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ग्रहण : आत्मचिंतन की छाया में सूर्य और चंद्र

A black-and-white satirical cartoon line drawing showing Rahu’s giant mischievous head trying to swallow the Sun and Moon. The Sun looks like a wise teacher holding a book of knowledge, the Moon looks like an emotional poet with a flute, while Rahu sneaks in with a fork and bib, ready to “eat” them. The background shows eclipses forming as shadowy circles.

ग्रहण : आत्मचिंतन की छाया में सूर्य और चंद्र

हिंदू धर्म में चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण की सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा समुद्र मंथन” से जुड़ी हुई है।

जब देवताओं और दानवों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत निकालने के बाद यह निर्णय हुआ कि केवल देवता ही अमृत पिएंगे। लेकिन एक दानव – “राहु”, भेष बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृत पी लिया।

सूर्य और चंद्रमा ने राहु को पहचान लिया और तुरंत इसकी सूचना भगवान विष्णु को दी। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया।

लेकिन तब तक राहु का सिर अमृत पी चुका था, इसलिए वह अमर हो गया। सिर वाला भाग “राहु” और धड़ वाला भाग “केतु” कहलाया।

राहु इस बात से क्रोधित हुआ और सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने के लिए समय-समय पर उन्हें निगलने की कोशिश करता है — यही ग्रहण कहलाता है।

  • जब राहु चंद्रमा को ग्रसता है, तो चंद्र ग्रहण होता है।
  • जब राहु सूर्य को ग्रसता है, तो सूर्य ग्रहण होता है।

यह कथा आध्यात्मिक प्रतीक भी मानी जाती है — जहां राहु हमारे भीतर के छल, कपट और ईर्ष्या का प्रतीक है जो ज्ञान (सूर्य) और मन (चंद्र) को समय-समय पर ग्रसने का प्रयास करता है।

भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन करें तो  ग्रहण केवल खगोलीय घटना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संकेत है — एक ऐसा बिंदु जहाँ आकाश में घटने वाली घटना हमारे अंतरिक्ष और अंतर्मन दोनों को जोड़ती है। चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण — दोनों ही हमारी मानसिक और बौद्धिक चेतना पर पड़ने वाली छाया की स्थिति के प्रतीक हैं।

चंद्र, मन का प्रतीक है — चंचल, भावुक, शीतल।
सूर्य, ज्ञान का प्रतीक है — तेजस्वी, स्थिर, विवेकशील।

जब राहु, छल और अज्ञान का प्रतीक, चंद्रमा को ग्रसता है, तो यह दर्शाता है कि हमारे भीतर की भावनात्मक निर्मलता पर वासनाओं, मोह और क्रोध की धुंध छा रही है। यह चंद्रग्रहण हमें भीतर झाँकने का अवसर देता है — हमारे मन का चंद्रमा कब-कब, कैसे-कैसे ग्रहणग्रस्त होता है?

परंतु, सूर्यग्रहण का आध्यात्मिक संकेत और भी अधिक गूढ़ है।

जब राहु या केतु सूर्य को ग्रसता है — तब यह केवल आकाश का अंधकार नहीं, बुद्धि का धुंधलापन होता है। यह उस क्षण का प्रतीक है जब हमारे भीतर के ज्ञान, विवेक, न्याय और दृष्टि पर अंधविश्वास, हठधर्मिता, अहंकार या लोभ छा जाते हैं। यह चेतावनी है कि प्रकाश भी कभी-कभी भ्रम से ढँक जाता है।

सूर्यग्रहण हमें याद दिलाता है कि केवल ज्ञान प्राप्त कर लेना पर्याप्त नहीं — उसे सुरक्षित रखना, उसे राहु जैसे विकारों से बचाना भी उतना ही आवश्यक है। राहु का सिर जब सूर्य को ग्रसता है, तो वह हमारे भीतर के संदेह, दंभ और पूर्वग्रहों का वह क्षण होता है, जो हमें सत्य से दूर करता है।

दोनों ग्रहणों में मन और बुद्धि की परीक्षा होती है। एक ओर राहु चंद्र को ग्रसता है — भावनाएँ मलिन होती हैं, दूसरी ओर सूर्य को ग्रसता है — ज्ञान विचलित होता है। और जीवन का हर दिन, हर क्षण एक संभावित ग्रहण है — बाहरी नहीं, भीतरी

इसलिए, चाहे चंद्रग्रहण हो या सूर्यग्रहण — यह आत्मचिंतन का समय है। यह विचारने का समय है कि हमारा मन और विवेक किस छाया के अधीन है? क्या हम राहु को पहचान पा रहे हैं?

जो व्यक्ति इस प्रतीकात्मकता को समझ लेता है, वह केवल खगोलीय नहीं, आत्मिक ग्रहण से भी मुक्ति की दिशा में बढ़ता है। वह जानता है कि राहु के क्षणिक ग्रहण के बाद प्रकाश फिर लौटेगा — मन में भी, बुद्धि में भी।
ग्रहण की छाया से गुजर कर ही, आत्मा की आभा उजली होती है।

रचनाकार –डॉ मुकेश असीमित

डॉ. मुकेश असीमित—साहित्यिक अभिरुचि, हास्य-व्यंग्य लेखन, फोटोग्राफी और चिकित्सा सेवा में समर्पित एक संवेदनशील व्यक्तित्व।
डॉ. मुकेश असीमित
✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक

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