्या समझने की अल्प बुद्धि भी मेरे में नही है। पर जिवित देह जो पाप के भार से डूबती जा रही है पर उससे अच्छी निष्प्राण निष्ष्क्रिय देह है जो पाप नही करती है; तैरती है। इस उपमा ने यह संदेश दिया है कि पापियों तुमसे तो मुर्दे भी अच्छे है।
आपकी इस भावपूर्ण प्रतिक्रया के लिए आभार
सुंदर रचना 👌👌