होली का त्योहार, रंगों और गुलाल की बौछार,
एक तरफ गरीब की बस्ती, दूसरी ओर अमीरों का द्वार।
दोनों की ही दुनिया में रंगों की बहार ,
लेकिन दोनों के अर्थ, बेहद अलग, जैसे दो अलग संसार ।
गरीब की होली में रंग है सपनों की उड़ान,
खुशियों की तलाश में,संजोये एक एक मीठी मुस्कान।
उसकी होली, आशाओं की फैलती किरण,
संघर्षों के बावजूद, जीवन का उत्सब मनाता हर क्षण ।
अमीर की होली, वैभव की चकाचौंधभरी दुनिया ,
रंगों की बौछार में, खोजती खोज और खुशियाँ ।
उनका उत्सव, समृद्धि का भोंडा प्रदर्शन ,
जहां खुशियां भी, लगती हैं कभी-कभी, मात्र एक दूर के दर्शन ।
गरीब की होली में, सादगी का अद्भुत सौंदर्य,
जहाँ हर रंग के पीछे, जीवन की एक कहानी, एक गौरवमयी इतिहास।
अमीर की होली में, सम्पन्नता के साथ, अक्सर खो जाता है,
उस अनुभव का आत्मिक संबंध, जो आता है साझा करने से, एकता में।
इस होली, चलो नई सोच अपनाएं,
रंगों की इस बौछार में, सभी भेदभाव भुलाएं।
गरीब हो या अमीर, सबकी खुशियाँ हों एक समान,
होली का यह पावन त्योहार, बने मानवता का आह्वान।
रचनाकार -डॉ मुकेश गर्ग (साहित्य सारथी )
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