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दोस्त बदल गए हैं यार-कविता रचना

दो पुराने दोस्त, अलग-अलग दिशाओं में जाते हुए, पीछे मुड़कर देखते हैं। एक कॉर्पोरेट पोशाक में, दूसरा मोबाइल में व्यस्त। उनके बीच धुँधली यादों की परछाइयाँ — स्कूल की यूनिफॉर्म, चाय की दुकान, हँसी के पल — हवा में तैरती हुई दिखाई देती हैं।

दोस्त अब संभल गए है  यार ,

दोस्त अब बदल गए हैं यार।

छोड़ेंगे न हाथ कभी ये मासूम वादा  किये ,

साथ चले थे जो कभी न थकने का इरादा लिए,

हंसी ठिठोली, न जाने कितनी यादों का संसार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

कोई नौकरी के पीछे, कोई बिजनेस की राह पर,

दौलत के तराजू  पे कसमसाते  रिश्तों की आह भर   ,

जोड़ते गए शौहरत और दौलत की मीनार,

दोस्त बदल गए हैं यार।

कभी किया करते थे सपने साझा , जागकर रातों में ,

मीलों दूरी का सफ़र तय करते बातों बातों  में ,

अब तो जैसे  सब हो गए स्वार्थी और मक्कार,

दोस्त बदल गए हैं यार।

वो लम्बी बातों का दौर, खुशियों का इजहार ,

चाय की चौपालों पर सजा था हुक्का बार   ,

खो गयी वो मासूमियत, खो गया वो प्यार,

दोस्त बदल गए हैं यार।

यादें हैं पर अब थोडा कडवाहट लीये ,

हर जीत अब वैमनष्यता का घूँट पिए ,

साझा खुशियां, बांटा गम, सब लगता है बेकार,

दोस्त बदल गए हैं यार।

शायद यही है जीवन की रीत,

बदले  रिश्ते, बदली  पहचान बदले मीत ,

स्वार्थपूर्ति की इंटों से  तन गयी एक दीवार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

कोई देख रहा फायदा, कोई माप रहा है नुकसान,

नाम से नहीं , अब काम से है पहचान,

दोस्ती करना भी अब  हो गया है व्यापार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

खो गए वो रिश्ते, जहाँ थे सच्चे वास्ते,

धूमिल वो मंजिलें,काँटों भरे हैं रास्ते  ,

अब दिखावटी पोस्ट और स्टोरीज़ की भरमार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

कभी जहा साथ बैठे घंटों बतियाना ,

ठेंगे पर रखते थे कभी ये ज़माना  ,

डिजिटल दुनिया के खेल में, खो गया है संसार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

कभी जो मिलकर बनाते थे हर मुश्किल को आसान,

न शोहरत की न दौलत की रही कभी पहचान  ,

दिखे  संवादों में अजनबीपन की दरकार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

जब  न  कोई शर्त, न कोई औपचारिक बातें

न कोई शतरंज के मोहेरे की बिछाता  बिसातें

यादों के बुने धागे हुए है तार तार  ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

लाइक्स और कमेंट्स का खेल खेल के ,

निभाते हैं दोस्ती का फर्ज़, बिना किसी मेल के ,

वर्चुअल दुनिया में जीते मरते जीवन रहे गुजार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

खो गई है वो बात, वो चाय पे चर्चा और खुली बाहें ,

अब जुबान पर आते-आते, बातें बदल लेती है  राहे,

वो लंगोटिया यार के किस्से पुराने और बेकार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

व्यस्तताओं का बहाना, या शायद प्राथमिकताएँ बदल गई,

बेखौफ बेरोकटोक भरी जिन्दगी अब संभल गयी ,

गया वो समय , जब दोस्ती थी जीवन का आधार,

दोस्त बदल गए हैं यार।

अब सपने सिर्फ अपने, नहीं कोई साझेदार,

खुद की दुनिया में मगन, भूले वो संसार,

फिर भी एक उम्मीद, की शायद एक दिन फिर से मिलेंगे,

बीते लम्हों को याद कर, वो पुराने घाव सिलेंगे ,

शायद वक्त फिर से बदले, और लौट आए वो अपनापन एक बार ,

दोस्त बदल गए हैं यार।

दोस्त अब संभल गए है  यार ,

दोस्त अब बदल गए हैं यार।

डॉ. मुकेश असीमित—साहित्यिक अभिरुचि, हास्य-व्यंग्य लेखन, फोटोग्राफी और चिकित्सा सेवा में समर्पित एक संवेदनशील व्यक्तित्व।
डॉ. मुकेश असीमित
✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक

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